विस चुनावः दिग्गजों को अपना गढ़ बचा ‘अपनों’ को जितवाकर दिखाना होगा ‘दम’, दोहरी चुनौती
हरियाणा के चुनावी समर में कई दिग्गज नेताओं को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इन नेताओं को अपना गढ़ बचाते हुए ‘अपनों’ को जितवाकर ‘दम’ दिखाना होगा। इनमें वे नेता शामिल हैं, जो चुनाव की कमान भी संभाले हुए हैं, अपनों को चुनाव भी लड़ा और खुद भी रण में है। ऐसे में इनके लिए अपनी जीत ही नहीं, बल्कि अपनों की जीत भी इन दिग्गजों के लिए बड़ी प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है।
यह सभी दिग्गज नेता अपने हलकों में प्रचार के साथ-साथ अन्य सीटों पर भी अपने प्रत्याशियों के लिए प्रचार कर रहे हैं। कुछ नेता तो ऐसे हैं, जिन पर पूरे प्रदेश की जिम्मेवारी है, ऐसे में वे नेता अपने हलकों में खुद के चुनाव प्रचार पर ज्यादा समय नहीं दे पा रहे हैं। इन हलकों में इन दिग्गजों की कमान इनके समर्थकों ने संभाल रखी है। समय मिलने पर वे अपने हलकों में जनसभाओं को संबोधित करने पहुंचते भी रहते हैं।
सीएम मनोहर लाल : सीएम मनोहर लाल विधानसभा चुनाव में भाजपा का चेहरा है। भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास के साथ-साथ प्रदेश में करवाए गए मनोहर के कार्यों पर चुनाव लड़ रही है। नेतृत्व खुद सीएम मनोहर लाल कर रहे हैं। लगभग हर विधानसभा क्षेत्र में सीएम की जनसभाएं तय हैं। जिसके अनुसार मनेाहर लाल रोजाना हलकों में जाकर भाजपा प्रत्याशियों के लिए जनसभाएं कर रहे हैं। उधर, मनोहर लाल खुद भी करनाल सीट से प्रत्याशी हैं। लिहाजा उनके कंधों पर खुद की जीत के साथ-साथ प्रदेश में दोबारा सरकार वापसी करवाने की बड़ी जिम्मेवारी है।
पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा : हरियाणा में कांग्रेस की चुनाव प्रबंधन समिति के चेयरमैन भूपेंद्र सिंह हुड्डा हैं। यानी प्रदेश में कांग्रेस की जीत की बड़ी जिम्मेवारी हुड्डा संभाले हुए हैं। मगर हुड्डा खुद भी गढ़ी सांपला किलोई सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। इतना ही नहीं हुड्डा ने हाईकमान से अड़कर प्रदेश में कुल 90 सीटों में से 50 से अधिक विधानसभा सीटों पर अपने समर्थकों को टिकट दिलवाया है।
प्रदेश में कांग्रेस की खींचतान के बावजूद हाईकमान ने मध्यप्रदेश व पंजाब मॉडल की तर्ज पर हरियाणा में भी पूर्व सीएम हुड्डा पर ही भरोसा जताते हुए उन्हें आगे किया है। अब हुड्डा को खुद भी चुनाव जीतते हुए प्रदेश में कांग्रेस को एक बार फिर से उठाना है और अपने समर्थक प्रत्याशियों को विधानसभा की दहलीज तक ले जाना है।
पूर्व नेता प्रतिपक्ष अभय चौटाला : ताऊ के कुनबे में विघटन के बाद भंवर में फंसी ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इनेलो की कमान उनके छोटे बेटे अभय चौटाला के हाथ है। अभय ही चुनाव में इनेलो की ओर से चेहरा हैं। मगर वे खुद ऐलनाबाद सीट से चुनाव भी लड़ रहे हैं। वर्ष 2014 के चुनाव में इनेलो विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल बना था। लेकिन आज की मौजूदा सियासी परिस्थितियों में फिर से मुख्य विपक्ष दल बनना इनेलो के लिए बड़ी चुनौती है। ऐसे में यह चुनाव अभय की प्रतिष्ठा का बड़ा सवाल बना हुआ है।
पूर्व सीएलपी लीडर किरण चौधरी: पूर्व सीएम बंसीलाल की पुत्रवधु किरण ने भी कांग्रेस हाईकमान से अपने कुछ समर्थकों को टिकट दिलवाकर मैदान में उतारा है। इनमें किरण के अलावा परिवार के भी दो सदस्य भी शािमल हैं। किरण खुद भी तोशाम सीट से चुनाव लड़ रही हैं। ऐसे में किरण के कंधाें पर अपना किला बचाते हुए अपनों को जितवाने की बड़ी जिम्मेवारी है।
कुलदीप बिश्नोई: पूर्व सीएम भजनलाल के छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई आदमपुर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। हाईकमान से उन्होंने भी अपने कुछ अन्य समर्थकों को टिकट दिलवाकर चुनावी समर में आगे बढ़ाया है। कुलदीप के बड़े भाई चंद्रमोहन बिश्नोई भी पंचकूला सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। अपनी सीट के साथ-साथ अपने समर्थकों को भी जितवाना कुलदीप के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका है।
रणदीप सुरजेवाला: अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने भी अपने कुछ चहेतों को हाईकमान से चुनाव के लिए टिकट दिलवाई है। साथ ही रणदीप खुद भी कैथल सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। अब रणदीप के लिए खुद सीट की फतेह करते हुए अपनों को जितवाना इसलिए भी बढ़ी चुनौती बना हुआ है, क्योंकि जींद उपचुनाव में राहुल गांधी ने उन्हें मैदान में उतारा था, लेकिन रणदीप को इस उपचुनाव में शिकस्त खानी पड़ी थी।