मप्र के कड़कनाथ, छत्तीसगढ़ के ब्लैक रॉक और उत्तराखंड के उत्तरा में है जबरदस्त मुकाबला
नई दिल्ली । छत्तीसगढ़ के बस्तर की आबोहवा में तेजी से पनप रही कुक्कुट की नई प्रजाति ब्लैक रॉक अब मध्य प्रदेश के कड़कनाथ को पीछे छोड़ती दिख रही है। इसकी वजह ब्लैक रॉक प्रजाति का मप्र के कड़कनाथ से ज्यादा मांस और अंडे देना है। यह प्रजाति किसी भी परिस्थिति में स्वयं को ढाल लेती है। इस कारण कोंडागांव, नारायणपुर, सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर और बस्तर जिले के 1500 कुक्कुट उत्पादक बड़ी संख्या में इसका पालन कर रहे हैं। वहीं उत्तराखंड सरकार ने मध्य प्रदेश के कड़कनाथ मुर्गे को टक्कर देने के लिए उत्तराखंड की उत्तरा तैयार हो गई है। ठंड के मौमस में मुर्गीं के अंडे और मांस की डिमांड ज्यादा होने की वजह से उत्तरा, ब्लैक रॉक और कड़कनाथ में खासी टक्कर चल रही है।
इस बीच छग सरकार के स्थानीय कुक्कुट पालन केंद्र से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक करीब पांच माह में 67 हजार 500 चूजों का विरतण हुआ। इसके साथ ही सवा लाख से अधिक चूजों की मांग आई हुई है। यानी अच्छी आमदनी देने वाला ब्लैक रॉक स्थानीय युवाओं को अच्छा स्वरोजगार का साधन भी मुहैया करा रहा है। विदेशी नस्ल की ब्लैक रॉक के अन्य नाम आरआइआर और कलिंगा ब्राउन हैं। इस देसी और ब्रायलर से बेहतर माना जा रहा है। कड़कनाथ प्रजाति अधिकतम दो किग्रा तक वजनी होता है और साल भर में सौ से ज्यादा अंडे नहीं देता, जबकि ब्लैक रॉक मात्र 70 दिनों में एक किलो व छह महीने में साढ़े तीन किलो तक हो जाता है। साल भर में 200 अंडे तक देता है। इसका अंडा सामान्य मुर्गियों से बड़ा भी होता है। सबसे अच्छी बात यह हैं कि इसे देसी मुर्गियों की तरह घर में पाला जा सकता है। बस्तर की देसी मुर्गियों की मांग महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाके में अधिक है। प्रतिदिन लगभग सौ क्विंटल माल बाहर भेजा जा रहा है। इस कारण छग के ब्लैक रॉक को देसी का बेहतर विकल्प भी माना जा रहा है।
स्थानीय कुक्कुट पालन केंद्र का कहना है कि बैकयार्ड कुक्कुट पालन योजना के तहत एसटी-एससी वर्ग के हितग्राहियों को 90 और ओबीसी सामान्य वर्ग के हितग्राहियों को 75 प्रतिशत छूट के साथ प्रत्येक हितग्राही को एक माह का 45 नग चूजा उपलब्ध कराया जाता है। इसके लिए पशु चिकित्सालय में आवेदन किया जा सकता है। एसटी-एससी से मात्र 300 और ओबीसी या सामान्य वर्ग के हितग्राही से 750 रुपए जमा कराया जाता है।
कड़कनाथ को लेकर पहले छिड़ चुकी है जंग
कड़कनाथ मुर्गे के जीआई टैग को लेकर छग और मप्र के बीच पहले ही जंग छिड़ चुकी है, जिसमें मध्यप्रदेश की जीत हुई थी। दरअसल इस विवाद पर निर्णय देते हुए चेन्नई के भौगोलिक संकेतक पंजीयन कार्यालय ने कड़कनाथ मुर्गे का जीआई टैग मध्य प्रदेश को दिया। इसके बाद छत्तीसगढ़ कड़कनाथ पर अपना दावा छोड़ ब्लैक रॉक पर ध्यान केंद्रित करता दिखा है। बात दें कि कड़कनाथ के जीआई टैग को लेकर दोनों ही राज्यों ने अपना-अपना दावा चेन्नई स्थित भौगोलिक संकेतक पंजीयन कार्यालय के समक्ष पेश किया था। मध्य प्रदेश का दावा था कि इस प्रजाति का मुख्य स्रोत उनके राज्य का झाबुआ जिला है। वहीं, छत्तीसगढ़ का दावा था कि यह ब्रीड झाबुआ से ज्यादा दंतेवाड़ा में पाई जाती है। यहां उसका सरंक्षण और प्राकृतिक प्रजनन सदियों से होता आया है। इस पर भौगोलिक संकेतक