भारत की फार्मा इंडस्ट्री का ग्लोबल दबदबा, दुनिया में 2.70 लाख करोड़ की दवा की बिक्री

व्यापार: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ब्रांडेड व पेटेंट दवाओं पर सौ फीसदी आयात शुल्क की घोषणा के लिए अमेरिकी परिवारों को ही भारी कीमत चुकानी होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत से अमेरिका निर्यात होने वाली दवाओं में 80 फीसदी जेनेरिक हैं जिनके बारे में ट्रंप ने चर्चा तक नहीं की।

दूसरा ज्यादातर बड़ी दवा कंपनियां डॉ रेड्डीज, ल्यूपिन, अरबिंदो, सन फार्मा, सिप्ला और जाइडस की फैक्टरियां अमेरिका में मौजूद हैं जिन्हें ट्रंप ने इस टैरिफ से बाहर रखा है। केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, अमेरिका सहित पूरी दुनिया को भारत सबसे कम दाम पर दवाएं देता है, इसके बारे में डोनाल्ड ट्रंप भली भांति जानते हैं। अगर अमेरिका जेनेरिक दवाओं पर शुल्क बढ़ाता है तो उसका सीधा नुकसान वहां के मरीजों और परिवारों पर पड़ेगा। उन्हें इन दवाओं के लिए अधिक कीमत देनी होगी। मंत्रालय से साझा आंकड़ों के मुताबिक भारत हर साल पूरी दुनिया को 2.70 लाख करोड़ रुपये की दवाएं दे रहा है जिसमें 93 हजार करोड़ रुपये की दवाएं अमेरिका जा रही हैं। इसमें 65 हजार करोड़ रुपये की दवाएं जेनेरिक हैं जिन्हें ट्रंप ने 100 फीसदी टैरिफ से बाहर रखा है। इस साल की पहली छमाही में भारत पहले ही अमेरिका को तीन हजार करोड़ रुपये का निर्यात कर चुका है।

सिर्फ गुजरात-तेलंगाना हर साल भेज रहे 1.06 लाख करोड़ रुपये की दवाएं
अमेरिका में सबसे अधिक दवाएं गुजरात और तेलंगाना से जा रही हैं। यह दोनों राज्य मिलकर कुल 1.06 लाख करोड़ रुपये की दवाएं निर्यात कर रहे हैं। इसके बाद महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु सहित भारत के 30 राज्यों में करीब 10 हजार से अधिक एमएसएमई कंपनियां जेनेरिक दवाओं का उत्पादन कर रही हैं।

सुर्खियों में रहने के लिए ट्रंप करते हैं टैरिफ की घोषणाएं
अधिकारी ने कहा, सुर्खियों में रहने के लिए ट्रंप ने टैरिफ को पकड़ लिया है। वह आए दिन इसका इस्तेमाल भारत के लिए कर रहे हैं, जबकि भारत का दवा कारोबार सिर्फ अमेरिका पर निर्भर नहीं है। ट्रंप का यह फैसला भारत के फार्मा उद्योग को झटका देने से ज्यादा अमेरिका की दवा नीति पर सवाल खड़ा करता है।

भारत की बदौलत अमेरिका ने बचाए 115 लाख करोड़
भारत में आयात शुल्क पर ट्रंप पूरी दुनिया में चर्चा कर रहे हैं लेकिन उन्होंने अब तक यह आंकड़े साझा नहीं किए कि भारत से जाने वाली दवाओं के जरिये अमेरिका को कितना लाभ हुआ है? इस बारे में भारत के केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि साल 2013 से 2022 के बीच भारत से अमेरिका जाने वाली दवाओं ने 1.3 लाख करोड़ डॉलर (115.3 लाख करोड़ रुपये) की बचत कराई है और 2022 में भारतीय दवाओं से अमेरिका को भारी बचत हुई थी।

आत्मनिर्भर बनने का अवसर
प्रमुख उद्योगपति निरंजन हीरानंदानी ने नए टैरिफ को एक तरह से भारत के लिए अच्छा अवसर बताया है। उन्होंने कहा, यह कदम भारत को अपनी विनिर्माण क्षमताओं को तेजी से बढ़ाने और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को जल्द हासिल करने के लिए प्रेरित करेगा। यह फैसला भारतीय कंपनियों को अपने व्यापार मॉडल और निर्माण को लेकर रणनीतिक पुनर्गठन के लिए मजबूर करेगा।

कई फार्मा कंपनियों के शेयर गिरे
टैरिफ की घोषणा के बाद, शुक्रवार को उन प्रमुख फार्मा कंपनियों के शेयरों में गिरावट आई, जिनका अमेरिकी बाजार में बड़ा कारोबार है। सन फार्मा, डॉ. रेड्डीज, ल्यूपिन और सिप्ला समेत अन्य कंपनियों के शेयर 9.40 फीसदी तक टूट गए। निफ्टी फार्मा इंडेक्स भी लुढ़क गया। हांगकांग, ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ की फार्मा कंपनियों के शेयर भी लुढ़के।

2024 में अमेरिका ने किया 233 अरब डॉलर का आयात
अमेरिकी जनगणना ब्यूरो के अनुसार, 2024 में अमेरिका ने लगभग 233 अरब डॉलर की दवाइयों और औषधीय उत्पादों का आयात किया। कुछ दवाओं की कीमतें दोगुनी होने की संभावना अमेरिकियों को चौंका सकती है क्योंकि स्वास्थ्य देखभाल के खर्च के साथ-साथ मेडिकेयर और मेडिकेड की लागत भी बढ़ सकती है।

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