सरकार ने लिया 14,000 पेड़ काटने का फैसला, दिल्ली में शुरू हुआ ‘चिपको आंदोलन’
दक्षिण दिल्ली में 7 कॉलोनियों के पुन: विकास के लिए सरकार ने 14,000 पेड़ काटने का फैसला लिया है. सरकार के इस फैसले के खिलाफ रविवार को स्थानीय लोगों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पर्यावरणविदों ने विरोध-प्रदर्शन किया.
सरोजनी नगर में लगभग 15000 प्रदर्शनकारियों ने पेड़ों को गले लगाकर चिपको आंदोलन की शुरुआत की. बता दें कि ‘चिपको आंदोलन’ की शुरूआत 1970 के दशक में उत्तराखण्ड (तब उत्तर प्रदेश) से हुई थी. इस आंदोलन के दौरान पेड़ों को कटने से बचाने के लिए लोग उनसे चिपक जाते थे.
सरोजनी नगर में प्रदर्शनकारियों ने राखी के प्रतीक के तौर पर पेड़ों को हरे रंग के रिबन बांधे और उनकी सुरक्षा का वायदा किया. सोशल मीडिया के जरिए जागरूकता पैदा करने के लिए एक वेल्फी (वीडियो सेल्फी) बूथ भी स्थापित किया गया है.प्रदर्शन के दौरान लोग "पेड़ बचाओ, दिल्ली बचाओ", "हम साफ हवा चाहते हैं" और "पेड़ों को बचाओ, वो आपको बचाएंगे" जैसी तख्तियों के साथ नजर आए.
प्रदर्शन में शामिल स्थानीय निवासी रमेश सिंह ने कहा कि हम पेड़ों को काटने नहीं देंगे, दिल्ली की हवा पहले ही इतनी खराब है और हम उसका समाधान ढूढ़ने की बजाए पेड़ काट रहे हैं.
बता दें कि वन विभाग ने हाल ही में केंद्र सरकार के कर्मचारियों की आवासीय सुविधाओं के पुन:विकास के लिए 14,000 पेड़ों को काटने की अनुमति दी है. एक सरकारी बयान के अनुसार सरोजनी नगर के 11,913 पेड़ों में से 8,332 को काटा जाएगा, नौरोजी नगर में 1,565 में से 1,465, नेताजी नगर में 3,906 में से 2,315, और मोहम्मदपुर में 562 पेड़ काटे जाने है. वहीं कस्तूरबा नगर में 723, श्रीनिवासपुरी में 750 और त्यागी नगर में 93 पेड़ों को काटा जाएगा.
सरकार के इस फैसले ने पर्यावरणविदों और स्थानीय निवासियों को नाराज कर दिया जिसके बाद रविवार को उन्होंने सड़क पर उतरकर प्रदर्शन किया. एक अन्य स्थानीय निवासी स्वाती चतुर्वेदी ने कहा, "क्षेत्र के विकास के अन्य तरीके भी हैं, जिनमें पेड़ काटना शामिल नहीं है."
इस मुद्दे पर सरकार ने यह कहते हुए अपने फैसले का बचाव किया था कि पुन:विकास से पेड़ों की संख्या में तीन गुना वृद्धि होगी, पेड़ों के काटने की क्षतिपूर्ति 1:10 के अनुपात में वृक्षारोपण कर की जाएगी. लेकिन स्थानीय निवासियों को सरकार के इस दावे पर संदेह है.
स्थानीय निवासी ओम नारायण ने कहा, "आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि एक पौधा 30 साल के एक पेड़ की जगह ले लेगा. पौधे को पेड़ बनने में लंबा समय लगेगा, तब तक पर्यावरण के साथ क्या होगा?" प्रदर्शनकारियों ने सरकार के फैसले को आत्मघाती बताते हुए इस पर पुनर्विचार का आग्रह किया है.
वहीं इस मुद्दे को लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन का कहना है कि ‘आप’ सरकार ने गैर-वन क्षेत्र में पेड़ काटने की अनुमति दी और फिर यह प्रचारित किया कि इसकी मंजूरी पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दी गई है.