जयराम रमेश का आरोप: ‘सरिस्का में खदानों को फिर शुरू करने से बाघ खतरे में पड़ जाएंगे’
नई दिल्ली। पूर्व केन्द्रीय व व पर्यावरण मंत्री व कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि राजस्थान के अलवर जिले के सरिस्का टाइगर रिजर्व में संगमरमर, डोलोमाइट, चूना पत्थर और मेसोनिक पत्थर समेत अन्य करीब 50 से अधिक खदानों को दोबारा शुरू करने से बाघों का रहवास खतरे में पड़ जाएगा। उन्होंने कहा कि केन्द्र व राज्य सरकार इस मामले में जानबूझकर अनदेखी कर रही है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप करना ही होगा।
इस मामले को अब यूपीए सरकार के समय वन व पर्यावरण मंत्री रहे जयराम रमेश ने उठाया है। उन्होंने कहा कि सरिस्का रिजर्व में बाघों की पुन: वापसी, बाघ संरक्षण की शानदार मिसाल है। अब रिजर्व की सीमा को बदलने की तैयारी चल रही है। इससे इस क्षेत्र की बंद हो चुकी 50 खनन कंपनियां फिर से खनन शुरू कर सकती हैं। यह बात साफ है कि बाघों की सुरक्षा और जंगल की देखभाल में स्थानीय लोगों की भागीदारी जरूरी होती है। लेकिन खदानों को दोबारा शुरू करने से बाघों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा। उन्होंने कहा कि इससे बाघों के रहने की जगह टुकड़ों में बंट जाएगी। इसकी भरपाई के लिए जो ‘बफर जोन’ में नए इलाके जोडऩे की बात की जा रही है, वो कागज पर तो सही लग सकती है लेकिन असल में यह बाघों पारिस्थितिकी लिए विनाशकारी होगा। खासतौर पर तब जब बाघों की आबादी पहले ही सीमित और अलग-थलग है। जयराम ने कहा कि वर्तमान केंद्रीय पर्यावरण मंत्री अलवर से हैं। क्या वाकई यह डबल इंजन सरकार खनन मालिकों को फायदा पहुंचाने के लिए बाघ कॉरिडोर के इस विघटन का समर्थन कर रही है? या फिर जानबूझकर अनदेखा कर रही है।
मनमोहन सरकार ने की थी पहल
जयराम ने कहा कि अति-सक्रिय अवैध शिकार नेटवर्क के कारण दिसंबर 2004 तक सरिस्का में बाघों की संख्या शून्य हो गई थी। इससे पूरे देश में हडक़ंप मच गया था। इसके चलते अप्रेल 2005 में टाइगर टास्क फोर्स का गठन किया गया, जिसके बाद मई 2005 में रणथंभौर टाइगर रिजर्व में डॉ. मनमोहन सिंह ने विभिन्न राज्यों के मुख्य वन्यजीव अधिकारियों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक की। इसके फलस्वरूप दिसंबर 2005 में नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) और जून 2007 में वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो अस्तित्व में आया। फिर पन्ना टाइगर रिजर्व के साथ-साथ सरिस्का में भी बाघों को दोबारा बसाने की प्रक्रिया शुरू की गई। आज सरिस्का में बाघों की संख्या 48 तक पहुंच गई है, जो अपने आप में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।