राजस्थान में साल 2020 में अशोक गहलोत को करना पड़ा दोहरी चुनौती का सामना
जयपुर। साल 2020 में जब पूरा देश कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के अप्रत्याशित संकट से जूझ रहा था, तब राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने लोगों की जान एवं आजीविका की रक्षा करने के साथ-साथ सरकार को बचाने की दोहरी चुनौती का सामना किया। राजस्थान सरकार पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट और 18 अन्य विधायकों की बगावत के कारण खतरे में आ गई थी। कोरोना वायरस के शुरूआती दिनों में संक्रमण को फैलने से रोकने में राज्य के ‘भीलवाड़ा मॉडल’ की देशभर में सराहना हुई, लेकिन उसी दौरान राज्य की राजधानी जयपुर के रामगंज में तेजी से संक्रमण फैलने के कारण सरकार को आलोचनाओं को सामना करना पड़ा। राज्य में साल के अंत में हुए पंचायत, जिला परिषद और शहरी स्थानीय निकाय चुनावों के परिणामों ने कई लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया। सामान्य रुझानों के विपरीत भाजपा ने पंचायत चुनाव में ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस को पछाड़ दिया। विपक्षी दल जीत की खुशी मना ही रहा था कि कुछ ही दिनों बाद कांग्रेस पार्टी शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव परिणामों में विजयी हुई। राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने तीन नए केंद्रीय कृषि कानूनों को राज्य में लागू नहीं करने के लिए राजस्थान विधानसभा में तीन विधेयक पारित किए। हालांकि ये विधेयक राज्यपाल के पास लंबित हैं।
राज्य के उत्तर-पश्चिमी इलाकों में घूमने आने वाले देशी और विदेशी पर्यटकों के लिहाज से वर्ष की शुरुआत में सब सामान्य था, लेकिन माउंट आबू घूमने आए इतालवी दंपत्ति के संक्रमित पाए जाने के बाद हालात बदल गए। यह दंपत्ति आगरा जाने से पूर्व फरवरी में जयपुर, बीकानेर, उदयपुर, जोधपुर, झुंझुनू और जयपुर जाने वाले पर्यटकों के 23 सदस्यीय समूह का हिस्सा था। दंपत्ति के जैसे ही कोरोना वायरस संक्रमित होने का पता चला, राज्य सरकार हरकत में आ गई और उनके संपर्क में आए लोगों का पता लगाने के लिए व्यापक अभियान चलाया गया। लगातार बढ़ रहे संक्रमण के मामलों से चिंतित मुख्यमंत्री गहलोत ने विभिन्न हितधारकों के साथ बैठकें की और संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ने के लिए राज्य में लॉकडाउन लगाने की घोषणा की। राजस्थान लॉकडाउन की पहल करने वाला देश का पहला राज्य था। लॉकडाउन के कारण बड़ी संख्या में मजदूर और प्रवासी फंस गए। प्रवासी कर्मी लॉकडाउन के बाद कोई साधन उपलब्ध नहीं होने के कारण सामान लादे और छोटे बच्चों को कंधे पर बैठाकर पैदल ही अपने गृह राज्यों की ओर निकल पड़े। इसी बीच, भीलवाड़ा मॉडल, जिसे रूथलेस कंटेंमेंट का नाम दिया गया, उसने देश भर के लोगों का ध्यान खींचा। भीलवाड़ा जिला प्रशासन ने शुरुआती दिनों में कर्फ्यू लगाकर, संक्रमितों के संपर्क में आए लोगों का पता लगाने के लिए अभियान चलाकर और अन्य उपायों के सख्त अनुपालन के जरिए संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ने में शुरुआत में कामयाबी हासिल की थी, लेकिन सभी प्रकार के प्रयासों के बावजूद जयपुर के चारदीवारी क्षेत्र में संक्रमण तेजी से फैला।