पूर्वांचल और अवध में जिसे मिला पिछड़ी जातियों का साथ, उसी की हुई नैया पार

लोकसभा चुनाव के चार चरण का मतदान पूरा हो चुका है. यूपी में अब पांचवें, छठे और सातवें चरण का मतदान शेष है. आखिरी के इन तीन चरणों में जहां चुनाव होना है उसमें पूर्वांचल और अवध क्षेत्र शामिल है. ये वो क्षेत्र है जहां पिछड़ी जातियों का वर्चस्व हमेशा से रहा है. कहा जाता है कि जिस दल ने भी पूर्वांचल और अवध क्षेत्र में पिछड़ी जातियों और उनके नेताओं को साध लिया जीत का सेहरा उसी के सिर बंधता है.

यही वजह है कि बीजेपी, सपा-बसपा गठबंधन और कांग्रेस ने अपने प्रत्याशियों के चयन में इन्हीं जातियों से जुड़े नेताओं को तवज्जो दी है. यूपी में पिछड़ी जातियों की भागीदारी करीब 43.56% है. इसमें अति पिछड़ी जातियां 10.22 और पिछड़े 33.34% है. इसीलिए पिछड़ों का साथ पाने की बेताबी सभी राजनीतिक दलों में रहती है. इन्होंने जब भी जिसका साथ दिया. उसके लिए जीत हमेशा से आसान होती रही है.

अगर पिछले कुछ चुनाव की बात करें तो इस बात की तस्दीक भी होती है कि पिछड़ी जातियों को साध कर ही पूर्वांचल और अवध का रण जीता जा सकता है. 2007 में जब बसपा को बहुमत मिला तो इसमें मायावती की जातिगत इंजीनियरिंग को ही श्रेय दिया गया. मायावती ने सवर्णों के साथ ही पिछड़ों को साधा और पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. 2012 में समाजवादी पार्टी ने भी इसी फ़ॉर्मूले को अपनाते हुए ऐतिहासिक जीत हासिल की. 2014 के चुनाव में बीजेपी ने जातिगत आधारित छोटे-छोटे दलों से गठबंधन कर यूपी में 71 सीटें जीतीं. 2017 में बीजेपी ने ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया और प्रचंड जीत के साथ सरकार बनाई.

अब 2019 के चुनाव में भी सभी दल इन्हीं जातियों को साधने की कोशिश में हैं. यूपी की 80 लोकसभा सीटों में अधिकतर पिछड़े प्रभावित हैं. इसीलिए यूपी में 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने का खेल समय-समय पर खेला जाता रहा है. यही वजह है कि योगी सरकार ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले निगमों में चेयरमैन की नियुक्ति इसी आधार पर की.

यूपी में इन पिछड़ी जातियों का साथ अहम

अहिर, यादव, यदुवंशीय, ग्वाला, कुर्मी, चनऊ, पटेल, पटनवार, कुर्मी-मल्ल,कुर्मी-सैंथ्वार, लोध, लोधा, लोधी, लोट, लोधी-राजपूत गड़रिया, पाल, बघेल, केवट या मल्लाह, निषाद, मोमिन, अंसार, तेली, सामानी, रोगनगर, साहू, रौनियार, गंधी, अर्राक ,जाट, कुम्हार, प्रजापति, कहार, कश्यप, काछी, काछी-कुश्वाहा, शाक्य, हज्जाम(नाई), सलमानी, सविता श्रीवास, भर, राजभर, बढ़ई, बढ़ई-शैफी, विश्वकर्मा, पांचाल, रमगढ़िया, जांगिड़, धीमान, लोनिया, नौनिया, गोले-ठाकुर, लोनिया चौहान मुराव, या मुराई, मौर्य और फकीर, लोहार, लोहार-सैफी, गूजर, कोइरी, नद्दाफ (धुनिया), मन्सुरी, कंडेरे, कडेरे, करण (कर्ण), माली, सैनी भुर्जी या, भड़भूजा, भूंज, कांदू,कसौधन, दर्जी, इदरीसी, काकुस्थ.

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