अपने कानों को दुनिया के गंदे विचारों का डस्टबीन नहीं बनाएं : जैनाचार्य रत्नसुंदर सूरीश्वर 

इन्दौर ।जीवन में बुरी चीजें स्वतः सामने आ जाती है जबकि अच्छी चीजों के लिए हमें स्वयं जाना होता है।  किसी बड़े व्यक्ति के सामने झुक जाना हमारी मजबूरी होती है लेकिन छोटे के सामने झुकना बड़प्पन होता है। एक बार झुक कर जरूर देखें, कितना आनंद मिलता है। धर्म करने वाले कभी इस भ्रम में न रहें कि हमें कभी दुख नहीं आएगा। दरअसल, धर्म करने वालों पर दुख तो आता है लेकिन धर्म की ताकत से वह स्वयं को दुखी नहीं मानता। हमें दुखों से भी प्रेम करना आना चाहिए। वी लव गाॅड, फादर-मदर से भी पहले कहें – वी लव पेन। दुख का मुकाबला भगवान के संरक्षण मंे आसान होता है। हमारे कानों को दुनिया भर के गंदे विचारों का डस्टबीन नहीं बनने देना है। जिनकी आंखों से शर्म का पानी सूख गया हो, ऐसे लोगों की संगत नहीं करना चाहिए। जीवन में जहां प्रेम, प्रसन्नता और शांति मिले, वहां जरूर जाना चाहिए। हमारे सामने अनेक उलझने आती है, इनका कभी अंत नहीं होता लेकिन यदि हम नमनशील, सहनशील, गमनशील, शर्मशील और शमनशील बने रहें तो इन उलझनों से मुक्ति मिल सकती है बल्कि उलझने आएंगी ही नहीं। शमनशीलता के कारण ही आज हमारा समाज बचा हुआ है।     
पद्मभूषण जैनाचार्य रत्नसुंदर सूरीश्वर म.सा. ने आज दशहरा मैदान पर चल रही परिवर्तन प्रवचनमाला में ‘हर उलझन का एक समाधान’ विषय पर अपने प्रेरक और हृदयस्पर्शी उदबोधन के दौरान ऐसी अनेक बातें कही। आज महापौर श्रीमती मालिनी गौड़, गोपीकृष्ण नेमा, पूर्व पार्षद अभिषेक शर्मा बबलू, पार्षद दीपक जैन टीनू, आशीष पाठक, जयंती संघवी, कांता मेहता आदि ने दीप प्रज्जवलन कर प्रवचनमाला का शुभारंभ किया। आयोजन समिति की ओर से प्रेमचंद कटारिया, सुजीत सावलानी, दीपेश सावलानी, अर्पित मूणत, कांतिलाल बम, हुलास गांग, दिलीप चैरड़िया, आयुष ढड्ढा, दिनेश डोसी, सुजान चोपड़ा आदि ने सभी संतों और अतिथियों की अगवानी की। आचार्यश्री ने आज भी आए हुए श्रोताओं से आग्रह किया कि वे बचे हुए दो दिनों के प्रवचनों में अपने परिवार के अन्य सदस्यों को भी लेकर आएं ताकि उनके जीवन की भी दशा और दिशा में परिवर्तन आ सके। दशहरा मैदान पर प्रतिदिन आचार्यश्री द्वारा लिखित गृहस्थ जीवन के लिए उपयोगी पुस्तकों के स्टाॅल भी लगाए गए हैं जहां रियायती मूल्य पर आम पाठकों के लिए ये पुस्तकें उपलब्ध हैं। शनिवार 1 जून को सुबह 8.45 से 10.15 बजे तक आचार्यश्री यहां ‘धन्यवाद मिटा देता है विवाद’ विषय पर प्रवचन करेंगे। 
