अस्थायी जजों की नियुक्ति अधर में लटकी, सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बावजूद नहीं आई सिफारिश
लंबित मामलों की बढ़ती संख्या से निपटने के लिए हाई कोर्ट में एडहॉक यानी अस्थायी जजों की नियुक्ति के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मार्ग प्रशस्त किए जाने के बावजूद एक महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी सरकार को संबंधित हाई कोर्टों से उम्मीदवारों के नाम के प्रस्ताव नहीं मिले हैं।
18 लाख से अधिक आपराधिक मामलों के लंबित होने पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 30 जनवरी को हाई कोर्टों को अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति करने की अनुमति दी थी, जोकि कोर्ट की कुल स्वीकृत संख्या के 10 प्रतिशत से अधिक न हो।
कोलेजियम से अभी तक कोई सिफारिश नहीं
संविधान का अनुच्छेद 224ए लंबित मामलों से निपटने में मदद के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को हाई कोर्टों में अस्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की अनुमति देता है। सूत्रों ने कहा कि कानून मंत्रालय को अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए संबंधित हाई कोर्ट कोलेजियम से अभी तक कोई सिफारिश नहीं मिली है।
निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार, संबंधित हाई कोर्ट के कोलेजियम विधि मंत्रालय में न्याय विभाग को हाई कोर्ट के जजों के रूप में नियुक्त किए जाने वाले उम्मीदवारों की सिफारिशें या नाम भेजते हैं। इसके बाद न्याय विभाग सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम को भेजने से पहले उम्मीदवारों की जानकारी और विवरण जोड़ता है और फिर इसे सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम को अंतिम फैसले के लिए भेजता है।
राष्ट्रपति की ली जाएगी सहमति
कोलेजियम सरकार को चयनित व्यक्तियों को जजों के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश करता है। राष्ट्रपति नवनियुक्त न्यायाधीश की 'नियुक्ति के वारंट' पर हस्ताक्षर करते हैं। अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया भी वही रहेगी, सिर्फ इसके कि राष्ट्रपति नियुक्ति के वारंट पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे।
लेकिन अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति की सहमति ली जाएगी। सूत्रों ने बताया कि एक मामले को छोड़कर सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को हाई कोर्टों में अस्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की कोई मिसाल नहीं मिलती।