वामन जयंती आज, इस अवतार में भगवान विष्णु ने दिखाए ये 5 चमत्कार, ऐसे करें पूजा

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन देशभर में वामन जयंती मनाई जाती है। इस बार यह पर्व 21 सिंतंबर, शुक्रवार को है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने वामन के रूप में अपना पांचवा अवतार लिया था। द्वादशी तिथि को मनाए जाने के कारण इसे वामन द्वादशी भी कहते हैं। श्रीमद् भागवत कथा के अनुसार, सतयुग में प्रहलाद के पौत्र दैत्यराज बलि ने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया था। सभी देवता भगवान विष्णु के पास अपनी परेशानी को लेकर जाते हैं। तब भगवान देवता को आश्वसन देकर कहते हैं कि शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मैं अदिति के गर्भ से जन्म लेकर स्वर्ग दिलवाउंगा। आइए जानते हैं वामन जयंती के बारे में खास बातें…
जब भगवान वामन राजा बलि के पास दान मांगने आए तो असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि को ऐसा करने से रोका। लेकिन बलि नहीं माने और दान देने के लिए तैयार हो गए। कोई अन्य उपाय ना देखकर शुक्राचार्य उस पात्र में समा गए जिससे जल लेकर राजा बलि दान करने जा रहे थे। इससे पात्र से जल नहीं निकल रहा था। भगवान वामन इसका कारण समझ गए और एक एक तिनका उठाकर पात्र के छिद्र चुभा दिया। तिनका जाकर शुक्राचार्य की आंख में लग गया इससे शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई और वह तड़पते हुए पात्र से बाहर निकल आए।
दैत्यराज बलि ने गुरू शुक्राचार्य की बात न मानकर दान देने का वचन कर लिया। भगवान वामन ने विशाल स्वरूप में एक पग में सभी लोग और दूसरे पगल में पूरी पृथ्वी को नाप लिया। भगवान ने दोनों ही पग में तीनों लोक नाप लिए।
भगवान वामन ने विशाल रूप धारण कर एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया, जिस पर दैत्यराज बलि ने अधिकार कर लिया था। जब तीसरा पैर रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने भगवान वामन को अपने सिर पर पग रखने को कहा। बलि के सिर पर पैर रखने से वह सुतल लोक पहुंच गया।
वामन, भगवान विष्णु के पांचवे तथा त्रेता युग के पहले अवतार थे। इसके साथ ही यह विष्णु के पहले ऐसे अवतार थे जो मानव रूप में प्रकट हुए थे। इन्होंने इस अवतार में अपना विराट स्वरूप के दर्शन राजा बलि को करवाए थे। इससे पहले इतने बड़े स्वरूप का दर्शन भगवान ने किसी अवतार में नहीं लिया था।
भगवान विष्णु ने वामन अवतार में बिना किसी अस्त्र-शस्त्र के देवताओं की राक्षसों से जीत दिलवाई थी। ऐसा भगवान के किसी भी अवतार में नहीं हुआ। इनको दक्षिण भारत में उपेन्द्र के नाम से भी जाना जाता है।
 

Leave a Reply