आचार्यश्री ने कहा कि हम सबने यह मानसिकता बना ली है कि धर्म करने वालों को कभी दुख नहीं आता। धर्म के क्षेत्र से जुड़े लोगों को यह गलतफहमी नहीं होना चाहिए कि धर्म के कारण मैं कभी दुखी नहीं हो सकता। सच्चाई तो यह है कि धर्म करने वालों पर ही ज्यादा दुख आते हैं लेकिन भगवान को मानने और नहीं मानने वालों में अंतर यह है कि धर्म की ताकत से आया हुआ दुख महसूस नहीं होता। धर्म भगवान से संरक्षित है इसलिए जिस तरह बिल्ली अपने बच्चे को मुंह में दबाकर सुरक्षित जगह ले जाती है उसी तरह भगवान भी हमें संरक्षण देते हैं। बिल्ली के मुंह में दबा चूहा बच नहीं पाता लेकिन उसके बच्चे को खरोच तक नहीं आती। जीवन में दुनिया के साथ पंगा लो या न लो, परिवार के सदस्यों से कभी पंगा मत लेना। एक क्षण के नमन से हमारी अनेक समस्याएं सुलझ सकती है। हमारी मानसिकता आक्रामकता की नहीं, विनम्रता की होना चाहिए। बड़े के सामने झुकना मजबूरी हो सकती है, लेकिन छोटे के सामने झुकना बड़प्पन या मर्दानगी होगी। सहनशीलता भी हमारे व्यवहार का एक जरूरी गुण होना चाहिए क्योंकि आज के दौर में बेटे-बेटी टूट रहे हैं। मां-बाप बच्चों को डांटने से डरने लगे हैं। हम जीवन के किसी भी क्षेत्र में जाना चाहें या पहले से हैं तो सहनशीलता का गुण सबसे पहले होना चाहिए। 
अब तक 380 पुस्तकें लिख चुके आचार्यश्री ने कहा कि हमें पीड़ा को सहन करना भी आना चाहिए। बिना पीड़ा के मिले पुरस्कार का आनंद नहीं मिलता। प्रसव पीड़ा के बाद मां को मिला पुरस्कार जीवन भर आनंद देता है। यदि किसी उत्तम और उपकारी पुरूष की ओर से पीड़ा मिले तो कभी प्रतिकार मत करना। गमनशील रहना हमारी प्रवृत्ति है लेकिन चिंतन करें कि अनिवार्य कामों के बाद मिले समय में कहां जाएं। गलत चीजें खुद चलकर आ जाती है लेकिन अच्छी चीजों के पास खुद जाना पड़ता है। हमारा कान कोई डस्टबीन नहीं है कि दुनिया का सारा कचरा हम उनमें डाल लें। जब भी समय मिले अपने बच्चों को गौशाला ले जाएं, उनके जन्मदिन पर किसी बड़ी होटल या क्लब में पार्टी देने के बजाय किसी दिव्यांग आश्रम पहंुचकर वहां के बच्चों के ऑपरेशन कराएं, अच्छे काम करने वालों को तोहफे देकर सम्मानित करें या किसी तीर्थस्थल की उन लोगों को यात्राएं कराएं, जो वहां कभी नहीं गए। शमनशीलता भी हमारी उलझनों को दूर करने वाला गुण है। बुरे विचारों के जन्म का क्रम तो अंतर्मन में चलता ही रहता है लेकिन ऐसे घृणित और दूषित विचारों को अमल में लाने के पूर्व ही समाप्त कर देना शमनशीलता का प्रतीक है। बुरी आदतों के विचार आने के बाद उन पर अमल नहीं करना समाज के हित में होता है। शर्मशीलता भी हमारे जीवन का महत्वपूर्ण गुण है। जिनकी आंखों से शर्म का पानी सूख गया हो, ऐसे दोस्तों की संगत कभी मत करना। हमारी बेटियों को भी चाहिए कि वे ऐसे घरों की बहू बनकर जाने से इंकार कर दें, जहां खुलेआम शराब, सिगरेट या अन्य नशों की प्रवृत्ति होती हो। बीएमडब्ल्यू कार को कचरे और गंदगी वाले पार्किंग में खड़ी नहीं करते, इसी तरह हम अपने संस्कारी बेटे-बेटियों के रिश्ते गंदे घरों में क्यों करें। सड़ी कोख में कोई श्रेष्ठ आत्मा आने के लिए तैयार नहीं होती।

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