महाराष्ट्र सरकार की अनदेखी, नीलाम हो सकता है भारत का पहला ओलंपिक मेडल
एक खिलाड़ी का सपना होता है कि वह अपने देश का नाम रोशन करे. इसके लिए खिलाड़ी दिन रात एक कर मेहनत करते हैं. लेकिन अगर अपने देश के लिए अपनी पूरी जिंदगी भर मेहनत करने के बाद भी उसका सपना केवल सरकार की अनदेखी के कारण पूरा ना हो पाए तो ये शर्मनाक है.
महाराष्ट्र सरकार के लिए ये शर्म की बात है कि भारत को ओलंपिक इतिहास में पहला मेडल जीताने वाले रेसलर खसाबा दादासाहेब जाधव का परिवार उनका सपना पूरा करने के लिए अब उनका मेडल नीलाम करने को मजबूर है.
खसाबा जाधव ने साल 1952 में हेलसिंकी में हुए ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा था. दरअसल जाधव का सपना था कि वह सतारा के गोलेश्वर में एक एकेडमी खोले लेकिन पैसे की कमी के चलते ये सपना अब तक पूरा नहीं हो पाया है.
इस महान रेसलर के बेटे रंजीत केडी जाधव ने बताया कि 65 साल पहले जब पिताजी ने इतिहास रचा था तब से उनका सपना था कि उनके गांव में एक रेसलिंग की एकेडमी बने. इसके लिए हमने काफी कोशिश की लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ.
साल 2009 में महाराष्ट्र के खेलमंत्री ने एकेडमी के लिए मदद की घोषणा दी लेकिन दिसंबर 2013 तक कुछ नहीं हुआ. उस समय एकेडमी के लिए 1.58 करोड़ रूपए की मदद का भरोस मिला था.
रंजीत जाधव ने कहा उसके बाद भी घोषणा ठंडे बस्ते में पड़ी रही अब हालत ये है कि एकेडमी बनाने की लागत अब दोगुनी हो चुकी है.
गोलेश्वर की पंचायत और परिवार ने अब फैसला किया है कि अब इस मसले को अपने हाथ में लेंगे. उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर उनकी बात नहीं मानी गई तो उन्हे मजबूरन ओलंपिक पदक को नीलाम करना पड़ेगा.
खसाबा जाधव के बेटे ने बताया कि हम सरकार को 14 अगस्त तक का समय देते हैं. मेरे पिता की 33 पुण्यतिथि तक सरकार अगर अपने वादे को पूरा नहीं करती है तो हमारा पूरा परिवार भूख हड़ताल पर बैठेगा. रंजीत जाधव ने मेडल नीलाम करने को लेकर बताया कि हमारे साथ मुख्य परेशानी ये है कि हमे मेडल का वास्तविक मूल्य नहीं पता
इसके लिए भी जाधव का परिवार राज्य सरकार से मांग कर रहा है कि वह मेडल का वास्तविक मूल्य का आंकलन करे और मेडल का सही मूल्य बताए. जाधव ने अपने पिता की उपलब्धियों को याद करते हुए कहा कि उनके पिता अपने देश के लिए और मेडल जीतवाना चाहते थे, भारत को ओलंपिक में दूसरा पदक जीतने के लिए 44 साल का इंतजार करना पड़ा था, साल 1996 में लिएंडर पेस ने टेनिस में कांस्य पदक जीता था.
गांव के लोगों को इस बात का भी दुख है कि ओलंपिक हीरो को सरकार ने अब तक कोई सम्मान तक नहीं दिया है. मेडल की नीलामी के बात सुनने के बाद सरकारी अधिकारियों का कहना है कि वह खुद व्यक्तिगत तौर पर मुख्यमंत्री से बात करेंगे और साथ ही परिवार की मुलाकात उनसे कराने का प्रयास करेंगे.
(साभार: फर्स्टपोस्ट हिंदी)