हरियाणा विसः कई मायनों में दिलचस्प रहा चुनाव, जनादेश तय करेगा दिग्गजों का सियासी भविष्य
हरियाणा का विधानसभा चुनाव इस बार कई मायनों में दिलचस्प रहा। चुनावी रण में खुली बगावत भी देखने को मिली, सियासी दल-बदल का खेल भी दिखा, राजनीतिक पार्टियों के चाणक्यों के कूटनीतिक पैंतरे भी चले और विरोधियों के शिकस्त देने के लिए पूरी जोर आजमाइश भी हुई। अब चुनावी नतीजों का बेसब्री से इंतजार है, क्योंकि हरियाणा का यह जनादेश सूबे के कई दिग्गजों का सियासी भविष्य तय करने वाला है।
हरियाणा की कुल 90 विधानसभा सीटों पर चुनावी माहौल पूरी तरह से गरमाया रहा। सत्ता हासिल करने की बेताबी ने इस सियासी लड़ाई को रोमांचक बनाए रखा। सीधी टक्कर भाजपा और कांग्रेस के बीच दिखी। मगर कई सीटों पर चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय भी दिखाई दिया। राष्ट्रीयों के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों ने भी कुछ सीटों पर मुकाबला कड़ा बनाया। जबकि आजाद प्रत्याशियों ने भी ताकत झोंकने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ी।
हरियाणा के रण में इस बार सियासी लड़ाई सत्ता के साथ-साथ दिग्गजों व दलों के वर्चस्व और वजूद की भी रही। सीएम मनोहर लाल, पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अभय चौटाला, पूर्व सांसद दुष्यंत चौटाला, पूर्व सांसद राजकुमार सैनी, नवीन जयहिंद, योगेंद्र यादव समेत अन्य दिग्गजों ने सियासत की इस लड़ाई को अपने क्षमताओं और नेतृत्व के साथ बखूबी लड़ा। मगर अब आने वाला जनादेश इन दिग्गजों के लिए भावी सियासत संभावनाएं तय करेगा।
हुड्डा-सैलजा की कड़ी परीक्षा था चुनाव
बिखराव में बंटी कांग्रेस की कमान हाईकमान ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा को उस वक्त सौंपी गई, जब प्रदेश विधानसभा चुनाव का मुहाने पर आ पहुंचा था। जबकि पूर्व सीएम हुड्डा खुद को कमान सौंपे जाने को लेकर हाईकमान से काफी समय से संघर्ष कर रहे थे। चुनाव से ठीक पहले कार्यवाहक राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कुमारी सैलजा और हुड्डा को हरियाणा में विधानसभा चुनाव की कमान सौंपी।
कांग्रेस के इन दोनों दिग्गजों ने बिखराव को समटेने का प्रयास करते हुए चुनावी मोर्चा संभाला। मगर बारी जब कांग्रेस के टिकट वितरण की आई, तो राहुल गांधी के करीबी पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर समेत टिकट के चाहवान कई कांग्रेसियों ने खुली बगावत कर दी। तंवर पार्टी छोड़कर चले गए और करीब चौदह नेता बागी बनकर कांग्रेसी प्रत्याशियों के खिलाफ ही बतौर आजाद प्रत्याशी मैदान में उतर गए। इससे कांग्रेस थोड़ी असहज जरूर हुई।
लेकिन पूर्व सीएम हुड्डा और सैलजा का कहना है कि जनता इस बार कांग्रेस को दोबारा सत्ता में लाने का मन बना चुकी है, इसलिए हरियाणा में कांग्रेस का अभियान ‘इब्बकै कांग्रेस’ को जनता का समर्थन मिला है और इसी के चलते कांग्रेस अपनी सरकार जरूर बनाएगी। सैलजा के अनुसार समय कम था, मगर उसके बावजूद हमने चुनाव में बहुत अच्छा किया है, जनता का आशीर्वाद जरूर मिलेगा। बहरहाल, अब जनादेश ही बताएगा कि कांग्रेस केइन दिग्गजों के प्रयास और कांग्रेस के बागियों का सियासी भविष्य किस ओर बढ़ेगा।
शाह-मोदी की उम्मीदों से जुड़ी ‘मनोहर’ जीत
भाजपा के लिए भी दोबारा सत्ता वापसी की डगर चुनौती पूर्ण दिखी। लोकसभा नतीजों से उत्साहित भाजपा ने हरियाणा में बहुत बड़ा लक्ष्य सेट किया ‘अबकी 75 पार’। भाजपा हाईकमान ने भी पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि इस बार भी चुनाव में इस लक्ष्य के साथ चेहरा सीएम मनोहर लाल ही रहेंगे।
टिकट वितरण में भी पूरी तरह सीएम मनोहर लाल की चली और दो मंत्रियों समेत कई विधायकों की टिकट भी इस बार कट गई। टिकट कटते ही कई सीटों पर भाजपा में भी बगावत हो गई, जबकि टिकट के चाहवान कई भाजपाई निष्क्रिय होकर घर बैठ गए। चूंकि लक्ष्य बढ़ा था, लिहाजा भाजपा ने बागियों के मान-मनौव्वल में कोई कसर नहीं छोड़ी।
उधर, मिशन बड़ा था, इसलिए भाजपा ने पूरी ताकत झोंकी रखी। जीत के लिए पीएम मोदी समेत शाह और अन्य भाजपा दिग्गजों ने भी पसीना बहाया। अब जनादेश बताएगा कि मनोहर के प्रयास मोदी और शाह की उम्मीदों पर कितने खरे उतरे और बागियों के लिए आगे क्या रहने वाला है।
जुदा राहों पर क्या पाया-खोया, तय करेंगे परिणाम
पूर्व उप प्रधानमंत्री ताऊ देवीलाल के कुनबे की दो पार्टियों पूर्व सांसद अजय चौटाला की जननायक जनता पार्टी और पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल पहली बार विधानसभा चुनाव में आमने-सामने थी। पिता-पुत्र की इन दोनों राजनीतिक पार्टियाें की राहें जुदा थी।
जजपा की जीत की जिम्मेदारी पूर्व सांसद दुष्यंत चौटाला ने अपने कंधों पर ली हुई थी, तो इनेलो की सफलता पूर्व नेता प्रतिपक्ष अभय चौटाला के प्रयासों पर टिकी थी। कुनबे के विघटन ने दोनों दलों के समाने चुनाव में चुनौतियों का पहाड़ खड़ा कर दिया। फिर भी दोनों दलों के दिग्गजों ने खूब पसीना बहाया। अब परिणाम यह बताएंगे कि दोनों दलों ने जुदा राहों पर चलते हुए कितना खोया और कितना पाया?
इनके लिए वजूद बचाने की थी जंग
इनके अलावा प्रदेश में आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, स्वराज इंडिया पार्टी, शिरोमणी अकाली दल, लोकस्वराज पार्टी का ‘36 गठबंधन’ इन दलों के लिए यह चुनाव वजूद बचाने की जंग थी। इन पार्टियों के दिग्गजों ने भी चुनाव में खूब जोर लगाया। इन दलों को भविष्य में आगे बढ़ना है, तो जीत से खाता खोलना होगा। अब देखना यह है कि उक्त दलों इन विधानसभा चुनाव में कितना आशीर्वाद मिलता है।