महावीर जयंती पर विशेष: ये हैं ऐतिहासिक और खूबसूरत जैन समाज के मंदिर

पटना । पटना की पहचान आध्यात्मिक शहर के रूप में भी है। हर धर्म के लोग और उनसे जुड़े स्थल इस शहर को खास बनाते हैं। शहर में कई जैन मंदिर भी हैं, जो ऐतिहासिक होने के साथ खूबसूरत भी हैं। महावीर जयंती पर बात पटना के ऐसे ही खास जैन मंदिरों की।

पटना साहिब स्टेशन से सटे बेगमपुर में लगभग 400 वर्ष प्राचीन दादाबाड़ी जैन मंदिर श्रद्धा व शांति का तीर्थ धाम है। तीस हजार वर्गफुट में फैला यह श्रद्धास्थल देश के प्राचीन दादाबाडिय़ों में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है।


मंदिर समिति के पदाधिकारी प्रदीप जैन ने बताया कि प्रीवक आचार्यो में भारतीय संस्कृति के ज्योतिर्धर चार दादागुरुओं दादा जिनदत्त सूरिजी, दादा मणिधारी जिनचंद्रसूरि, दादा जिनकुशल सूरिजी व दादा जिनचंद्र सूरिजी के नाम इतिहास में उल्लेखित हैं। इनकी गणना बारहवीं व तेरहवीं शताब्दी के महापुरुषों में होती है। चारों दादा गुरुओं को जीवंत बनाए रखने के लिए देश-विदेश में कई ऐतिहासिक स्मारक दादाबाड़ी के नाम से बनाए गए जिसमें बेगमपुर दादाबाड़ी भी शामिल है।


परिसर में औषधालय और पुस्तकालय भी


दादाबाड़ी जैन मंदिर में प्रतिदिन पूजा-अर्चना, दर्शन, आरती होती है। दो दशकों से प्रत्येक पूर्णिमा को चारों दादागुरुओं की जयंती व स्वर्गारोहण दिवस पर 20 बड़ी पूजा धूमधाम से होती है। इस प्राचीन मंदिर के पीछे भैरोजी का मंदिर स्थापित है। 30 हजार वर्गफुट में फैले क्षेत्र के उद्यान में सैकड़ों पेड़-पौधे पर्यावरण के दृष्टिकोण से लाभदायक है। परिसर में स्थापित आराधना भवन में प्रवचन, ध्यान, साधना, वाचनालय समेत अन्य गतिविधियां जारी रहती है। यहां जैन संस्कृति से जुड़ी सैकड़ों पुस्तकें ज्ञान-पिपासुओं की प्यास बुझाती है। परिसर में एक होमियोपैथिक औषधालय में कुशल चिकित्सक द्वारा प्रतिदिन सैकड़ों रोगियों का इलाज किया जाता है। यहां प्रत्येक महीने की चार तारीख को बच्चों को मुफ्त टीका दिया जाता है। दादाबाड़ी परिसर में दो प्राचीन कुएं हैं। जीवदया जैनों का मूल सिद्धान्त होने के कारण प्रतिदिन यहां चिडिय़ों को दाना-पानी दिया जाता है।


महामुनि सुदर्शन स्वामी का निर्वाण स्थल है कमलदह


गुलजारबाग स्टेशन के सटे कमलदह क्षेत्र स्थित गुलजारबग दिगम्बर जैन मंदिर और धर्मशाला महामुनि सुदर्शन स्वामी का निर्वाण स्थल है। श्री महामुनि सुदर्शन निर्वाणोत्सव के प्रचार मंत्री वीरेन्द्र कुमार जैन ने बताया कि धर्मशाला मंदिर में भगवान नेमिनाथ की तीन फुट की कृष्ण वर्ण पद्मासन प्रतिमा है जो संवत 1940 में प्रतिष्ठित हुई है।


मूलनायक के अलावा छह धातु-प्रतिमाएं हैं। इनमें एक चौबीसी और एक खड्गासन प्रतिमा सुदर्शन स्वामी की है। इन प्रतिमाओं में एक संवत 1629 तथा दूसरी संवत 1700 की है। बीच में सुदर्शन मुनि के चरण विराजमान हैं। मंदिर शिखरबद्ध है। धर्मशाला के नीचे 16 कमरे हैं और एक विशाल हॉल है। इसी हॉल के ऊपर पहली और दूसरी मंजिल में 16 अत्याधुनिक कमरे बने हैं।


इस मंदिर व धर्मशाला का प्रबंध पूर्व में छपरा के दिगंबर जैन बंधु करते थे। बाद में इसका प्रबंधन पटना के कन्हैया जी के सुपुर्द कर दिया गया। वर्ष 1920 से इसका प्रबंध बिहार स्टेट दिगंबर जैन तीर्थ क्षेत्र समिति को सुपुर्द कर दिया गया। जैन बंधुओं के सहयोग से मंदिर व धर्मशाला का विकास हुआ।


