सीकर लोकसभा नतीजे : सुभाष महारिया नहीं दिखा पाए पुरानी ताकत
राजस्थान के शेखावाटी की सबसे अहम सीकर लोकसभा क्षेत्र से इस बार सुभाष महरिया अपनी पुरानी पार्टी बीजेपी को चुनौती देने के मूड में थे, लेकिन ऐसा कर नहीं पाए. सीकर सीट पर उन्हें 474948 वोट मिले. जबकि उन्हें हराने वाली बीजेपी के सुमेधानंद सरस्वती को 772104 वोट मिले.
1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता डॉ. बलराम जाखड़ को हराकर बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के आंखों के तारे बने महरिया ने बाद में बीजेपी का दामन छोड़ दिया था. बीजेपी से लगातार तीन बार सीकर के सांसद और एक बार केन्द्रीय राज्यमंत्री रह चुके सुभाष महरिया आज शेखावाटी के उन चुनिंदा नेताओं में शुमार हैं, जिनका अपना एक बड़ा कद है.
सितंबर 1957 को जन्मे महरिया मूलत: सीकर के लक्ष्मणगढ़ तहसील के कूदन के रहने वाले हैं. महरिया की पारिवारिक पृष्ठभूमि कांग्रेस की रही है. महरिया के ताऊ रामदेव सिंह महरिया कांग्रेस का बड़ा नाम रहा है. रामदेव सिंह धोद क्षेत्र से कई बार विधायक रहने के साथ ही कांग्रेस की राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे थे. कांग्रेस की पृष्ठभूमि का होने के बावजूद बीजेपी के कद्दावर नेता भैरोंसिंह शेखावत ने सुभाष महरिया की प्रतिभा को देखकर उन्हें बीजेपी में लाकर 1996में सीकर लोकसभा चुनाव मैदान में उतारा. पहली बार हार के बावजूद पार्टी ने 1998 में फिर महरिया पर भरोसा जताया तो वे उस पर खरे उतरे और कांग्रेस के डॉ. हरिसिंह को हराकर सांसद बने.
बलराम जाखड़ का हराया तो बदल गए थे सितारे
1999 के चुनाव में महरिया ने जब कांग्रेस के दिग्गज नेता डॉ. बलराम जाखड़ को हराया तो वे पार्टी के आंखों के तारे बन गए. यहीं से उनका स्वर्णिम काल शुरू हुआ और उन्हें केन्द्र में राज्यमंत्री के पद से नवाजा गया. उसके बाद लगातार 2004 में भी पार्टी ने महरिया को चुनाव मैदान में उतारा तो उन्होंने हैट्रिक बनाई. लेकिन वे 2009 में महादेव सिंह से मात खा गए. 2014 जब पार्टी ने उनको टिकट से दरकिनार किया तो वे बगावती तेवरों के साथ चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन सफल नहीं हो पाए.
हार के बाद कांग्रेस का हाथ थामा
उसके बाद उन्होंने कांग्रेस का हाथ थामा. कांग्रेस ने भी महरिया की पारिवारिक पृष्ठभूमि और क्षेत्र में पकड़ को देखते हुए उनको उनकी पुरानी पार्टी को चुनौती देने के लिए चुनाव मैदान में उतार दिया. महरिया भी अब पूरे विश्वास के साथ बीजेपी को मात देने के लिए डटे हुए हैं. अब देखना यह है कि महरिया ने जिस तरह बीजेपी में सफलता की सीढ़ियां चढ़ी है क्या इसे वो कांग्रेस में दोहरा पाएंगे या नहीं.