चिंतन करें कि बच्चों को ‘रिच’ बनाना चाहते हैं या ‘हैप्पी’ : जैनाचार्य रत्नसुंदर सूरीश्वर 

इन्दौर । वर्तमान युग में हमारी सुनने की आदत या क्षमता कम होती जा रही है। हमारी तीनों मातृ संस्थाएं जिनमें पिता-पुत्र, शिक्षक-विद्यार्थी तथा गुरू-शिष्य इसी रोग की शिकार हो गई है। एक समय था जब गलती करने से बेटा डरता था, लेकिन अब गलती निकालने में पिता को डरना पड़ता है। दरअसल, इस युग में लर्न टू लिसन, लर्न टू लेट गो, लर्न टू लव और लर्न टू लॉफ – इन चारों संदर्भों में हम अपनी संवेदनाएं खो रहे हैं। आज से तीन माह पहले हुए एक सर्वे में संपन्नता में भारत का स्थान 175 देशों में छटे क्रम पर था, जबकि हैप्पीनेस के मामले में हमारा देश 122वें स्थान पर आया है। रिचनेस और हैप्पीनेस के बीच इतना फासला क्यों। मोदीजी हमें रिच तो बना सकते हैं लेकिन हैप्पी बनाने की ताकत परमात्मा के सिवाय किसी और की नहीं हो सकती। चिंतन करें कि हम अपने बच्चों को रिच बनाना चाहते हैं या हैप्पी। सच तो ये है कि हमने कभी रिच और हैप्पी में अंतर ही नहीं समझा। यह प्रवचनमाला न शहर को, न किसी समाज को, न परिवार के सदस्यों को और न ही खुद को बदलने के लिए बल्कि मेरा भरोसा सिर्फ व्यक्ति पर है। यदि व्यक्ति बदलाव ले आए, तो परिवार, समाज, शहर, राष्ट्र और विश्व तक में परिवर्तन संभव है।     
ये दिव्य विचार हैं पद्मभूषण जैनाचार्य श्री रत्नसुंदर सूरीश्वर म.सा. के, जो उन्होंने आज दशहरा मैदान पर आयोजित परिवर्तन प्रवचनमाला के शुभारंभ प्रसंग पर महती जनसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इसके पूर्व इंद्रलोक कालोनी स्थित सर्वधर्म मंदिर से भव्य शोभायात्रा के साथ जैनाचार्य एवं देश के विभिन्न शहरों से पधारे करीब 40 साधु-साध्वी भगवंत दशहरा मैदान तक पहुंचे। शोभायात्रा में शहर के अनेक संगठनों, समाजों और धर्मो के प्रतिनिधियों ने उत्साह के साथ अपनी भागीदारी दर्ज कराई। मंगल कलशधारी महिलाएं, शांति और समृद्धि की प्रतीक पताकाएं लिए बालिकाएं, नाचते गाते भजन एवं गरबा मंडलियों के श्रद्धालु तथा निकट भविष्य में जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण करने वाले मुमुक्षु युवा-युवतियां भी इस यात्रा में शामिल थे। अहमदाबाद से आए कलाकार शोभायात्रा के आगे-आगे चलते हुए रंगोली से मनोहारी चित्रांकन भी कर रहे थे वहीं महिलाओं की ढोल ताशा पार्टी और भजनों की स्वर लहरियां बिखेरते हुए बैंड बाजे भी आकर्षण का केंद्र बने रहे। मार्ग में अनेक स्थानों पर शोभायात्रा में शामिल संतों का गरिमापूर्ण स्वागत हुआ। सर्वधर्म मंदिर पर जैनाचार्य एवं साधु-साध्वी भगवंतों ने सांई बाबा, गणेश एवं राधाकृष्ण मंदिर में भी दर्शन किए। दशहरा मैदान पहुंचने पर पहले से मौजूद हजारों भक्तों ने ‘गुरूजी हमारो अंतरनाद, हमने आपो आशीर्वाद‘ एवं महावीर स्वामी के जयघोष के बीच सभी संतो की अगवानी हुई। गुरू वंदना के बाद वरिष्ठ पत्रकार कृष्णकुमार अष्ठाना, श्याम सुंदर यादव, बड़नगर के समाजसेवी अमन बम, सुजानमल चोपड़ा एवं सुरेश डोसी ने दीप प्रज्वलन कर इस प्रवचनमाला का शुभारंभ किया। अतिथियों की अगवानी कांतिलाल बम, दिलीप डोसी, अर्पित मूणत, महेंद्र गांग, संजय कटारिया आदि ने की। मैदान पर एक कल्पवृक्ष की कलाकृति की छाया में बैठकर जैनाचार्य ने ‘रास्ता जो राम की ओर ले जाए’ विषय पर अपने प्रवचनों की शुरूआत बच्चे और भगवान के बीच स्वर्ग और नर्क के अंतर की कथा के साथ की। उन्होने कहा कि सारे मेवा-मिष्ठान्न सामने होते हुए भी अपने हाथ बंधे होने के कारण जो लोग उन्हें स्वयं खा नहीं सकते, वह नर्क और समान परिस्थितियों के बावजूद जो लोग एक-दूसरे को खिला कर खुश रहते हैं, वह स्थान स्वर्ग है।
आचार्यश्री ने कहा कि भगवान राम ने 14 वर्ष वनवास पर जाने के पूर्व अपने पिता और मां की बातें सुनीं। हम साधु को छोड़कर किसी और की सुनते नहीं, और अब तो कोई सुनाने वाला भी नहीं बचा है। राम बनने के लिए सुनने के लिए तैयार बनना पड़ेगा। एक करोड़ का दान, तीस दिन का उपवास – ये सब साधना है पर किसी की सुन लेना सबसे बड़ी साधना है। आज माहौल बिगड़ रहा है। आए दिन मां-बाप की समस्याएं सुनने को मिलती है, कि बेटा सुनने को तैयार नहीं है। आजकल सुनाने वाले बहुत हैं, सुनने वाले कम। समझाने वाले बहुत हैं, समझने वाले कम। स्वीकार करने और सुधरने वाले तो इनसे भी कम हैं। चिंतन करें कि हम इन पांच श्रेणियों में से किस कतार में आते हैं। शिक्षा का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि गुरू सुनाने के लिए तैयार नहीं, और शिष्य सुनने के लिए। माता-पिता मौन साध लें और बेटे को कुछ न सुनाएं तो यह भी दुर्भाग्य है। जीवन में लर्न टू लिसेन अर्थात सुनना, लर्न टू लेट गो अर्थात अनदेखी करना, लर्न टू लव याने प्रेम करना और लर्न टू लॉफ याने हंसना – इन चारों मामलों में हमारी संवेदनाएं बोथरी हो गई है। महाभारत का युद्ध भी कानून कायदों से लड़ा जाता था। सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय के पूर्व युद्ध नहीं होता था हम भी यदि वैसा ही नियम घर के मामले में बना लें तो शायद महाभारत हो ही नहीं। हमारे पास धैर्य की भी कमी है। आगे की गाड़ी को ओवरटेक करना है तो धैर्य रखने से ही दुर्घटना बचेगी। राम बनने के लिए बातें करना आसान है, आचरण में उतारने में तो पानी उतर जाएगा। हम छोटी-छोटी बातों में धैर्य खो देते हैं। लर्न टू लेट गो की प्रवृत्ति अपनाएंगे तो इन विवादों से बच जाएंगे। हिंदी का शब्द है – पकड़ो, मत जाने दो। एक कामा बदल कर लिखें तो यही वाक्य हो जाएगा – पकड़ो मत, जाने दो। पहला वाक्य तनाव का है दूसरा रिलेक्स का। हम यहां प्रवचन सुनने इसलिए आए हैं कि जीवन में परिवर्तन आए। आजकल परिवर्तन हमारा तो नहीं, सुनाने वाले साधु का जरूर हो जाता है। यदि हमारे जीवन में प्रेम कमजोरी है तो दुनिया में हमारे जैसा बहादुर कोई नहीं। प्रेम महावीर की भी कमजोरी थी और राम की भी। भगवान से प्रार्थना करें कि यदि प्रेम की कमजोरी बहादुर बना देती है तो ऐसी कमजोरी सबको मिलना चाहिए। 
स्वच्छता में इंदौर को देश में नंबर वन स्थान मिलने का उल्लेख करते हुए जैनाचार्य ने प्रश्न किया कि जिस दिन पुलवामा में हमारे 24 जवान शहीद हुए थे, उस दिन कितने लोगों ने नमकीन और मीठा नहीं खाया ? जब सभा में एक भी हाथ खड़ा नहीं हुआ तो उन्होंने कहा कि इंदौर का रास्ता तो स्वच्छ हो गया, पर क्या तुम्हारा हृदय स्वच्छ हुआ। राष्ट्र और दूसरों के दुख में शामिल होना भी हमें आना चाहिए। हम कहां जा रहे हैं, समझ नहीं आता। राम कैकयी की जीवन भर प्रेम दिया। 
अंतिम सूत्र लर्न टू लॉफ का विस्तार करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि भरत गद्दी पर बैठते वक्त कितने दुखी थे और राम जंगल में भी उनसे कई गुना खुश थे। हम साधु हैं, हमारी जेब में एक पैसा भी नहीं रहता। हम रोज नंगे पैर चलते हैं और तुम जूते चप्पल पहनकर फिर भी तुम्हारे पैर कमजोर क्यों हैं। सुविधा जीवन को कमजोर और संघर्ष जीवन को मजबूत बनाते हैं। कौशल्या का राम अयोध्या में और कैकयी का राम जंगल में था फिर भी दोनों जगह राम खुश थे। चेहरे पर मुस्कान रखें तो बहुत कुछ ताकत बन जाएगी। मैंने 340 किताबें लिखी हैं। हमारा पढ़ने का शौक वेंटिलेटर पर है फिर भी यदि इन पुस्तकों में से एक पंक्ति भी उतर जाए तो जीवन में बदलाव आ सकता है। आचार्यश्री द्वारा लिखित ‘धर्म लाभ’ पुस्तक को आज रियायती मूल्य पर मनीष चोपड़ा एवं अजय जैन के सौजन्य से दशहरा मैदान पर उपलब्ध कराया गया। 
आचार्यश्री के प्रवचन 2 जून तक प्रतिदिन प्रातः 8.45 से 10.15 बजे तक दशहरा मैदान पर जारी रहेंगे। श्रोताओं के लिए यहां शीतल पेयजल, निःशुल्क चरण पादुका स्टैंड, वाहन पार्किंग, सुरक्षा, साफ-सफाई, रोशनी आदि के समुचित प्रबंध किए गए हैं। श्रोताओं की अधिक संख्या को देखते हुए पांडाल के विस्तार की गुजाईश छोड़ी गई है। सोमवार 27 मई को ‘मूल्यों की मार्केट वेल्यू‘ विषय पर प्रवचन होंगे। मंगलवार 28 मई को ‘आक्रोश के आतंक से आजादी‘, 29 को ‘प्यार ही है परिवार का आधार‘, 30 को ‘संस्कार संवारे जिंदगी‘, 31 को ‘हर उलझन एक समाधान‘, एक जून को ‘धन्यवाद मिटा देता हैं सारे विवाद‘ और 2 जून को ‘कथा कृष्ण के कौशल की‘ जैसे रोचक एवं घर घर के लिए उपयोगी विषयों पर अपने सहज सरल अंदाज और शब्दों में प्रवचन करेंगे। 

Leave a Reply