MBA पास किसान ने भारत की खातिर छोड़ी विदेश की नौकरी, गांव में खेती कर कमा रहे लाखों

विदेश में घूमने का सब सपना देखते हैं, मगर सपना पूरा बहुत कम लोगों का होता है।विदेश में नौकरी लग जाए तो कहना ही क्‍या। मगर हरियाणा फतेहाबाद जिले में बीघड़ गांव निवासी एग्रीकल्चर ग्रेजुएट और एमबीए डिग्रीधारी अतुल वालिया को विदेश की नौकरी रास न आई। वतन की मिट्टी के दिल से अपनी माटी की ऐसी सदाएं उठीं कि वो घाना देश की नौकरी छोड़ भारत लौट आए। महज लौट ही नहीं बल्कि इंडिया में ही आधुनिक तकनीक से खेती करने की ठानी। फिर उन्‍होंने ऐसा स्‍टार्ट-अप कायम किया कि अब वो दूसरे किसानों के लिए मिसाल बन गए हैं।

वह कहते हैं कि इंडिया में बदलाव देखकर ही मन बदला। अपने देश में ही कृषि क्षेत्र में अपार संभावनाएं भांपकर ख्‍याल आया कि सब्जी उत्पादन को व्यापक रूप दिया जा सकता है। इस क्रम में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के ही मित्र डॉ. मनोज भाटिया से बाजार सहित सारा इनपुट जुटाया। चाह को राह मिली और बीघड़ गांव में 10 एकड़ जमीन से स्टार्ट अप लिया।

कुछ किताबी ज्ञान और कुछ घाना की मैकेनाइज्ड फार्मिंग का अनुभव दोनों काम आए और तरबूज, खरबूज, करेला, तोरी और घीया की खेती चल पड़ी। हरियाणा के सिरसा, हिसार, कैथल, करनाल से लेकर पंजाब में लुधियाना के मलेर कोटला व राजस्थान तक की थाली में वालिया की उगाई ये सब्जियां परोसी जा रही हैं। स्वाभाविक सी बात यह कि अनेक प्रगतिशील किसान भी सब्जियां उगाने के गुर सीखने आ रहे रहे हैं।

3300 डालर प्रतिमाह की होती थी बचत, छोड़ा मैनेजर का पद, अब किया ये काम

दरअसल, वर्ष 1996 में बीएसी एग्रीकल्चर और पत्राचार से एमबीए करने के बाद अतुल वालिया अपने ही देश की कई पेस्टीसाइड कंपनियों में नौकरी करते रहे। इसी दौरान उन्हें जर्मनी की एक पेस्टीसाइड कंपनी से पश्चिमी अफ्रीका के घाना में काम करने का ऑफर आया। शुरुआती तीन साल उन्होंने वहां काम किया। इसके बाद घाना में ही खेती आधारित कंपनी पार्क एग्रो से जनरल मैनेजर पद का निमंत्रण मिला।

यह कंपनी तरबूज, प्याज, मक्का, टमाटर, मिर्च, खीरा आदि करीब 4000 एकड़ में उगाती थी। सारा काम वालिया की देखरेख में होने लगा। सब ठीक चल रहा था। विदेश में मोटी कमाई हो रही थी। तकरीबन 3300 अमेरिकी डॉलर प्रतिमाह की बचत, लेकिन देश की सुध आई। अचानक खयाल आया कि इससे बढिय़ा तो अपने गांव में ही खेती की जाए। दो साल पहले उन्होंने घाना को अलविदा कह दिया।

आधुनिक तकनीक से तैयार की गई पौध, जिनसे बंपर पैदावार होती है।

मानता हूं, सच है, देसा म्‍हं देस हरियाणा की कहावत

अतुल वालिया ने कहा हम बचपन में बुजुर्गों के मुंह से अक्‍सर एक कहावत सुना करते थे कि देसां म्हं देस हरियाणा …। उस टाइम सोचते थे ये सब तो कहने सुनने की बाते हैं, हरियाणा कोई खास नहीं। यही सोचकर विदेश में जाकर काम करने की सोची। मगर जब विदेश में काम किया तो देश और हरियाणा के ठाठ याद आने लगे। मिट्टी वतन खींच लाई और अब मैं यहीं पर सब्‍जी और फल का काम करके लाखों रुपये कमा रहा हूं।

टपका सिंचाई से करते हैं खेती

अतुल वालिया जल संरक्षण के पैरोकार हैं। वह टपका विधि से सब्जियों की सिंचाई करते हैं। इससे पानी की बचत होती है। वालिया बताते हैं कि थोड़े समय में ज्यादा ङ्क्षसचाई हो जाती है। सब्जियों को भी जरूरत का पानी मिल जाता है।

घाना में पिवोट इरीगेशन था

वालिया के अनुसार घाना में पिवोट इरीगेशन था। सिंचाई की छिड़काव वाली इस विधि से एक बार में 175 एकड़ जमीन में पानी का स्प्रे हो जाता था। स्प्रे की मशीन पूरे खेत में राउंड लेती है। पानी का प्रेशर और स्पीड रेगूलेटर से निर्धारित कर लिया जाता है।

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