तिजोरी और लॉकर हैं खाली, ये शुभ चिन्ह लाएगा नोटों की हरियाली
घर में सुख-शांति और समृद्धि हेतु कई प्रकार की परंपराएं प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक परंपरा है शुभ चिन्ह बनाना अथवा शुभ चिन्हों को घर में स्थापित करना। शास्त्रों के अनुसार कई तरह के शुभ चिन्ह बताए गए हैं जो घर-परिवार से परेशानियों को दूर रखते हैं। लक्ष्मी जी के स्वरूप में अनेक गुणों का आभास होता है। वे मूलत: धन और ऐश्वर्य की देवी हैं। लक्ष्मी का स्वरूप वैभव का रहस्य है। यह वैभव कभी स्थायी नहीं रहता, बनता बिगड़ता रहता है। वस्तुत: यही इसका स्वभाव भी है। मूलत: इस चंचल स्वभाव के कारण ही लक्ष्मी को चंचला कहते हैं।
कार्तिक अमावस्या की अंधेरी रात तथा शरद पूर्णिमा के दिन में झिलमिल दीपों के बीच महालक्ष्मी का क्षीर सागर से धरा पर आगमन होता है। वे घर-घर में घूमकर अपने रहने योग्य स्थान का चयन करती हैं। जहां उनके अनुरूप वातावरण होता है, वहां रूक जाती हैं। लक्ष्मी जी हमारे घर में रूकें इसलिए हम प्रतिवर्ष उनकी विशेष पूजा-उपासना करके उन्हें प्रसन्न करते हैं ताकि हमारा घर वर्ष भर समृद्धि से परिपूर्ण रहे। दीपावली की रात्रि को धन-संपदा की प्राप्ति हेतु लक्ष्मी के पूजन का विधान है। ऐसा माना जाता है कि दीपावली की रात लक्ष्मी जी घर में आती हैं। इसीलिए लोग दहलीज से लेकर घर के अंदर जाते हुए लक्ष्मी जी के पांव बनाते हैं। इसी मान्यता के चलते हम लक्ष्मी जी को स्थाई करने हेतु घर में लक्ष्मी जी के चरणों का प्रतीक लक्ष्मी चरण पादुका स्थापित करते हैं।
लक्ष्मी जी के चरणों का रहस्य: शास्त्रों के अनुसार महालक्ष्मी के चरणों में सोलह शुभ चिन्ह होते हैं। यह चिन्ह अष्ट लक्ष्मी के दोनों पावों से उपस्थित 16 (षोडश) चिन्ह है जो के 16 कलाओं का प्रतीक हैं। शास्त्रों में मां लक्ष्मी को षोडशी भी कहकर पुकारा जाता है। ये सोलह कलाएं हैं 1.अन्नमया, 2.प्राणमया, 3.मनोमया, 4.विज्ञानमया, 5.आनंदमया, 6.अतिशयिनी, 7.विपरिनाभिमी, 8.संक्रमिनी, 9.प्रभवि, 10.कुंथिनी, 11.विकासिनी, 12.मर्यदिनी, 13.सन्हालादिनी, 14.आह्लादिनी, 15.परिपूर्ण, 16.स्वरुपवस्थित।
शास्त्रों में चंद्रमा की सोलह कलाओं का भी वर्णन आता है। चंद्रमा की सोलह कलाएं हैं अमृत, मनदा, पुष्प, पुष्टि, तुष्टि, ध्रुति, शाशनी, चंद्रिका, कांति, ज्योत्सना, श्री, प्रीति, अंगदा, पूर्ण और पूर्णामृत का उल्लेख है।
वास्तवकिता में ये सोलह कलाएं सोलह तिथियां हैंं जिसके क्रम में अमावस्या एकम से लेकर चतुर्दशी तथा पूर्णिमा। लक्ष्मी चरण पादुका के लक्ष्मी के षोडशी रूप के 16 चिन्ह इस प्रकार हैं 1.प्राण, 2.श्री, 3.भू, 4.कीर्ति, 5.इला, 5.लीला, 6.कांति, 7.विद्या, 8.विमला, 8.उत्कर्शिनी, 9.ज्ञान, 10.क्रिया, 11.योग, 12.प्रहवि, 13.सत्य, 14.इसना 15.अनुग्रह, 16.नाम। अष्ट लक्ष्मी के दोनों चरणों में इस सोलह कलाओं के प्रतीक चिन्ह स्थापित होते हैं।
सोलह कलाओं वाली श्री लक्ष्मी षोडशी का रहस्य: जो श्री विद्या सोलह कलाएं प्रदान करे वही षोडशी है। लक्ष्मी का यह स्वरुप ऐश्वर्य, धन, पद जो भी चाहिए सभी कुछ प्रदान करता है। इनके श्री चक्र को श्रीयंत्र कहा जाता है। इनका एक नाम श्री महा त्रिपुरा सुंदरी यां ललिता भी है। त्रिपुरा समस्त भुवन मे सर्वाधिक सुन्दर है। महालक्ष्मी का यह स्वरुप जीव को शिव बना देता है। यह श्री कुल की विद्या है। इनकी पूजा से साधक को पूर्ण समर्थ प्राप्त होता है। लक्ष्मी चरण पादुका इन्हीं ललिता श्री देवी के चरणों का प्रतीक है जिसमें सोलह चिन्ह बने होते हैं।
लक्ष्मी चरण पादुका जहां भी स्थापित कि जाती है वहां से समस्याओं का नाश होता है। इसकी स्थापना से धनाभाव खत्म होकर स्थाई धन संपत्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। इसे मकान, दुकान, आफिस या कहीं भी दरवाजे पर चिपकाना भी शुभ होता है। अष्ठ धातु से निर्मित यह चरण पादुका सुख-समृद्धि हेतु निश्चित ही उपयोगी सामग्री है।