25 दिसंबर को क्यों मनाते हैं क्रिसमस, जबकि अक्टूबर में जन्मे थे ईसा मसीह
25 दिसंबर को ईसाई समुदाय के लोग यीशू मसीह के जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं। मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि इस दिन ईसा मसीह का का जन्म नहीं हुआ था। कहा जाता है कि उनका जन्म अक्टूबर में हुआ था, लेकिन फिर भी ईसा मसीह का जन्मदिन मनाने के लिए इस दिन को चुना गया।
दरअसल, इसके पीछे एक दिलचस्प किस्सा है। चौथी शताब्दी से पहले ईसाई समुदाय इस दिन को त्योहार के रुप में नहीं मनाते थे। मगर, चौथी शताब्दी के बाद इस दिन ईसाईयों का प्रमुख त्योहार मनाया जाने लगा। माना जाता है कि यूरोप में गैर-ईसाई समुदाय के लोग सूर्य के उत्तरायण के मौके पर त्योहार मनाते थे। इस दिन सूर्य के लंबी यात्रा से लौट कर आने की खुशी मनाई जाती है, इसी कारण से इसे बड़ा दिन भी कहा जाता है।
इस दिन की प्रमुखता देखते हुए ही ईसाई समुदाय ने इस दिन को ईशू के जन्मदिन के रुप में चुना। क्रिसमस से पहले ईस्टर का पर्व ईसाई समुदाय का प्रमुख त्योहार माना जाता था। द न्यू इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका के अनुसार, सर्दियों के मौसम में सूर्य की रोशनी कम हो जाती थी, तो गैर-ईसाई इस मकसद से पूजा पाठ किया करते थे कि सूर्य
उनका मानना था कि सूर्य 25 दिसंबर से उत्तरायण होना शुरू होता है, लिहाजा वे लोग इस दिन को बड़ा दिन मानते थे। इस त्योहार और इसकी रस्मों को ईसाई धर्म गुरुओं ने अपने धर्म से मिला लिया और इसे ईसाइयों का त्योहार 'क्रिसमस-डे' नाम दिया गया। क्रिसमस के मौके पर क्रिसमस ट्री को सजाने की शुरूआत पहली बार 10वीं शताब्दी में जर्मनी में हुई। ऐसा करने वाला पहला व्यक्ति एक अंग्रेज धर्म प्रचारक बोनिफेंस टुयो था।
इसलिए सेंटा को करते हैं याद
सेंटा क्लॉज इस दिन बच्चों को गिफ्ट देते हैं। दरअसल, उनका पूरा नाम संत निकोलस था, जो जीसस की मौत के 280 साल बाद मायरा में जन्मे थे। सेंटा के बचपन में ही उनके माता-पिता की मौत हो गई थी और सेंटा को सिर्फ जीसस पर ही विश्वास बचा था। बड़े होने पर उन्होंने अपनी जिंदगी जीसस को समर्पित कर दी। पहले वह पादरी बने और फिर बिशप। वह आधी रात को बच्चों को गिफ्ट दिया करते थे, ताकि कोई उन्हें देख नहीं पाए। यह सिलसिला आज भी चल रहा है और लोगों को सेंटा का इंतजार रहता है।