85 वर्ष की दादी ने 5 साल पहले कैंसर को हराया और अब कोरोना को मात दी, बोलीं

भोपाल कोरोना से डरने की नहीं, लड़ने की जरूरत है। जब हो गया तो हो गया… क्या डर के रहेंगे। वैसे मैं तो ठीक थी, लेकिन मेरे इकलौते बेटे मनोज अत्रे को पहले कोरोना हुआ था। शिवरात्रि के बाद तबीयत बिगड़ी थी, टेस्ट करवाया तो पॉजिटिव हो गया। उसके बाद मुझे, मेरी बेटी, मेरे नाती तन्मय और नातिन तन्वी को कोरोना हुआ। मनोज की तबीयत बिगड़ी तो सकलेचा अस्पताल में भर्ती करवाया। दो दिन बाद मेरी तबीयत भी खराब हो गई तो मैं भी बेटे के साथ उसी कमरे में भर्ती हो गई। मेरा बेटा 57 साल का है और मैं 85 वर्ष की हूं।

बेटा मुझे देखकर थोड़ा घबराया, लेकिन मैंने कहा कि अब कोरोना हो गया तो क्या डर के रहेंगे। लड़ना है तो ढंग से लड़ाे। डॉक्टर के नुस्खे (कोविड प्रोटोकॉल) भी अपनाओ और कुछ हमारी भी सुन लो। इस दौरान हमने दवाओं के साथ देसी नुस्खों का भी इस्तेमाल किया। हल्दी को सही मात्रा में पानी में मिलाकर उबालकर रख लेते थे और दिन में चाय की तरह घूंट-घूंट पीते थे। दिन में मां-बेटे दोनों भाप लिया करते। रात में सोते समय नमक के गरारे करते। छह दिन में बेहतर लगने लगा तो मैंने कहा, मनोज अब छुट्टी करवा लो। अपन चलेंगे तो दूसरे को बेड मिल जाएगा।

इसके बाद हम घर आ गए और लगातार दवाओं के साथ देसी नुस्खे भी आजमाए। मुझे मेरे नुस्खों पर पूरा यकीन है। पांच साल पहले मुझे कैंसर हो गया था और सेकंड स्टेज में था। तब भी मुझे ऑपरेशन की जरूरत नहीं पड़ी और न कीमो थैरेपी लेना पड़ी। डॉक्टर आश्चर्य मानते थे। जब कैंसर से जीत गई तो ये कोरोना क्या है? मैंने अपनी बेटी, नाती, नातिन को भर्ती होने से मना कर दिया और कहा कि दवाएं घर पर ले लो और मेरे नुस्खे अपनाओ। मैं ऐसा नहीं कह रही कि दवाओं की बजाय हम देसी तरीकों से कोराेना पर विजय हासिल कर सके, लेकिन हमारे देसी तरीकों में शरीर को स्वस्थ्य रखने की ताकत है। हमें उन पर पूरा विश्वास है।

आज भी हमारे परिवार के सदस्य बाहर का भोजन नहीं करते। हर दिन ताजा भोजन करते हैं। तांबे के बर्तन में पानी पीते हैं। शायद यही कारण है कि कोरोना हमारे ऊपर हावी नहीं हो पाया। हम ठीक होकर आए तो रिश्तेदार, परिजन और परिचित पूछते कि कैसे स्वस्थ हुए? अब उन्हें कौन समझाए कि जंग रोकर नहीं, हंसकर जीती जाती है। मैंने अपने परिवार कोे भी यही मंत्र दिया था। अब देखिए, पूरा परिवार स्वस्थ है।

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