क्या दिल्ली वालों की दीवाली हो पाएगी ग्रीन?
नई दिल्ली: दीवाली से पहले बद से बदतर होती दिल्ली की हवा को लेकर दिल्ली वालों के दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने भले हीं आदेश जारी कर रखा है कि इस बार दीवाली में सिर्फ ग्रीन क्रैकर्स का हीं उपयोग किया जा सकेगा.. लेकिन इस आदेश का पालन कराने वाली नियामक संस्था पेसो के पास जरुरी संसाधनों के अभाव के कारण फिलहाल ऐसा संभव नहीं दिख रहा है…
इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में डाली गई याचिकाकर्ता की पैरवी कर रहे वकील गोपाल शंकरनारायणन का कहना है कि भले हीं सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ग्रीन क्रैकर्स के प्रयोग का आदेश दिया हो. लेकिन इस आदेश का पालन कैसे हो.. इसके लिए पेसो के पास प्रर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं है.. फिलहाल आदर्श स्थिति यह हो सकती है कि पटाखों को बनाने वाले नए पटाखों का निर्माण करे और इसे पेसो "ग्रीन पटाखों'' के रुप में मान्यता दे…. लेकिन यह संभव नहीं दिख रहा है…
आपको बता दें कि देश में पेट्रोलियम और एक्सप्लोसिव सेफ्टि संस्थान (पेसो) पटाखों का निर्माण और उसकी खरीद बिक्री के संबंध से संबंधित नियमों के पालन की देख रेख करता है. इसके साथ हीं पटाखों में प्रयोग होने वाले केमिकल्स के आधार पर उसका वर्गीकरण भी करता है… वैसे भी माना जाता है कि पटाखों को बनाने के समय देश में लागू सुरक्षा व प्रदूषण के नियमों का पालन सही ढ़ंग से न हो पाता है.. जिस कारण निमार्णकर्ता बड़े पैमाने पर आसानी से और बिना भय के लागू नियमों का उल्लंधन किया जा रहा है. आपको बता दें कि देश के शीर्ष अदालत में 2001 से पटाखों के प्रयोग से संबंधित कई मामलें अदालत में चल रहे हैं…. जिसमें से ज्यादातर पटाखों से होने वाले ध्वनि प्रदूषण से संबंधित रहें हैं….
वैसे 2005 के जुलाई महीने में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश पारित कर पटाखों से होने वाले प्रदूषण के स्तर को कम करने से संबंधित आदेश पारित किया था. इस महत्वपुर्ण आदेश में कोर्ट ने पटाखों का वर्गीकरण उसमें प्रयोग होने वाले केमिकल्स के आधार पर किया था. साथ हीं सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में जरुरी दिशा -निर्देश भी दे रखा है…लेकिन 2005 के बाद के वर्षों में वायु की गुणवत्ता बद से बदतर होती गई और पटाखों की क्षमता बढ़ती गई. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का सही तरीके से पालन नहीं हो सका.
मार्च 2008 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पेसो ने पटाखों का ध्वनि के आधार पर 4 भागों में वर्गीकरण किया था….जिसमें एटम बम, चायनीज क्रैकर्स, मैरुनस और गारलैंड शामिल हैं… 2008 में हीं एक्सपलोसिव रुल भी देश में लागू किया गया था.. जिसमें जिसमें पटाखों की क्लास,क्टेगरी को शामिल किया गया था….. लेकिन नियमों के कड़ाई से पालन न होने के कारण इन नियमों का लगातार उल्लंधन हो रहा है. आपको बता दें कि आज भी पेसो और नेशनल पॉल्यूशन रेग्युलेटर सेंट्रल कंट्रोल बोर्ड के पास वायु की गुणवत्ता पर पटाखों के जलाने से होने वाले नुकसान को जानने की कोई सुविधा नहीं है….
अब जबकि दिल्ली के मुख्यमंत्री खुद राजधानी को गैस-चैंबर कह रहे हैं.. लेकिन अबतक ऐसी कोई भी रिसर्च राजधानी दिल्ली में नहीं हुई है, जिससे यह पता चल सके की दीवाली के समय पटाखें जलाने से आम लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा पर क्या प्रभाव पड़ता है… वैसे बढ़ते प्रदुषण को देखते हुए राजधानी केंद्र सरकार ने भी वायु प्रदूषण के नियमों का उल्लंघन करने वालों पर भी सख्त कानूनी कार्रवाई करने की बात भले कर रही हो. लेकिन नियमों और कानून को लागू करना काफी मुश्किल दिख रहा है…