ऐसी मान्यता है कि कमलदह क्षेत्र धर्मशाला के समीप ही सड़क की दूसरी ओर कमल सरोवरों व पेड़ों के बीच एक टीले पर दिगम्बर जैन महामुनि सुदर्शन स्वामी का पौष शुक्ल पंचमी को निर्वाण हुआ था। उसी स्थान पर रमणीक मंदिर बना है। मंदिर में सोलहवीं-सतरहवीं सदी के प्राचीन चरण श्याम पाषाण विराजमान हैं। इस मंदिर में देश के कोने-कोने से जैन तीर्थ यात्री आकर महामुनि सुदर्शन स्वामी की पूजा-अर्चना करते हैं।


65 साल पहले पड़ी मीठापुर दिगम्बर जैन मंदिर की नींव


मीठापुर स्थित श्री दिगम्बर जैन मंदिर का निर्माण लगभग छह दशक पहले हुआ। इस मंदिर से लंबे अर्से से जुड़े सुरेंद्र जैन बताते हैं, 1950 के दशक में इस मंदिर की नींव पड़ी। उस समय हमारे पूर्वजों ने इस मंदिर की स्थापना के लिए काफी जतन किए।


जैन धर्म से जुड़े लोगों ने पाई-पाई जमा कर इस मंदिर का निर्माण कराया। देश भर में फैले जैन धर्म के अनुयायियों ने इस मंदिर के निर्माण के लिए पैसे भेजे। जैन धर्म में दिगम्बर संप्रदाय को मानने वाले श्रद्धालु जैन धर्म में नियम है कि मंदिर में हाजिरी लगाकर ही दिन की शुरुआत करनी है।


सुरेंद्र जैन बताते हैं, हमलोग सुबह-सुबह स्नान करने के बाद सबसे पहले भगवान महावीर का दर्शन करते हैं। उसके बाद ही कोई कार्य करते हैं। यहां तक की महिलाएं भी सुबह-सुबह स्नान करने के बाद पहले मंदिर जाती हैं, उसके बाद ही किचन में प्रवेश करती हैं। अहिंसा व शांति के प्रतीक भगवान महावीर की शक्ति मंदिर में महसूस होती है। मंदिर के प्रवेश करते ही मन के सारे क्लेश पल भर में दूर हो जाते हैं। पूरे मंदिर परिसर में असीम शांति व सुकून महसूस होता है।


राजस्थानी कारीगरों ने बनाया पार्श्‍वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर


साल 2017 में कदमकुआं स्थित श्री 1008 पार्श्‍वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर स्थापित हुआ। खास बात यह कि इस मंदिर का इंच-इंच संगमरमर से बना हुआ है। सफेद संगमरमर से बने होने के कारण यह मंदिर दिन हो या रात दुधिया रोशनी में नहाया हुआ दिखता है। इस मंदिर से जुड़े मुकेश जैन बताते हैं, हाल के वर्षों में शहर तेजी से फैलता गया। जैन परिवार भी शहर के अलग-अलग हिस्सों में बसने लगे।


शहर के दूर-दराज हिस्से से मीठापुर जैन मंदिर जाना मुश्किल हो रहा था। इस वजह से जैन धर्म के अनुयायियों ने कांग्रेस मैदान के पास एक और जैन मंदिर स्थापित किया। इस मंदिर का उद्घाटन साल 2017 के जनवरी में तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोविंद द्वारा किया गया। खास बात यह कि इस मंदिर का निर्माण राजस्थान के कारीगारों ने किया है।


गुरु  की देखरेख में बना यह मंदिर


मुकेश जैन बताते हैं, इस मंदिर का निर्माण जैन धर्म के गुरु श्री शीतल सागर की देखरेख में हुआ है। मंदिर के निर्माण कार्य के समय वे यहां लगभग चार महीने रुके थे। उन्होंने मंदिर की आंतरिक बनावट पर विशेष निगरानी रखी। मंदिर का निर्माण कार्य तीन साल में पूरा हुआ।


देशभर में फैले जैन धर्म के अनुयायियों ने पैसे भेजकर इस मंदिर का श्रद्धा से निर्माण कराया। हमने इस मंदिर के निर्माण के लिए कोई चंदा नहीं लिया। यह मंदिर छह कठ्ठे के विशाल परिसर में फैला हुआ है। इस मंदिर में महावीर धर्म के 22 वें तीर्थंकर पार्श्‍वनाथ की पूजा की जाती है। आने वाले समय में इस मंदिर में 24 कमरे वाला धर्मशाला बनाने की योजना है। जिसमें दो मैरेज हॉल भी बनाए जाएंगे।


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