सच या झूठ, जानिए स्त्रियों को हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए या नहीं

वैसे तो 33 करोड़ देवी-देवताओं की कल्पना की गई है जिनमें हनुमान ही एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनकी पूजा करने से लगभग सभी देवी-देवताओं की पूजा का एक साथ फल मिल जाता है। हनुमान जी को बल-बुद्धि व ऋद्धि-सिद्धि का प्रतीक माना जाता है। यदि साधक सच्चे मन से इनकी उपासना करे तो इस कलियुग में यह तुरंत फल देने वाली मानी गई है। इसके अनेक प्रमाण हैं। सभी देवी-देवताओं ने इस धरती पर अवतार लिया और अपना कार्य निपटाकर अपने-अपने धामों को लौट गए परन्तु राम भक्त हनुमान सीता माता और ब्रह्मा जी के आशीर्वाद से अजर-अमर हैं। वह वायु के रूप में पूरे ब्रह्मांड में विचरण करते हैं, जिसने भी उन्हें सच्चे मन से पुकारा वह उसकी आवाज सुनकर दौड़े चले आते हैं और उपासक की इच्छा पूर्ति में सहायक बनते हैं। 

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गोस्वामी तुलसीदास ने इनकी सहायता से ही भगवान राम व लक्ष्मण के दर्शन किए थे। शास्त्रों में उल्लेख है कि हनुमान शिव के रुद्रावतार हैं। इनका जन्म वायुदेव के अंश और अंजनी के गर्भ से हुआ जो केसरी नामक वानर की पत्नी थीं। पुत्र न होने से वह दुखी थीं। मतंग ऋषि के कहने पर अंजनी ने बारह वर्ष तक कठोर तपस्या की जिसके फलस्वरूप इनका जन्म हुआ। 


प्राय: कहा जाता है कि स्त्रियों को हनुमान जी की पूजा नहीं करनी चाहिए किन्तु यह मान्यता तर्कसंगत नहीं है, न ही शास्त्रों में ऐसा कोई निषेध है। अत: स्त्रियां भी पुरुषों की तरह हनुमान जी की पूजा उपासना कर सकती हैं तथा मंदिर जाकर प्रसाद भी चढ़ा सकती हैं। केवल लम्बे अनुष्ठान करने में प्राकृतिक बाधा आती है। अत: वे हनुमान चालीसा के प्रतिदिन 5 या 10 पाठ कर 20 या 10 दिन में 100 पाठ का अनुष्ठान कर सकती हैं।

 

महिलाएं हनुमान जी की पूजा में यह कार्य कर सकती हैं


* दीप अर्पित कर सकती हैं। 

* गूगुल की धूनी रमा सकती हैं।

* हनुमान चालीसा, संकट मोचन, हनुमानाष्टक, सुंदरकांड  आदि का पाठ कर सकती हैं।

* हनुमान जी का भोग प्रसाद अपने हाथों से बनाकर अथवा बाजार से लाकर अर्पित कर सकती हैं। 

 


महिलाएं हनुमान जी की पूजा में यह कार्य नहीं कर सकती


* लंबे अनुष्ठान नहीं कर सकती। इसके पीछे उनका राजस्वला होना और घरेलू उत्तरदाय़ित्व निभाना मुख्य कारण है। 

* रजस्वला होने पर हनुमान जी से संबंधित कोई भी कार्य न करें।

* बजरंग बाण का पाठ नहीं करना चाहिए।

* हनुमान जी को आसान नहीं देना चाहिए।

* अर्घ्यं समर्पित नहीं करना चाहिए।

* पाद्यं अर्थात चरणपादुकाएं अर्पित नहीं करनी चाहिए।

* आचमन नहीं कर सकती। 

* पंचामृत स्नान नहीं करा सकती।

* वस्त्र युग्मं अर्थात कपड़ों का जोड़ा समर्पित नहीं कर सकती। 

* यज्ञोपवीतं अर्थात जनेऊ अर्पित नहीं कर सकती। 

* आभरणानि अर्थात दंडवत प्रणाम नहीं कर सकती।

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