रोहिंग्या का संकटमोचक

चीन ने म्यांमार में रोहिंग्या संकट से निबटने में एक महत्वपूर्ण पक्ष के रूप में सामने आने और शायद मध्यस्थ भी बनने की इच्छा का संकेत दिया है. 17 नवंबर से 20 नवंबर तक बांग्लादेश और म्यांमार की यात्रा करने वाले विदेश मंत्री वांग यी ने ढाका में वार्ता के बाद एक 'तीन-चरण' का राजनयिक प्रस्ताव पेश किया. नायपीइडाव की अपनी यात्रा के बाद वांग ने इस बात को रेखांकित किया कि चीन की भारी-भरकम वित्तीय ताकत इस पहल का समर्थन करेगी. उन्होंने इसके साथ ही नए 'चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे' की भी घोषणा की.

 

बीजिंग में विश्लेषक इस राजनयिक पहल को क्षेत्रीय समस्याओं से निबटने में एक आत्मविश्वासपूर्ण चीनी कूटनीति के एक पूर्व लक्षण के रूप में देख रहे हैं. चीन की अब तक की कूटनीति सतर्कतापूर्ण 'अपनी चमक छिपाकर चलो, अपने समय की प्रतीक्षा करो' की कहावत से निर्देशित होती थी. लेकिन विश्लेषकों के अनुसार, चीन अब इसे पीछे छोड़कर उस तरफ जा रहा है जिसकी घोषणा राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हाल ही में की थी. राष्ट्रपति शी ने अक्तूबर में 'नए युग' की घोषणा की थी जिसमें उन्होंने कहा था कि चीन दुनिया की 'केंद्रीय भूमिका' अपनाएगा. ऐसे में म्यांमार इस नए युग के एक परीक्षण-प्रयोग के रूप में उभर सकता है.

 

चीन ने 20 नवंबर को कहा कि उसके प्रस्ताव ने बांग्लादेश और म्यांमार दोनों से ''अनुमोदन प्राप्त कर लिया है''. इसमें म्यांमार के रखाइन प्रांत में शांति बहाल करने के लिए तीन चरणों का तरीका अपनाने की जरूरत पर जोर दिया गया है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, यहां से अगस्त से अब तक 6 लाख से अधिक रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश पलायन कर गए हैं.

 

पहले चरण में रोहिंग्या लोगों को लौटने और उन्हें सीमा पार भागने से रोकने का मौका देने के लिए जमीनी स्तर पर संघर्ष विराम का सुझाव है. दूसरे चरण में बांग्लादेश और म्यांमार को परस्पर संबंधों को मजबूत करने और 'समानता के आधार पर' समाधान खोजने के लिए प्रोत्साहित करना और समर्थन देना है. तीसरे चरण में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को रखाइन प्रांत को विकसित करने में सहायता करने की बात कही गई है.

 

यह कोई संयोग नहीं है कि बांग्लादेश और म्यांमार, दोनों में चल रही परियोजनाओं में चीन का अरबों डॉलर का निवेश जारी है. उन्होंने म्यांमार सरकार की सलाहकार आंग सान सू की के साथ बातचीत के बाद म्यांमार के साथ एक आर्थिक गलियारे का निर्माण करने की योजना की घोषणा की.

 

यह गलियारा मौजूदा 1.5 अरब डॉलर की एक पाइपलाइन पर आधारित होगा, जो (चीन के) युन्नान प्रांत को क्याउकपीयू बंदरगाह और एक विशेष आर्थिक क्षेत्र के साथ जोड़ती है. इस पाइपलाइन ने अप्रैल में बंगाल की खाड़ी से 2.2 करोड़ टन की वार्षिक क्षमता के साथ चीन को तेल देने की शुरुआत कर दी है. एक रणनीतिक विशेषज्ञ गु झियाओजांग ने पार्टी संचालित ग्लोबल टाइम्स से कहा कि गलियारा 'हिंद महासागर तक अधिक आसानी से पहुंचने की' और गारंटी देगा.

 

इसके पहले कि प्रेक्षक यह इंगित करने लगें कि चीन के रणनीतिक इरादे इस कूटनीति की वास्तविक प्रेरणा हैं, विद्वान चेन फेंगिंग कहते हैं कि ''गलियारा म्यांमार के संघर्ष को कम करने में मददगार होने के साथ क्वयांमार के लोगों के लिए बेहतर रोजगार और बेहतर जीवन स्तर प्रदान करके चीन और म्यांमार की सीमा पर स्थिरता सुनिश्चित कर सकता है.''

 

मौजूदा स्थिति में प्रस्ताव और चीन के इरादे, दोनों के बारे में जवाब कम, सवाल ज्यादा हैं. यह पूछे जाने पर कि क्या म्यांमार सरकार ने वास्तव में चीन से संघर्ष विराम का वादा किया है, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने विवरण नहीं दिया. उन्होंने यह भी नहीं कहा कि प्रस्तावित दूसरे चरण का अर्थ यह है कि चीन बांग्लादेश और म्यांमार के बीच अपने घरों से भाग गए लोगों की वापसी जैसे मुद्दों पर मध्यस्थता करना चाहता है.

 

यह कहना अभी थोड़ा जल्दी होगा कि चीन की यह योजना सफल होगी. लेकिन क्षेत्रीय नेतृत्व को जताने के लिए चीन की नई भूख बहुत स्पष्ट है. यह चीज अपने आप में क्षेत्र के लिए भारी जटिलताएं पैदा कर सकती है. खासकर तब जब इस क्षेत्र के दूसरे प्रमुख पक्ष भारत ने ऐसा करने का जरा भी इरादा नहीं दिखाया है.

 

  

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