सेना की कानूनी शाखा में महिलाओं को नियुक्त न करना भेदभाव : उच्च न्यायालय

दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज कहा कि भारतीय सेना के जज एडवोकेट जनरल (जेएजी) में विवाहित महिलाओं की नियुक्ति नहीं करना 'प्रतिकूल और सौ फीसदी भेदभाव' है.  कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर की पीठ ने एक वकील की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की. जनहित याचिका में वकील ने दावा किया है कि जेएजी सेवा में विवाहित महिलाओं को शामिल नहीं कर संस्थागत भेदभाव किया जाता है.

अदालत ने सरकार से जेएजी से 'विवाहित महिलाओं को बाहर' रखने का कारण पूछा. जेएजी सेना की कानूनी शाखा है.  पीठ ने कहा, 'आज महिलाएं लड़ाकू विमानों की पायलट हैं और आप कहते हैं कि वे (विवाहित महिलाएं) जेएजी के लिए उपयुक्त नहीं हैं. विवाहित महिलाओं को बाहर रखने का कारण क्या है? यह प्रतिकूल भेदभाव है. यह सौ फीसदी भेदभाव है.'

याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुई वकील चारू वली खन्ना ने कहा कि जेएजी में शामिल होने के बाद अविवाहित महिलाओं को शादी की अनुमति नहीं होती. इस पर केंद्र सरकार के वकील कीर्तिमान सिंह ने कहा कि यह प्रतिबंध अविवाहित पुरुषों और महिलाओं दोनों पर लागू होता है. नौ-दस महीने के प्रशिक्षण की अवधि के दौरान लागू होता है.

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