महिलाओं के स्वनियोजन की दिशा में काम कर रही हैं सरिता

नई दिल्ली। आबादी के विस्तार के कारण आज बेरोजगारी बड़ी समस्या बन गई है, लेकिन आबादी के नियोजन के लिए समूह व निजी स्तर पर प्रयास किया जाए तो इस समस्या से बहुत हद तक उबरा जा सकता है। कुछ इसी सोच के साथ मंगोलपुरी के जी -94 में रहने वाली सरिता पुनर्वासित कालोनियों में रहने वाली महिलाओं के स्वरोजगार की दिशा में काम कर रही हैं।

साधारण परिवार से जुड़ी व मूल रूप से बिहार के मुंगेर जिले की रहने वालीं 38 वर्षीय सरिता चार सालों से स्वयं सहायता समूह के माध्यम से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम कर रही हैं। उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि घरों की चौखट के अंदर रहने वाली मंगोलपुरी की आज एक सौ से ज्यादा महिलाएं छोटे-मोटे काम कर परिवार के लिए आर्थिक उपार्जन कर रही हैं। सरिता ने ऐसी महिलाओं को न केवल आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया है, बल्कि उनके जीवन में आत्मविश्वास भी भरने का काम किया है।

वे कहती हैं कि उनके जीवन में यह बदलाव तब आया, जब वे महिलाओं के उत्थान के लिए काम करने वाली संस्था डॉ. एबी बालिगा मेमोरियल ट्रस्ट से जुड़ीं। इस संस्था से जुड़ने के बाद उनके जीवन में बदलाव आया और उसे अहसास हुआ कि घरेलू महिलाएं भी छोटे मोटे काम कर पैसा कमा परिवार के भरण पोषण में सहयोग कर सकती हैं। वह इस संस्था के स्वयं सहायता समूह से जुड़कर आत्मनिर्भर हुईं, इसके बाद मंगोलपुरी के जी ब्लाक, एफ ब्लाक, एफ एक ब्लाक की महिलाओं का स्वयं सहायता समूह बनाया और उन्हें बैंकों से कर्ज दिलाने का काम प्रारंभ किया।

यही कारण है कि आज रजनी, किरण, वीणा, ऊषा, विजय, सरोज राज राखी जैसी कई महिलाएं ब्यूटी पार्लर, कास्मेटिक की दुकान, सब्जी की दुकान, मोमोज की दुकान खोलकर कुछ घंटों में इतना कमा लेती हैं कि उनके परिवार का भरण पोषण हो जाता है। सरिता की उपलब्धियों के कारण ही वे आज संस्था से जुड़ी 30 स्वयं सहायता समूह की महिलाओं का नेतृत्व कर रही हैं। उन्होंने खुद भी अपने स्तर से अब तक पांच स्वयं सहायता समूह का गठन किया, जिसे उन्होंने गुलशन नाम दिया है। स्वयं सहायता समूह में 20 महिलाएं होती हैं।

Leave a Reply