दिवाली पर लक्ष्मी जी की आरती करनी चाहिए या नहीं? मत करना ये भयंकर भूल, जानें पूजन की सही व‍िध‍ि

त्‍योहारों के सीजन की शुरुआत हो चुकी है और नवरात्र व करवा चौथ के बाद सभी को 5 द‍िनों के महापर्व यानी द‍िवाली के त्‍योहार का इंतजार है. हर वर्ष कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन दीपावली का त्‍योहार मनाया जाता है. इस साल 31 अक्टूबर 2024, गुरुवार के दिन मनाया जाएगा. इस विशेष दिन पर धन की देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा का विधान है. द‍िवाली के द‍िन माता लक्ष्‍मी की पूजा का व‍िशेष व‍िधान होता है, लेकिन क्‍या लक्ष्‍मी पूजन के दौरान माता लक्ष्‍मी की आरती करनी चाहिए? वैसे तो लोग पूरे परिवार के साथ इस पूजन को करते हैं और पूजा व‍िध‍ि में अक्‍सर आखिर में देवी-देवताओं की आरती गाई जाती है. लेकिन लक्ष्‍मी पूजन पर माता लक्ष्‍मी की आरती को लेकर अलग-अलग मान्‍यताएं हैं. जान‍िए द‍िल्‍ली के प्रस‍िद्ध ज्‍योत‍िष डॉक्‍टर गौरव कुमार दीक्ष‍ित से इसके बारे में.

डॉक्‍टर गौरव कुमार दीक्ष‍ित बताते हैं कि दिवाली पर लक्ष्मी मां की आरती नहीं की जाती है. दिवाली के पूजन के दौरान आपको स‍िर्फ गणेश जी की और भगवान विष्णु जी की आरती ही करें. क्योंकि लक्ष्मी जी की आरती करने पर सभी लोग आरती पर खड़े हो जाते हैं और उसके बाद चले जाते हैं, वैसे ही अगर लक्ष्मी मां चली जाएगी तो आपके जीवन में धन की कमी आ जाएगी. इसलिए द‍िवाली के पूजन में कभी भी लक्ष्मी मां की आरती नहीं गानी चाहिए. बल्‍कि इस दिन लक्ष्‍मी माता का व‍िध‍ि-व‍िधान से पूजन करना चाहिए. आप चाहें तो माता लक्ष्‍मी का मंत्र गा सकते हैं. इसके साथ ही आपको पूजा के दौरान साबुत सुपारी पर मौली (कलावा) लपेट कर उसे पूजा में रखना चाहिए. पूजा के बाद इसी सुपारी को लाल कपड़े में लपेटकर अपनी त‍िजोरी में रखें. ये माता लक्ष्‍मी का ही स्‍वरूप होती है. साथ ही माता लक्ष्‍मी की पूजा में साबुत धन‍िया जरूर रखना चाहिए.
क्‍या है द‍िवाली पर लक्ष्‍मी पूजन की सही व‍िध‍ि

1. ईशान कोण या उत्तर दिशा में साफ-सफाई करके स्वास्तिक बनाएं. उसके ऊपर चावल की ढेरी रखें. अब उसके ऊपर लकड़ी का पाट बिछाएं. पाट के ऊपर लाल कपड़ा बिछाएं और उसपर माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर रखें. इस तस्वीर में गणेशजी और कुबेर की तस्वीर भी हो. माता के दाएं और बाएं सफेद हाथी के चित्र भी होना चाहिए.

2. पूजन के समय पंचदेव की स्थापना जरूर करें. सूर्यदेव, श्रीगणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु को पंचदेव कहा गया है. इसके बाद धूप-दीप जलाएं. सभी मूर्ति और तस्वीरों को जल छिड़ककर पवित्र करें.

3. अब खुद कुश (घांस) के आसन पर बैठकर माता लक्ष्मी की षोडशोपचार पूजा करें. षोडशोपचार पूजा का अर्थ है, 16 क्रियाओं से पूजा करना. पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नेवैद्य, आचमन, ताम्बुल, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार. पूजन के अंत में सांगता सिद्धि के लिए दक्षिणा भी चढ़ाना चाहिए.

4. माता लक्ष्मी सहित सभी के मस्तक पर हल्दी, कुमकुम, चंदन और चावल लगाएं. फिर उन्हें हार और फूल चढ़ाएं. पूजन में अनामिका अंगुली (छोटी अंगुली के पास वाली यानी रिंग फिंगर) से गंध (चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी आदि) लगाना चाहिए. इसी तरह उपरोक्त षोडशोपचार की सभी सामग्री से पूजा करें.

यदि हम छोटी पूजा करना चाहते हैं तो पंचोपचार पूजन विधि का पालन कर सकते हैं. जबकि लक्ष्‍मी माता की विस्तृत पूजा की इच्छा है तो उसके लिए षोडशोपचार पूजन विधि का पालन करें.

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