मुस्लिमो का गहरा नाता है अमरनाथ यात्रा से, जानें कैसे
अमरनाथ यात्रा ज्येष्ठ पूर्णिमा को 27 जून से आरंभ हो गई है, जो श्रावण पूर्णिमा को 26 अगस्त तक चलेगी। अमरनाथ धाम भगवान शिव का एक ऐसा तीर्थ है, जिससे ना सिर्फ हिंदूओ की आस्था जुड़ी हुई है बल्कि मुसलमान भी इस तीर्थ में विश्वास रखते हैं। यह सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं है बल्कि हिंदू और मुसलमानों को एक साथ जोड़ने का सूत्र भी है। आइए, देखें इस तीर्थस्थल से मुसलमानों का कैसे गहरा नाता है…
अमरनाथ गुफा की खोज का श्रेय एक गडरिये को दिया जाता है। बूटा मलिक नामक एक मुस्लिम गडरिया एक दिन भेड़ चराते-चराते बहुत दूर निकल गया। बूटा स्वभाव से बहुत विनम्र और दयालु था। ऊपर पहाड़ पर उसकी भेंट एक साधु से हुई। साधु ने बूटा को एक कोयले से भरी एक कांगड़ी ( हाथ सेकनेवाला पात्र ) दिया। बूटा ने जब घर आकर उस कांगड़ी को देखा तो उसमें कोयले की जगह सोना भरा हुआ था। तब वह उस साधु को धन्यवाद करने पहुंचा।
लेकिन वहां साधु नहीं मिले और एक गुफा दिखी। जब बूटा मलिक ने उस गुफा के अंदर जाकर देखा तो बर्फ से बना सफेद शिवलिंग चमक रहा था। उसने यह बात गांवालों को बताई और इस घटना के 3 साल बाद अमरनाथ की पहली यात्रा शुरू हुई। तभी से इस यात्रा का क्रम चल रहा है। बूटा मलिक के वंशज आज भी इस गुफा और शिवलिंग की देखरेख करते हैं।
महाभारत काल से लेकर 11वीं शताब्दी के मध्य तक के कश्मीर का वर्णन करनेवाले संस्कृत ग्रंथ राजतरंगिणी के अनुसार, जैनुल आबीदीन (1420-1470) ने अमरनाथ गुफा की यात्रा की थी। उस दौरान वह नदी के दूसरे छोर पर कैनल का निर्माण करा रहे थे।
फ्रेंच फिजिशियन फ्रांसिस बार्नर ने अपनी पुस्तक ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एंपायर’ में मुगल बादशाह औरंगजेब के साथ कश्मीर यात्रा का वर्णन किया है, जिसमें बताया गया है कि कैसे वहां के मनोहर दृश्य ने उनका मन मोह लिया था और औरंगजेब भी अमरनाथ गुफा तक पहुंचा था। बार्नर ने 1656-1668 के बीच कश्मीर की यात्रा की।