श्राद्ध पिंडदान का सर्वोत्तम स्थान है ये, पुत्र को आया देखकर पितर मनाते हैं उत्सव

‘गया’ ऐसा स्थान है जहां श्राद्ध का महाकुंभ नजर आता है। प्रत्येक वर्ष लाखों की तादाद में लोग यहां अपने मृत पूर्वजों का श्राद्ध-तर्पण आदि करने के लिए उपस्थित होते हैं। पुरातन प्रज्ञा का प्रदेश बिहार की राजधानी पटना से करीब 92 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम अंत: सलिला फल्गु के पावन तट पर स्थित मगध प्रदेश का हृदय क्षेत्र गया विश्व के प्राचीनतम, धार्मिक, ऐतिहासिक व पुरातात्विक नगरों में अद्वितीय है। प्रतिवर्ष यहां पितृों की स्मृति में लगने वाला ऐतिहासिक पितृपक्ष मेला एक पखवाड़े तक चलता है। वैसे तो वर्ष भर ‘गया’ में श्राद्ध-पिंडदान सम्पन्न होते रहते हैं, पर प्रत्येक वर्ष भाद्रपद की पूर्णिमा से लेकर आश्विन माह की अमावस्या, जिसे पितृपक्ष महालया भी कहा जाता है, के मध्य इस कृत्य को करने का अपना विशिष्ट महत्व है।


हमारे धर्म शास्त्रों में बताया गया है कि यदि आप शीघ्र ही अपने पूर्वजों का उद्धार चाहते हैं, उन्हें मुक्ति दिलाना चाहते हैं, उन्हें नर्क की आग से बचाकर स्वर्ग भेजना चाहते हैं, उन्हें अन्य योनियों से मुक्ति दिलाना चाहते हैं तो ‘गया’ तीर्थ पर जाकर उनका श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि करें।


‘गया प्राप्तं सुतं दृष्टा पितृणामुत्सवो भवेत्।’ (वायु पु. उ. 43/9)


अर्थात श्राद्ध करने की दृष्टि से पुत्र को गया में आया देखकर पितरों के लिए उत्सव होता है।


पूर्वजों को तारने वाले सभी देवता, सर्वाक्षरमय ओंकार तथा सभी सुरसमाज सहित चराचर भगवान विष्णु यहां ‘गदाधर’ के नाम से निवास करते हैं। यहीं वह शिला भी है जो प्रेतयोनियों से मुक्त कराने वाली है। अंत: सलिला फल्गु नदी यहीं बहती है। गया जी वह स्थान है, जहां पूरे विश्व के हिंदू अपने पूर्वजों की मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान करने आते हैं। वायुपुराण के अनुसार-
गंगा पादोदकं विष्णो: फल्गुह्र्यादिगदाधर:।
स्वयं हि द्रवरूपेण तस्माद् गंगाधिकं विदु:।।
(वायु पु. उ. 49/18)


गयाजी पूर्वजों के उद्धार के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान है। जो कोई भी व्यक्ति पवित्र मन से यहां आकर तर्पण श्राद्ध आदि का कार्य सम्पन्न करता है तो उसके पितृगण संतृप्त हो अक्षयलोक प्राप्त करते हैं और कर्ता को भी पुण्यफल प्राप्त होता है।

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