इस दिन होगा श्री विष्णु के अंतिम अवतार का जन्म, उसी समय सतयुग का प्रारंभ हो जाएगा
आज श्री कल्कि अवतार जयंती है। हमारे धर्मशास्त्रों में भगवान कल्कि की दसवें अवतार के रूप में चर्चा है। कहा गया है कि ज्यों-ज्यों घोर कलियुग आता जाएगा, त्यों-त्यों दिनों-दिन धर्म, सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु और बल का लोप होता जाएगा। कलियुग में जिसके पास धन होगा उसी को लोग कुलीन, सदाचारी और सद्गुणी मानेंगे जो जितना छल, कपट कर सकेगा वह उतना ही व्यवहार-कुशल माना जाएगा। धर्म का सेवन यश के लिए किया जाएगा।
सारी पृथ्वी पर दुष्टों का बोलबाला हो जाएगा। राजा होने का कोई नियम न रहेगा। जो बली होगा वही राजा बन बैठेगा। उस समय के राजा अत्यंत निर्दयी एवं क्रूर होंगे। उनसे डर कर प्रजा पहाड़ों और जंगलों में भाग जाएगी। उस समय भयंकर अकाल पड़ जाएगा। लोग भूख-प्यास तथा नाना प्रकार की चिंताओं से दुखी रहेंगे। वे पत्तियों को खाकर पेट भरेंगे। मनुष्य चोरी, हिंसा आदि अनेक प्रकार के कुकर्मों से जीविका चलाने लगेंगे।
कलियुग यानी कलह क्लेश का युग। जिस युग में सभी के मन में असंतोष हो सभी मानसिक रूप से दुखी हों वही कलियुग है। हिन्दू धर्म ग्रंथों में चार युग बताए गए हैं-सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग व कलियुग। सतयुग में लोगों में छल, कपट और दंभ नहीं होता है। त्रेतायुग में एक अंश अधर्म अपना पैर जमा लेता है। द्वापर युग में धर्म आधा ही रह जाता है। कलियुग के आने पर तीन अंशों से इस जगत पर अधर्म का आक्रमण होता है। इस युग में धर्म का सिर्फ एक चौथाई अंश ही रह जाता है। सतयुग के बाद जैसे-जैसे दूसरा युग आता जाता है, वैसे-वैसे मनुष्यों की आयु, वीर्य, बुद्धि, बल और तेज का ह्रास होता जाता है।
कलिकाल के दोष से प्राणियों के शरीर छोटे-छोटे होंगे। गौएं, बकरियों की तरह छोटी-छोटी और कम दूध देने वाली हो जाएंगी। वानप्रस्थी और संन्यासी आदि गृहस्थों की तरह रहने लगेंगे। लोग धर्मशास्त्रों की खिल्ली उड़ाएंगे। वेद-पुराण की निंदा करेंगे। पूजा-पाठ को सिर्फ ढकोसला मानेंगे। धर्म में पाखंड की प्रधानता हो जाएगी।
इस प्रकार कलियुग का अंत होते-होते पृथ्वी पर हिंसा और जातीय संघर्ष बढ़ जाएगा। तब ऐसी स्थिति में धर्म की रक्षा करने के लिए स्वयं भगवान अवतार ग्रहण करेंगे।
शास्त्र कहते हैं- कलियुग के अंतिम दिनों में शम्भल ग्राम में विष्णु यश नाम के एक श्रेष्ठ ब्राह्मण होंगे। उनका हृदय बड़ा उदार होगा। वह भगवान के परम भक्त होंगे। उन्हीं के घर कल्कि भगवान अवतार ग्रहण करेंगे। वह देव दत्त नामक घोड़े पर सवार होकर दुष्टों को तलवार के घाट उतारेंगे तथा पृथ्वी पर विलुप्त धर्म की पुन: स्थापना करेंगे।
भगवान के जन्म का चंद्रमा धनिष्ठा नक्षत्र और कुंभ राशि में होगा। सूर्य तुला राशि में स्वाति नक्षत्र में गोचर करेगा। गुरु स्वराशि धनु में और शनि अपनी उच्च राशि तुला में विराजमान होगा। वह ब्राह्मण कुमार बहुत ही बलवान, बुद्धिमान और पराक्रमी होगा। मन में सोचते ही उनके पास वाहन, अस्त्र-शस्त्र, योद्धा और कवच उपस्थित हो जाएंगे। वह सब दुष्टों का नाश करेंगे तब सतयुग शुरू होगा। वह धर्म के अनुसार विजय पाकर चक्रवर्ती राजा बनेंगे। वह अपने माता-पिता की पांचवीं संतान होंगे। भगवान कल्कि के पिता का नाम विष्णु यश और माता का नाम सुमति होगा।
पिता विष्णु यश का अर्थ हुआ, ऐसा व्यक्ति जो सर्वव्यापक परमात्मा की स्तुति करता लोकहितैषी है। सुमति का अर्थ है अच्छे विचार रखने और वेद, पुराण तथा विद्याओं को जानने वाली महिला। कल्कि निष्कलंक अवतार हैं। भगवान का स्वरूप (सगुण रूप) परम दिव्य है। दिव्य अर्थात दैवीय गुणों से सम्पन्न। वह सफेद घोड़े पर सवार हैं।
भगवान का रंग गोरा है लेकिन गुस्से में काला भी हो जाता है। प्रभु के हृदय पर श्रीवत्स का चिन्ह अंकित है। गले में कौस्तुभ मणि है। युद्ध के समय उनके हाथों में दो तलवारें होती हैं। कल्कि को विष्णु का भावी और अंतिम अवतार माना गया है। पृथ्वी पर पाप की सीमा पार होने लगेगी तब दुष्टों के संहार के लिए विष्णु का यह अवतार प्रकट होगा। भगवान का यह अवतार दिशा धारा में बदलाव का बहुत बड़ा प्रतीक होगा।
भगवान जब कल्कि के रूप में अवतार ग्रहण करेंगे उसी समय सतयुग का प्रारंभ हो जाएगा। प्रजा सुख-चैन से रहने लगेगी।