“आज या फिर कभी नहीं…”, कांग्रेस ने RJD को दे दिया अल्टीमेटम, सहनी की वजह से ही फंसा है पेंच!
पटना। बिहार की सियासत में हलचल मची है विधानसभा चुनाव 2025 की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और सीट बंटवारे की जंग ने माहौल को गरमा दिया है। एनडीए (NDA) ने चतुराई से अपनी चाल चल दी, जबकि महागठबंधन में सीटों की खींचतान और आंतरिक रार थमने का नाम नहीं ले रही। एनडीए ने 12 अक्टूबर को अपनी सीट शेयरिंग का ऐलान कर सबको चौंका दिया। बीजेपी (BJP) और जेडीयू (JDU) ने बराबर-बराबर 101-101 सीटें हथिया लीं। चिराग पासवान की लोजपा (रामविलास) को 29 सीटें मिलीं, जबकि उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा को 6 सीटों से संतोष करना पड़ा. जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को भी कुछ सीटें दी गईं। एनडीए का यह फॉर्मूला 2024 के लोकसभा चुनाव से प्रेरित है, जहां हर लोकसभा सीट को 6 विधानसभा सीटों के हिसाब से बांटा गया. इस एकजुटता ने एनडीए को मनोवैज्ञानिक बढ़त दे दी है।
महागठबंधन में रार, सहनी और कांग्रेस के तेवर तीखे!
उधर, महागठबंधन में सीट बंटवारे का सस्पेंस थ्रिलर फिल्म से कम नहीं. आरजेडी (RJD) नेता तेजस्वी यादव गठबंधन को एकजुट रखने की जद्दोजहद में जुटे हैं, लेकिन मुकेश सहनी की वीआईपी (VIP) और कांग्रेस के बीच तनातनी थम नहीं रही। सहनी, न सिर्फ ज्यादा सीटें मांग रहे हैं, बल्कि डिप्टी सीएम का पद भी ठोक रहे हैं। दिल्ली रवाना होने से पहले उन्होंने तंज कसा, “महागठबंधन का स्वास्थ्य खराब है, डॉक्टर से इलाज करवाने जा रहा हूं।” कांग्रेस ने भी दो टूक कह दिया है कि आज या फिर कभी नहीं.” बिहार कांग्रेस के बड़े नेता, जैसे राजेश राम और शकील अहमद खान दिल्ली पहुंच चुके हैं। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस ने 70 सीटों पर उम्मीदवारों की लिस्ट तैयार कर ली है। अगर वीआईपी के साथ बात बनती है, तो 56 सीटों पर ऐलान हो सकता है, वरना आज शाम तक 70 सीटों की घोषणा हो सकती है। लेकिन, अगर समझौता हुआ तो लिस्ट वापस भी हो सकती है।
पशुपति पारस और आईपी गुप्ता का ट्विस्ट!
महागठबंधन की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होतीं. पशुपति पारस की रालोजपा (RLJD) ने सीट न मिलने पर अकेले चुनाव लड़ने की धमकी दी है। दूसरी ओर, तेजस्वी ने आईपी गुप्ता से बात शुरू की है, जिन्हें कांग्रेस पहले ही तीन सीटों का ऑफर दे चुकी थी। कहलगांव और वैशाली जैसी सीटों पर आरजेडी और कांग्रेस में ठनी हुई है, जबकि सीमांचल की कुछ सीटों पर भी कांग्रेस की नजर है।
क्या है असली गेम?
पहले चरण का चुनाव नजदीक है और समय कम बचा है. एनडीए ने अपनी रणनीति साफ कर दी है, लेकिन महागठबंधन में अंदरूनी कलह उसे कमजोर कर रही है। मुकेश सहनी की बीजेपी से नजदीकी की चर्चाएं भी जोरों पर हैं, जो महागठबंधन के लिए खतरे की घंटी हो सकती है। क्या महागठबंधन आखिरी वक्त में एकजुट हो पाएगा? या फिर कांग्रेस और वीआईपी अपने-अपने रास्ते चल देंगे? अगले कुछ घंटे बिहार की सियासत के लिए निर्णायक साबित होंगे।