पंजीयन कार्यालय ने मामले की जांच की और पाया कि इस प्रजाति का मुख्य स्रोत मध्य प्रदेश का झाबुआ जिला ही है। इस प्रकार दो राज्यों के बीच कड़कनाथ को लेकर छिड़ी जंग समाप्त हो गई थी। मप्र की शान कड़कनाथ मुर्गे की खासियत यह है कि इसके मांस में आयरन और प्रोटीन अधिक मात्रा में पाए जाते हैं, जबकि कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अन्य प्रजाति के मुर्गों से काफी कम पाई जाती है। इसके अलावा यह अन्य प्रजातियों के मुर्गों के मुकाबले अधिक कीमत पर बिकता है। इस मुर्गे के खून का रंग भी सामान्यतः काले रंग का होता है, जबकि आम मुर्गे के खून का रंग लाल पाया जाता है।
कड़कनाथ और ब्लैक रॉक को टक्कर दे रहा उत्तराखंड का उत्तरा
मप्र के कड़कनाथ, छत्तीसगढ़ के ब्लैक रॉक के अलावा मुर्गों की एक प्रजाति ओर हैं जो कि इन दोनों को बराबर से टक्कर दे रही है। हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के उत्तरा की। उत्तरा प्रजाति में फ़ैट और कॉलेस्ट्रॉल कम है और प्रोटीन लेवल बहुत हाई है। कुल मिलाकर इसके मीट की क्वालिटी बहुत अच्छी है। अपने ख़ास स्वाद और प्रोटीन के लिए चिकन प्रेमियों में मशहूर मध्य प्रदेश के कड़कनाथ मुर्गे को टक्कर देने के लिए उत्तराखंड की उत्तरा तैयार हो गई है। उत्तरा पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय द्वारा तैयार की गई राज्य की पहली कुक्कुट (मुर्गी) प्रजाति है जिस भारत सरकार ने मान्यता प्रदान की है। कड़कनाथ की तरह ही इसमें प्रोटीन की मात्रा बहुत अच्छी है और कॉलेस्ट्रॉल लेवल बहुत कम है। बेहद कम लागत में इस पाला जा सकता है और इस पालने पर किसानों को अच्छा लाभ भी मिल सकता है।
गरीब किसान के लिए उत्तरा लाभदायक
देहरादून के कृषि विज्ञान केन्द्र ढकरानी के वैज्ञानिक डॉक्टर एके सिंह के हवाले से बताया जा रहा है कि राज्य की जलवायु के हिसाब से उत्तरा सहित चार कुक्कुट प्रजाति ऐसी हैं जिन्हें पालना आसान और लाभदायक हो सकता है। ये चारों प्रजातियां विशेषकर छोटे, गरीब, भूमिहीन और सीमांत क्षेत्र के रहने वाले किसानों के लिए लाभदायक है। डॉक्टर सिंह बताते हैं मुर्गी पालन एक स्थापित व्यवसाय है लेकिन राज्य में यह अभी तक लाभदायक नहीं बन सका है और इसकी वजह मुर्गी पालन में आने वाला खर्च और राज्य का मौसम है। सामान्यतः मुर्गी की जितनी भी प्रजातियां हैं वे सभी मैदानी क्षेत्रों में तो अच्छी तरह से रह सकती हैं, लेकिन पहाड़ी जिलों में ये अच्छा परिणाम नहीं देतीं।
ये प्रजातियां हैं बेहतर
पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय ने शोध कर राज्य के मौसम के अनुरूप आरआईआर, आस्ट्रोलॉफ, कड़कनाथ और उत्तरा चार प्रजातियों को बेहतर पाया है। ये राज्य के मौसम के अनुरूप अच्छी तरह से रह रही हैं। डॉक्टर सिंह बताते हैं कि इनकी अच्छी बात यह है कि ये सभी द्विकाजी (दोहरे इस्तेमाल) प्रजातिया हैं। किसान चाहे तो इस मांस के लिए इस्तेमाल कर सकता है और अगर चाहे तो अंडे के लिए कर सकता है। इनकी अच्छी बात यह भी है कि इन्हें स्थानीय स्तर पर मिलने वाले खाद्य पदार्थ जैसे कि मक्का, ज्वार, बाजरा, गेहूं, चावल की कल्कि और मंडवा, झंगोरा भी चारे में रूप में दिया जा सकता है। इनमें ब्रॉइलर मुर्गी के मुकाबले बीमारियां भी कम लगती हैं। यह मुर्गी दो-ढाई महीने में बिक्री के लिए तैयार हो जाती है और इस पर किसान को 200 रुपये से ज़्यादा का फ़ायदा मिल सकता है।