सेना में बीते जमाने की बात हो जाएगी इंसास राइफल, आ रही है ये गन
करीब 20 वर्ष बाद स्वदेश निर्मित इंसास राइफल आखिरकार सेना में सेवा से हटेगी। एक आयातित असॉल्ट राइफल उसका स्थान लेगी, जिसका निर्माण बाद में देश में किया जाएगा। इंसास का इस्तेमाल कारगिल युद्ध में भी किया गया था।
सूत्रों के मुताबिक 1988 में सेना में शामिल की गई ‘द इंडियन स्माल आर्म्स सिस्टम’ (इंसास) के स्थान पर अधिक कैलिबर (7.62 गुणे 51) की घातक असॉल्ट राइफल को शामिल किया जा सकता है। करीब ऐसे 18 विक्रेताओं ने सेना द्वारा सीमा पर और आतंकवाद निरोधक अभियानों में इस्तेमाल की जाने वाली करीब दो लाख ऐसी राइफलों को बदलने पर अपनी सहमति भेजी है। इनमें विदेशी हथियार निर्माण कंपनी से गठजोड़ वाली भारतीय कंपनियां भी शामिल हैं।
इंसास की संकल्पना 1980 के दशक के शुरुआत में शुरू हुई थी। बाद में उसे उत्पादन के लिए पश्चिम बंगाल में इचापुर आर्डिनेंस फैक्ट्री को सौंप दिया गया था। 1996 में सेना में शामिल किए जाने से पहले राइफल का डिजाइन बदल दिया था।
लंबी दूरी में प्रभावी नहीं इंसास :
रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक इंसास राइफल लंबी दूरी में प्रभावी नहीं है। इसलिए इसे सेवा से हटाना जरूरी हो गया था। असॉल्ट (7.62 गुणे 51) राइफल पहले से ही पाकिस्तानी सेना में शामिल है, जिसे उसने छोटे हथियार बनाने में विश्व की प्रमुख निर्माता जर्मन कंपनी ‘हेकलर एंड कोच’ से खरीदा था।
साल के अंत तक पूरी हो सकती है खरीद प्रक्रिया :
नई असॉल्ट राइफल खरीदने का प्रस्ताव पहले से ही ‘प्री एक्सेप्टेंस आफ नेसेसेटी’ (एओएन) स्तर पर है। उम्मीद है कि इन हथियारों की खरीद प्रक्रिया को तेज गति से संचालित करके इसे वर्ष के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा। सेना की प्राथमिकता फिलहाल पूर्वोत्तर के विशेष बल हैं। यह प्रस्ताव जल्द ही रक्षा खरीद समिति (डीएसी) के समक्ष आएगा।
प्रोद्योगिकी हस्तांतरित करनी होगी :
विदेशी विक्रेताओं के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में शामिल होना जरूरी होगा ताकि देश में असॉल्ट राइफल की गोला बारूद और उसके रखरखाव की कोई कमी न हो। ये हथियार दुश्मन को 500 मीटर के प्रभावी रेंज में मार सकते हैं।