आपसी मेल मिलाप के लिये लगते है मेले: उस्मानी पांच दिवसीय बूढ़े बाबा के मले का समापन

बाराबंकी।  सूफी सन्तों के विचारों ने ही समाज को एक सूत्र में पिरोया है इन्ही के बताये हुए रास्ते पर चलने से निश्चित ही समाज में आपसी भाईचारे, प्रेम एवं मेल मिलाव बढ़ता है राष्ट्रीय एकता एवं सौहार्द की प्रतीक दरगाह शरीफ हज़रत सैय्यद सालार साहू गाज़ी (बूढे बाबा) रहमत उल्लाह अलैह की याद में लगने वाले उर्स, मेले के समापन अवसर पर उक्त विचार प्रबन्ध समिति के सचिव चैधरी कलीम उद्दीन उस्मानी ने व्यक्त किये। श्री उस्मानी ने कहा कि उर्स, मेले आस्थावानों के साथ- साथ व्यापारी वर्ग के लिए व्यवसाय का ज़रिया होता है जिससे कई लोगों को रोजगार मिल जाता है और श्रद्धालुओं को अपनी आस्था प्रकट करने का मौका मिलता है। इसके साथ उर्स, मेले में धार्मिक, समाजिक कार्यक्रम भी होते है जिनसे समाज को और बेहतर बनाने का संदेश जाता है जिससे आपसी भाईचारें और कौमी एकता की मिसाल कायम होती है। इसके पश्चात उर्स, मेले में धार्मिक, समाजिक, नातिया मुशायरा, नातख्वानी, सुफियाना कव्वाली, तमाम उल्मा, कारियों, मौलानाओं ने कुरान शरीफ की तिलावत की जिसके बाद मेले का समापन भव्य आतिशबाज़ी के साथ हुआ। समापन अवसर पर सरफराज अहमद खां, असगर अली अंसारी, फरज़ान उस्मानी, फौज़ान उस्मानी, अफजाल सभासद, शेख असद, मोहम्मद जुबेर, खादिम दरगाह रशिद हुसैन, राम प्रसाद यादव, जितेन्द्र यादव, सुन्दर लाल, राम सिंह, कन्धाई लाल, अशफाक अली मलिक आदि लोग उपस्थित रहे।

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