कुबेर और यक्षिणी की 2200 साल पुरानी प्रतिमा, धनतेरस के दिन उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

विदिशा: हर साल धनतेरस के दिन विदिशा का जिला पुरातत्व संग्रहालय श्रद्धा और आस्था का केंद्र बन जाता है. एक दिन के लिए यह म्यूजियम मंदिर के रूप में बदल जाता है, जहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु भगवान कुबेर जी की विशेष पूजा-अर्चना करने पहुंचते हैं. इस प्रतिमा का चित्र दिल्ली स्थित आरबीआई के प्रतीक में भी है. कुबेर जी के साथ उनकी पत्नी यक्षिणी की प्रतिमा भी रखी है. धनतेरस पर श्रद्धालुओं की भीड़ यहां आध्यात्मिक सुकून पाने आती है.

पुरातत्व संग्रहालय में कुबेर की विशेष पूजा

जिला पुरातत्व संग्रहालय में पूजन की शुरुआत करने वाले श्रद्धालु अर्पित उपाध्याय बताते हैं कि "हमने पहली बार साल 2008 में धनतेरस के दिन विशेष अनुमति लेकर जिला पुरातत्व संग्रहालय में भगवान कुबेर जी का पूजन किया था. उसके बाद हर साल धनतेरस के दिन भगवान कुबेर जी की पूजा होती है. ऐसे लगता है जैसे हम पुरातत्व संग्रहालय में नहीं, बल्कि किसी मंदिर में आए हैं, क्योंकि यहां श्रद्धालु भी आते हैं, पूजन होता है और बहुत अच्छा लगता है. मन को शांति मिलती है. बिल्कुल एक दिन का यह मंदिर बन जाता है."

पुरातत्व संग्रहालय में कुबेर जी की 12 फीट लंबी प्रतिमा स्थापित

जिला पुरातत्व संग्रहालय के वरिष्ठ मार्गदर्शक रामनिवास शुक्ला ने बताया कि "आज धनतेरस का दिन है और आज धन के देवता कुबेर की पूजा-अर्चना की जाती है. हमारे जिला पुरातत्व संग्रहालय में यक्ष की 12 फीट लंबी विशाल प्रतिमा फ्रंट गेट पर स्थापित है. इस प्रतिमा में सिर पर पगड़ी, हाथों में बाजूबंद, गले में ताबीज और हाथ में धन की गठरी दिखाई देती है. यह प्रतिमा सफेद बलुआ पत्थर की बनी हुई है.

यह प्रतिमा वर्ष 1962 में बेतवा और बेस नदी के संगम में मिली थी, जिसे वर्तमान में त्रिवेणी घाट कहा जाता है. वहां पर यक्ष और यक्षिणी का शायद बहुत विशाल मंदिर रहा होगा, जो कालांतर में ध्वस्त हो गया. जब नदी का जलस्तर कम हुआ तो प्रतिमा दिखाई देने लगी. उस समय लोगों ने उसे चट्टान समझकर उस पर कपड़े धोए. बाद में जब आकृति स्पष्ट हुई, तब 1962 में प्रतिमा को वहां से लाया गया और 1965 में पुरातत्व संग्रहालय की इमारत बनने पर उसे यहां स्थापित किया गया.

यक्षिणी और कुबेर की प्रतिमा त्रिवेणी घाट में हुई थी प्राप्त

इसी तरह विष्णु गैलरी में यक्षिणी की प्रतिमा है, जो यक्ष (कुबेर) की पत्नी हैं. उनके एक हाथ में धन का थैला और दूसरे हाथ में लेखा-जोखा की किताब है. उनके बाल खुले हुए हैं, पैरों में कड़े हैं और हाथों में बाजूबंद बंधे हुए हैं. यह प्रतिमा लगभग 2200 वर्ष पुरानी बताई जा रही है. इसकी लंबाई 7 फीट है. जबकि कुबेर (यक्ष) की प्रतिमा 12 फीट लंबी है. जो दिखाई दे रही है. लेकिन वास्तव में उसकी पूरी ऊंचाई 17 फीट है. यक्षिणी की प्रतिमा भी बेतवा और बेस नदी के संगम, त्रिवेणी घाट से ही प्राप्त हुई थी.

जिला पुरातत्व संग्रहालय के वरिष्ठ मार्गदर्शक रामनिवास शुक्ला ने बताया कि "जन समुदाय की धार्मिक आस्था को देखते हुए हम लोग यहां कुछ समय के लिए पूजा-अर्चना करने की अनुमति देते हैं. वैसे तो पुरातत्व विभाग के नियमों में पूजा-अर्चना निषिद्ध है, लेकिन लोगों की भावनाओं और धार्मिक आस्था को देखते हुए कुछ समय के लिए पूजन करने दिया जाता है. म्यूजियम शाम 5 बजे बंद हो जाता है, उसके बाद पूजन संभव नहीं है. सुबह 10 बजे जैसे ही म्यूजियम खुलता है, श्रद्धालुओं का पूजन और आस्था का सिलसिला लगातार चलता रहता है."

Leave a Reply