स्टालिन के कदम के बाद उठे सवाल, क्या राज्य सरकारें रुपये के चिह्न में बदलाव कर सकती 

नई दिल्ली । देश में भाषा को लेकर चल रही बहस में तमिलनाडु ने आग में घी डालने का काम कर दिया है। तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने अपने राज्य बजट के लोगो के रूप में आधिकारिक भारतीय रुपये के प्रतीक रुपया को तमिल अक्षर ரூ से बदल दिया है। ऐसा पहली बार हुआ है जब देश में किसी राज्य ने रुपये के चिह्न को बदल दिया हो। यह बात सीएम स्टालिन द्वारा राज्य का बजट पेश करने से पहले सामने आई है।
खास बात है कि स्टालिन के कदम को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं। यह उस समय में हुआ है जब आधिकारिक संचार और दस्तावेजीकरण में क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग विवाद का विषय रहा है। अब सवाल है कि क्या राज्य के पास इस तरह रुपये के चिह्न में बदलाव करने का अधिकार है।
रुपये के चिह्न में बदलाव का यह देश में अपनी तरह का पहला मामला है। इससे पहले किसी भी राज्य की ओर से इस तरह का कदम नहीं उठाया गया है। हालांकि, केंद्र की तरफ से रुपये के चिह्न में बदलाव को लेकर कोई स्पष्ट निर्देश नहीं हैं। इसके बाद साफतौर पर यह नहीं कहा जा सकता है कि तमिलनाडु सरकार की तरफ से यह कदम कानून का उल्लंघन है।
यदि रुपये को राष्ट्रीय चिह्न के रूप में मान्यता मिली होती, तब इसमें किसी तरह का बदलाव करने का अधिकार सिर्फ केंद्र के पास रहता। राष्ट्रीय चिह्न की सूची में रुपये का चिह्न नहीं है। राष्ट्रीय चिह्न में बदलाव के संबंध में भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट 2005 बना हुआ है। बाद में इस कानून को 2007 में अपडेट किया जा चुका है। एक्ट के सेक्शन 6(2)(एफ) में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि सरकार राष्ट्रीय प्रतीकों की डिजाइन में बदलाव कर सकती है।
कानून के जानकारों के अनुसार जरूरत पड़ने पर केंद्र सरकार के पास राष्ट्रीय चिह्न में हर वहां बदलाव करने की शक्ति है जिसे वे आवश्यक समझती है। एक्ट के तहत सिर्फ राष्ट्रीय चिह्न के सिर्फ डिजाइन में बदलाव किया जा सकता है पूरा डिजाइन नहीं बदला जा सकता है। हालांकि, कई जानकार का मानना है कि केंद्र सरकार के पास सिर्फ राष्ट्रीय प्रतीक के डिजाइन में बदलाव करने की ताकत नहीं है बल्कि वहां पूरा राष्ट्रीय प्रतीक भी बदल सकती है। इसके पीछे कारण है कि भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट 2005 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो सरकार को इसतरह बदलाव करने से रोकता है।

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