भागवत, भगवान और भक्त एक-दूसरे के पूरक और पर्याय

इन्दौर । भगवान की भक्ति का मतलब यह नहीं है कि हम हिमालय पर चले जाएं या गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारी से पलायन कर लें। भक्ति गृहस्थ होते हुए करना ज्यादा चुनौतीपूर्ण काम है। प्रेम, दया, करूणा, सत्य जैसे गुणों का सृजन भक्तिमार्ग से ही संभव है। भक्ति किसी भी रूप में हो, उसका प्रतिफल अवश्य मिलता है। भागवत, भगवान और भक्त एक-दूसरे के पूरक भी हैं और पर्याय भी। 
ये दिव्य विचार हैं पुष्कर (राजस्थान) के अंतराष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के संत अमृतराम महाराज के, जो उन्होंने छत्रीबाग रामद्वारा पर सोमवार से प्रारंभ भागवत ज्ञान यज्ञ महोत्सव में आज व्यक्त किये। आयोजन समिति की ओर से देवेंद्र मुछाल, रामनिवास मोढ़, रामसहाय विजयवर्गीय तथा संयोजक श्यामा गौरी, हुकमचंद मोदी आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। रामद्वारा भक्त मंडल के रामसहाय विजयवर्गीय ने बताया कि भागवत कथा रविवार 26 मई तक प्रतिदिन प्रातः 8.30 से 12.30 बजे तक हो रही है। बुधवार 22 मई को दोपहर 12 बजे अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के जगदगुरू आचार्य स्वामी रामदयाल महाराज भी छत्रीबाग रामद्वारा पधारेंगे तथा कथा में आशीर्वचन भी प्रदान करेंगे।  
बालक धु्रव एवं भक्त प्रहलाद की भक्ति साधना की चर्चा करते हुए संत अमृतरामजी ने कहा कि सुरूचि और सुनीति के संशय में हम सब अपने लक्ष्य से विमुख हो जाते है। विडम्बना है कि हमें वृद्धावस्था में ही भक्ति का जुनून चढ़ता है। यदि बाल्यकाल से ही भक्ति के संस्कार मिलें, तो वृद्धावस्था सुधर जाती है। भक्ति के बीज बचपन में डालें जाना चाहिए, पचपन की उम्र में नहीं। बालक ध्रुव एवं प्रहलाद की भक्ति में निष्काम भाव था। उनकी भक्ति में पाखंड या प्रदर्शन नहीं था, इसलिए भगवान को खुद दौडकर आना पड़ा। भारत भूमि भक्तों की ही भूमि है।

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