बोफोर्स घोटाला: राजीव गांधी को बचाने के लिए भारत-स्वीडन में हुई थी ‘डील’
अमेरिकी जांच एजेंसी सीआईए का कहना है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की छवि का ख्याल रखते हुए स्वीडन ने बोफोर्स घोटाले की जांच बंद कर दी थी.
सीआईए की ओर से सार्वजनिक किए गए दस्तावेजों के मुताबिक भारत सरकार और स्वीडन ने एक योजना के तहत बोफोर्स डील में बिचौलियों को दी गई रकम की जानकारी गुप्त रखी थी.
इकोनॉमिक्स टाइम्स के मुताबिक सीआईए ने 'स्वीडन का बोफोर्स हथियार घोटाला' शीर्षक से एक गोपनीय दस्तावेज जारी किया है. इसमें कहा गया है कि बोफोर्स डील से जुड़ी जानकारी स्वीडन में लीक हो गई थी. इस जानकारी से राजीव गांधी के अलावा नोबल इंडस्ट्रीज (पैरंट कंपनी) के लिए असहज स्थिति पैदा हो सकती थी. इसी बात का ख्याल रखते हुए स्वीडन और भारत के बीच एक सहमति बनी, जिसमें तय हुआ कि डील में रकम के लेनदेन का हिसाब गुप्त रखा जाए. कुछ महीनों बाद स्वीडन सरकार ने इस मामले की जांच ही बंद कर दी थी. सीआईए ने दावा किया है कि उनकी यह रिपोर्ट पूरी तरह से अप्रैल 1998 के आकलन पर तैयार की गई थी.
बोफोर्स घोटाले पर हंगामा मचने के बाद 1989 के आम चुनाव में कांग्रेस हार गई थी, लेकिन जांच की तलवार राजीव गांधी पर लटकी रही, जो किसी नतीजे पर नहीं पहुंची.
स्वीडन रेडियो ने किया था दलाली का खुलासा
मालूम हो कि बोफोर्स तोपों की खरीद में दलाली का खुलासा अप्रैल 1987 में स्वीडन रेडियो ने किया था. रेडियो के मुताबिक बोफोर्स कंपनी ने 1437 करोड़ रुपए का सौदा हासिल करने के लिए भारत के बड़े राजनेताओं और सेना के अधिकारियों को रिश्वत दी थी.
राजीव गांधी सरकार ने मार्च 1986 में स्वीडन की एबी बोफोर्स से 400 होबित्जर तोपें खरीदने का करार किया था. इस खुलासे ने भारतीय राजनीति में खलबली मचा दी और राजीव गांधी इसके निशाना बने. 1989 के लोकसभा चुनाव का ये मुख्य मुद्दा था जिसने राजीव गांधी को सत्ता से बाहर कर दिया और वीपी सिंह राष्ट्रीय मोर्चा सरकार के प्रधानमंत्री बने.
भारत में चले मुकदमे में राजीव गांधी थे आरोपी
1990 में नई सरकार ने बोफोर्स दलाली की जांच सीबीआई को सौंप दी थी. सीबीआई ने मुकदमा दर्ज किया. कई कानूनी अड़चनों के बाद सीबीआई 1997 में स्वीडन से बोफोर्स दलाली से संबंधित 500 पेज का दस्तावेज लाने में सफल रही. इन दस्तावेजों के आधार पर सीबीआई ने 1999 में विन चड्डा, आक्टोबियो क्वात्रोची, पूर्व रक्षा सचिव एस के भटनागर, बोफोर्स कंपनी और उसके प्रमुख मार्टिन अर्बडो के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की. चार्जशीट में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को भी आरोपी बनाया गया था.
साल 2000 में सीबीआई ने सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की,जिसमें श्रीचंद हिंदुजा, गोपीचंद हिंदुजा और प्रकाशचंद हिंदुजा को भी आरोपी बनाया गया.
2002 में घोटाले के दो मुख्य आरोपी विन चड्डा और एस के भटनागर का निधन हो गया. इसी साल दिल्ली हाईकोर्ट ने हिंदुजा बंधुओं के खिलाफ सीबीआई की चार्जशीट को खारिज कर दिया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने चार्जशीट को सही ठहराया.
सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने हिंदुजा बंधुओं समेत बोफोर्स कंपनी के खिलाफ आरोप निर्धारित कर दिए. 2004 में दिल्ली हाईकोर्ट ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ तमाम आरोपों को खारिज कर दिया.