अभी तक बिहार के चुनाव मैदान में नहीं उतरे राहुल गांधी, कैंडिडेट कर रहे प्रचार की मांग, आखिर क्‍या है वजह ?

नई दिल्‍ली । बिहार में विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) के करीब आते ही कांग्रेस (Congress) खेमे में यह चर्चा तेज हो गई है कि विपक्ष के नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) अब तक चुनावी मैदान में क्यों नहीं उतरे हैं। राहुल गांधी ने आखिरी बार एक सितंबर को पटना में अपने ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के समापन के दौरान राज्य का दौरा किया था। यह यात्रा 15 दिनों में 1,300 किलोमीटर और 20 जिलों को कवर करती हुई पूरी हुई थी। इसके बाद से वह बिहार नहीं पहुंचे हैं। हालांकि, इस बीच तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) जरूर दिल्ली पहुंचे थे। कहा जा रहा है कि वहां उन्होंने सीएम फेस को लेकर अपने नाम की घोषणा की मांग कर दी थी।

कांग्रेस के कई प्रत्याशियों ने पार्टी हाईकमान और राहुल गांधी के कार्यालय से अपने-अपने क्षेत्रों में प्रचार के लिए उनके आने की गुजारिश की है। सूत्रों के मुताबिक, राहुल गांधी की अनुपस्थिति से स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। हालांकि, पार्टी सूत्रों का कहना है कि महागठबंधन के भीतर अधिकतर मुद्दे सुलझ जाने के बाद राहुल गांधी अगले सप्ताह से बिहार में चुनावी प्रचार अभियान की शुरुआत कर सकते हैं।

तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी आरजेडी के द्वारा उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने की मांग पर पहले कांग्रेस ने सहमति नहीं जताई है। कांग्रेस को इस बात का डर था कि एक नए मामले में चार्जशीटेड होने के बाद तेजस्वी यादव के नाम की घोषणा पार्टी और गठबंधन दोनों के लिए अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने समान थी।

कांग्रेस आलाकमान ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को बिहार भेजा। बिहार की राजधानी पटना में उन्होंने लालू प्रसाद यादव से मुलाकात की और इसके बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस कर तेजस्वी यादव के नाम का ऐलान हुआ।

आपको बता दें कि ‘इंडिया’ गठबंधन में तेजस्वी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया है, जबकि गठबंधन ने निषाद नेता व विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) अध्यक्ष मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री बनाने का वादा किया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने हालांकि घोषणा करते समय कहा था कि “अन्य सामाजिक व धार्मिक समूहों” से भी अधिक उपमुख्यमंत्री बनाए जाएंगे लेकिन राजग नेताओं का आरोप है कि करीब 17 प्रतिशत मुस्लिम आबादी के बावजूद विपक्ष ने समुदाय की अनदेखी की है।

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