ये रिश्ता क्या कहलाता है…

गांव में कमल की एक छोटी दुकान थी। दुकान में सभी तरह का सामान रखा हुआ था। इसी गांव में एक बूढ़ी औरत असर्फी देवी रहती थी। वह बेसहारा और विधवा थी। वह एक कमरे वाले मकान में अकेले रहती थी। वह कमल की दुकान से उधार में सामान ले जाती थी और महीने बाद पैसे दे देती थी। कमल और उसकी पत्नी नीरू से उसकी अच्छी पहचान हो गई थी। कमल के अपने मां-बाप नहीं थे। इनकी सात साल की बिटिया थी।

एक दिन दोनों ने आपस में विचार किया कि क्यों न हम असर्फी देवी को अपने घर ले आएं। हमें मां मिल जाएगी और असर्फी देवी को सहारा मिल जाएगा। एक सुबह वे दोनों असर्फी देवी के घर गए। वहां देखा दरवाजा अंदर से बंद था। बहुत देर तक वे दरवाजा खटखटाते रहे। अंदर से कोई आहट न हुई।

उन्होंने पड़ोसियों के सहारे दरवाजा तोड़ दिया। अंदर देखा असर्फी देवी बिस्तर पर मृत पड़ी थी। उसके हाथ में एक पत्र था, उसमें लिखा था ''बेटा कमल! मैं तेरा उधार न दे सकी, इसका मुझे बहुत दुख है। इस बार मेरी बुढ़ापा पैंशन नहीं आई। दूसरा मुझे दो दिन से तेज बुखार था। मैंने समझ लिया कि मेरा अंत अब नजदीक है। मैंने यह पत्र लिख दिया। मेरे पास सोने के दो कंगन हैं। मेरे तकिए के नीचे रखे हैं। इन्हें मैं अपना बेटा समझकर तुझे दे रही हूं, ले लेना।

 

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