भविष्य जानने की अद्भुत विधियां, आखिर क्या है इन भविष्यवाणियों का सच

सदियों से भविष्यवाणी या भविष्य कथन हमारे जीवन का अभिन्न अंग रहा है। हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में किसी भी फैसले को सही ढंग से करने के लिए भविष्यवाणी की कई पद्धतियों का सहारा लेते हैं। भविष्यवाणी का मतलब है किसी विशेष पद्धति या विधि के प्रयोग से किसी भी व्यक्ति या घटना के बारे में जानने का प्रयास। आमतौर पर देखा गया है कि इन पद्धतियों के सहयोग से जीवन का फैसला चाहे वह अहम हो या आम, स्पष्ट समक्ष और सूक्ष्म दृष्टि से किया जा सकता है। ये पद्धतियां हमें जीवन में आने वाले अच्छे या बुरे समय के बारे में आगाह कर सकती हैं या फिर वर्तमान की कोई भी उलझन चाहे वह विवाह संबंधी हो या बच्चे के जन्म संबंधी, यात्रा का समय निश्चित करना हो या कारोबार में महत्वपूर्ण फैसला लेना हो, बीमारी के इलाज संबंधी या सामाजिक व्यवहार संबंधी हो, ये पद्धतियां हमें किसी भी विषय या घटना के बारे में सही समझ और सूक्ष्म दृष्टि प्रदान कर सकती हैं। कुछ लोग भविष्यवाणी को गंभीरता से लेते हैं तो कुछ लोगों का रवैया संदेहपूर्ण होता है। आपका चाहे कोई भी रवैया हो मगर सच बात तो यह है कि कभी-कभी ये भविष्यवाणी सबको उलझन और अचंभे में डाल देती हैं।

 

सबसे पहले आइए हम समझने की कोशिश करें कि भविष्यवाणी का मतलब क्या है? भविष्यवाणी का मतलब है किसी दैवी शक्ति के सहयोग व मार्गदर्शन में किसी विशेष साधन के उपयोग से विश्व का दिव्यज्ञान हमें हमारी चेतना के स्तर पर दिव्य दृष्टि या दिव्यवाणी के रूप में होता है और यह दिव्य ज्ञान किसी दैवी शक्ति के संपर्क से सूचित होता है। इन दैवी शक्तियों से संपर्क बनाने में कई बार वर्षों की तपस्या और शिक्षा की भी आवश्यकता रहती है। एक बार यह संपर्क हो जाने पर भविष्यवेत्ता किसी के भी बारे में कोई भी जानकारी मिनटों में दे सकता है। कभी-कभी यह दिव्यज्ञान हमें कुछ संकेत-चिन्ह और प्रतीकों के रूप में पहुंचाया जाता है। भविष्यवेत्ता को इन चिन्हों को प्रश्र के हिसाब से रूपांतरित करके प्रश्रकर्ता को उत्तर देना पड़ता है। भविष्यवाणी की कई पद्धतियां हैं जिनमें टैरट, कबाला, आई-चिंग, पैंडुलम, डाइजिंग, क्रिस्टल बाल गेझींग आदि आज भी प्रयोग में लाई जाती हैं।

 

माना जाता है कि हर एक पद्धति के अपने देवी-देवता हैं जिनकी उपासना इन पद्धतियों में निपुणता हासिल करने के लिए जरूरी है। साथ में भविष्यवेत्ता को चाहिए कि वह इन पद्धतियों का ठीक से अध्ययन करे क्योंकि हर एक पद्धति के अपने सूचना चिन्ह और प्रतीक होते हैं जिनके अपने अलग-अलग अर्थ होते हैं। इस तरह किसी भी पद्धति में निपुण होने के लिए अभ्यास व उपासना बहुत जरूरी है। भविष्यवाणी की सभी पद्धतियां वायु तत्व के अंतर्गत आती हैं। वायु तत्व की खास विशेषता यह है कि वह सर्वत्र समान रूप से व्याप्त है और वह सूक्ष्म एवं अदृश्य है। हम उसे पकड़ नहीं सकते, सिर्फ महसूस कर सकते हैं।

 

भविष्यवाणी भी इसी तरह सूक्ष्म, अमूर्त और अगोचर होती है पर वह हवा के झौंके की तरह रहस्यात्मक ढंग से प्रवेश करती है और लहराती हुई कभी फैलती तो कभी सिकुड़ती हुई रहस्यात्मक ढंग से विदा लेती है। इसलिए भविष्यवेत्ता को चाहिए कि वह सम्पूर्णत: सजग और सतर्क रहे, साथ में यह भी आवश्यक है कि वह किसी भी प्रकार के तनाव से मुक्त रहे, तभी वह यथार्थ भविष्यवाणी कर सकता है। भविष्यवाणी करते समय यह बहुत ही आवश्यक है कि भविष्यवेत्ता सिर्फ प्रश्र पर ही अपना ध्यान केंद्रित करे और अपनी पसंद, नापसंद या किसी भी तरह के मूल्यांकन को अपने दिमाग में न आने दे। भविष्यवेत्ता को दैवी शक्ति और प्रश्र के बीच एक कड़ी मात्र बनना है, जिससे उसके माध्यम से दैवी शक्ति अपना संदेश दे सके। इस तरह भविष्यवाणी कोई भी प्रश्र का उत्तर जानने की एक कला है, जिसमें भविष्यवेत्ता कोई एक दैवी शक्ति से संपर्क बनाकर उसके दिए हुए संदेश को प्रश्रकर्ता के लिए आम भाषा में भाषातंरित करता है। मगर इन पद्धतियों से कभी-कभी गलत जवाब भी मिल सकते हैं, हो सकता है कि प्रश्र सही ढंग से प्रस्तुत न किया गया हो या फिर जवाब के रूप में जो संकेत चिन्ह मिलते हैं, वे ठीक ढंग से रूपांतरित नहीं किए गए हों। इसलिए किस हद तक इन पद्धतियों पर भरोसा करना है यह प्रश्रकर्ता पर निर्भर करता है।

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