गुजरात सरकार के मंत्री, विभागों के अधिकारियों ने अपने स्तर पर ही खुद को दे डाली क्लीनचिट

तक्षशिला आर्केड अग्निकांड में जान गंवाने वाले मासूम बच्चों की चिता की आग ठंडी भी नहीं हुई कि सरकार के हर स्तर पर लीपापोती करने की शुरुआत हो गई है। मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने भले ही शुक्रवार को हादसे के तुरंत बाद घटना की जांच प्रमुख सचिव को सौंपकर तीन दिन में रिपोर्ट देने के निर्देश दिए हों, लेकिन यहां रिपोर्ट का इंतजार किसको है?
 
सरकार के मंत्री हाें, या विभागों के आला अधिकारी, सबने अपने स्तर पर ही खुद को क्लीनचिट देने की खानापूर्ति कर ली है। मतलब, 22 बच्चों समेत एक टीचर की भयावह मौत का कोई दोषी है तो बस दोनों बिल्डर और क्लास संचालक। इनको पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया।

शिक्षा मंत्री ने मनपा पर दोष मढ़ा

शिक्षा मंत्री ने शुक्रवार को ही अपने विभाग को क्लीनचिट देते हुए सारा दोष महानगर पालिका पर मढ़ दिया था। शनिवार को इनसे भी एक कदम आगे निकलकर महानगर पालिका आयुक्त ने कह दिया कि उनके विभाग को कोई दोष नहीं है। मनपा को यह बिल्डिंग सूरत विकास प्राधिकरण (सूडा) से ट्रांसफर हुई थी। वह भी पहले से बनी हुई। बाद में एक मंजिल और बनी, उसकी अनुमति ले ली थी। जबकि, 15 मीटर से कम ऊंचाई की बिल्डिंग्स को तो फायर एनओसी की जरूरत ही नहीं।

मनपा ने पल्ला झाड़ा, सूडा ने कहा- हम भी दोषी नहीं

सूडा अधिकारियों से पूछा तो सीईओ ने भी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। प्राथमिक जांच में शॉर्ट सर्किट से एसी में आग लगने को कारण माना गया, लेकिन बिजली बोर्ड के अधिकारी भी हादसे को लेकर खुद को दोषी नहीं मानते। उनका कहना है कि हमारा कोई ट्रांसफार्मर वहां नहीं था। हमारी सभी लाइनें नीचे से गईं हैं। आग वहां होर्डिंग की वजह से लगी थी।

एक मंजिल नहीं, पूरी तक्षशिला बिल्डिंग ही थी अवैध, न नक्शा पास, न ही बीयूसी थी 

22 बच्चों की मौत की वजह बनी सरथाणा स्थित तक्षशिला आर्केड की पूरी बिल्डिंग ही अवैध है। बिल्डरों ने सिर्फ ग्राउंड फ्लोर की मंजूरी लेकर चार मंजिलें बना दी थीं। मनपा सूत्रों के मुताबिक, वर्ष 2001 में सूडा ने इस प्लान को पास किया था। तब ग्राउंड फ्लोर बनाने की इजाजत दी गई थी। वर्ष 2007-8 में यह बिल्डिंग मनपा की सीमा में आ गई तब बिना मंजूरी के इस पर तीन और अवैध मंजिल बना ली गईं। बाद में मनपा से वर्ष 2010 से 2013 के बीच ग्रुडा के नियम के तहत इंपैक्ट फीस भरके तीन मंजिलों के लिए सीओआर ले ली गई थी। 

ये नियम टूटे 
सूडा के सीईओ अमीत अरोरा का कहना है कि इस बिल्डिंग का वर्ष 2001 में प्लान ले आउट पास करवाया गया था, जिसके बाद यह मनपा की सीमा में आ गई। इसके बाद तीनों मंजिलों को वैध करने के लिए इंपैक्ट फीस भरी गई थी। कोई स्ट्रक्चर स्टेबिलिटी रिपोर्ट और बीयूसी रिपोर्ट नहीं बनाई गई थी। इंपैक्ट फीस भरने की वजह से सिर्फ ले आउट पास करवाया गया था वो भी सूडा में। 

ऐसे पल्ला झाड़ लिया मंत्री और अफसरों ने

शिक्षा मंत्री भरत चुड़ासमा ने कहा- यह पूरी तरह हमारा मामला नहीं है फिर भी हम इसमें कड़ी कार्रवाई करेंगे। महानगर पालिका की कमी रह गई। जिसका भी दोष होगा, रिपोर्ट आने के बाद उस पर कार्रवाई की जाएगी।
महानगर पालिका आयुक्त एम थेन्नारसन ने कहा- जब यह ले आउट प्लान मंजूर हुआ तो सूडा के अधिकार क्षेत्र में था। 15 मीटर से कम ऊंची इमारतों को हम फायर सेफ्टी के आधार पर नहीं जांचते। इसी वजह से इसे भी नहीं जांचा।
सूरत रूरल सर्किल के अभियंता जीबी पटेल ने कहा- हमारा कोई ट्रांसफार्मर वहां नहीं था। हमारी सभी लाइनें नीचे से गई हैं। आग वहां लगे होर्डिंग कि वजह से लगी थी। हमारा वहां ज्यादा कोई काम था, नहीं फिर भी फोरेंसिक की टीम ने सैंपल लिए हैं।
सूडा के सीईओ अमित अरोड़ा ने कहा- इस इमारत का वर्ष 2001 में प्लान ले आउट प्लान पास करवाया गया था। जिसके बाद यह मनपा के हद में आ गई। इसके बाद तीनों मंजिलों को वैध करने के लिए इंपैक्ट फीस भरी गई थी।

काेचिंग संचालक अरेस्ट दाे बिल्डर हुए फरार 
हादसे काे लेकर पुलिस ने शनिवार काे काेचिंग संचालक भार्गव भुटानी काे गिरफ्तार कर लिया है। दाे अन्य बिल्डर हर्षुल वेकारिया और जिग्नेश पालीवाल फरार हैं। पुलिस ने मामले में आईपीसी की अलग-अलग धाराओं में शुक्रवार रात काे ही इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। दाे अधिकारियाें काे सस्पेंड किया गया है। वहीं राज्य सरकार ने सभी काेचिंग पर राेक लगा दी है। उधर, हादसे के बाद शहर में शनिवार को विभिन्न स्कूलों के अलावा शहर के लोगों ने भी प्रदर्शन किया।

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