मेवाड़ की रग-रग में बहता रहा स्वाभिमान और आत्मसम्मान, एक किस्सा
मेवाड़ के राजा-महाराजाओं के ही नहीं, वहां के जन-जन के साहस एवं स्वाभिमान के किस्से दुनिया में चर्चित हैं। कहा जाता है, हर मेवाड़ी मातृभूमि की रक्षा और स्वाभिमान के लिए अपनी जान देने को तैयार रहता है। एक बार मेवाड़ के राज परिवार से जुड़ा एक चारण अकबर के दरबार में पहुंचा। बादशाह का अभिवादन करने से पहले उसने अपनी पगड़ी उतार दी। पगड़ी उतारकर अभिवादन करने से अकबर को क्रोध आ गया। लेकिन खुद को नियंत्रित करते हुए उन्होंने कहा, ‘राजपूत राजा का चारण होने के कारण तुम्हें राज दरबार के नियम-कायदे की समझ तो होगी ही। तुम्हें पता होगा कि एक चारण को नंगे सिर बादशाह का अभिवादन नहीं करना चाहिए। फिर तुमने ऐसा क्यों किया?’
चारण बोला, ‘जहांपनाह, गुस्ताखी माफ हो। मुझे दरबार के इस नियम का ज्ञान है कि एक चारण को राजदरबार में अभिवादन करते समय पगड़ी नहीं उतारनी चाहिए। लेकिन मेरे सिर पर जो पगड़ी है, वह कोई कपड़े की मामूली पगड़ी नहीं है।’ अकबर ने पूछा, ‘क्या इसमें हीरे-जवाहरात जड़े हैं कि सिर झुकाते ही वे छिटक कर गुम हो जाएंगे?’
चारण ने कहा, ‘हुजूर, यह सचमुच बहुमूल्य है, हीरे-जवाहरात से भी ज्यादा कीमती है। महाराणा प्रताप ने घास की रोटी खाने पर मजबूर होते हुए भी मुझे यह पगड़ी भेंट की थी। कहा था, इसकी लाज रखना। जंगलों की खाक छानने और घास की रोटियां खाने के बावजूद महाराणा आपके सामने कभी नहीं झुके तो उनके द्वारा दी गई पगड़ी को आपके सामने झुकाने का मुझे कोई अधिकार नहीं है। मैं ऐसा करता तो उनके स्वाभिमान को चोट पहुंचती। एक चारण अपनी जान दे सकता है, लेकिन ऐसा नहीं कर सकता जिससे स्वामी का स्वाभिमान आहत हो।’ चारण की बात सुनकर अकबर ने कहा, ‘मैं तुम्हारे स्वाभिमान से बहुत खुश हूं।’ उन्होंने उस चारण को ढेर सारा इनाम देकर विदा किया।