कोर्ट ने खारिज किया केस तो मुवक्किल ने वकील पर किया मुकदमा

नरोदा के राजेंद्र सेठ को जब पता चला कि कोर्ट ने उनका केस इसलिए खारिज कर दिया, क्‍योंकि उनका वकील अदालती कार्रवाई के समय हाजिर नहीं हुआ तो उनकी नाराजगी का कोई ठिकाना नहीं रहा। गुस्‍से में राजेंद्र ने अपने वकील पर ही मुकदमा कर दिया। राजेंद्र ने अपने वकील कल्‍पेश पटेल से 75 हजार रुपयों के हर्जाने की मांग करते हुए उपभोक्‍ता अदालत में केस कर दिया। लेकिन अहमदाबाद की उपभोक्‍ता अदालत ने उलटे राजेंद्र के 'अडियल रवैये' के लिए ही फटकार लगा दी। 

न तो राजेंद्र सेठ और न ही उनके वकील सुनवाई पर पहुंचे 
प्राप्‍त जानकारी के अनुसार, राजेंद्र सेठ की बापूनगर में एक पार्टनरशिप फर्म थी। इस पर 2004 में बिजली अधिकारियों ने छापा मारा और बिजली काट दी। राजेंद्र सेठ ने 5 हजार रुपये की फीस पर कल्‍पेश पटेल की सेवाएं लीं और सिविल कोर्ट में एक सिविल केस कर दिया। कोर्ट ने आदेश किया कि एक निश्चित रकम के भुगतान के बाद बिजली बहाल कर दी जाए। तब से यह केस लंबित चल रहा था। इसकी पहली सुनवाई आठ वर्षों बाद हुई। लेकिन 2016 में यह केस कोर्ट ने डिसमिस कर दिया। न तो राजेंद्र सेठ और न ही उनके वकील सुनवाई पर पहुंचे थे। बाद में राजेंद्र सेठ की प्रार्थना पर कोर्ट ने फिर से मुकदमा बहाल किया। 

क्‍लाइंट को सही से सेवाएं न देने के आधार पर मुकदमा 
अपना केस डिसमिस होने से नाराज राजेंद्र ने कल्‍पेश पटेल पर सुनवाई में मौजूद न रहने और पैसे लेने के बाद भी अपने क्‍लाइंट को सही से सेवाएं न देने के आधार पर मुकदमा कर दिया। 

लेकिन कल्‍पेश पटेल ने अपने बचाव में दलील दी कि राजेंद्र सेठ उनके कस्‍टमर नहीं हैं क्‍योंकि उनका मुकदमा उनके व्‍यापारिक हितों से जुड़ा था। पटेल ने यह भी कहा कि सुनवाई के समय उन्‍होंने कई बार सबूतों के लिए अपने क्‍लांइट को फोन किया लेकिन उन्‍होंने उसका कोई जवाब नहीं दिया। 

दोनों पक्षों को सुनने के बाद कंज्‍यूमर कोर्ट ने कहा, 'हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि कोई वकील अपने क्‍लाइंट को मौजूद रहने और दस्‍तावेज मुहैया कराने के लिए एक सीमा तक ही कह सकता है। यह क्‍लाइंट का भी फर्ज है कि वह अपने वकील के संपर्क में रहे। वादी के उदासीन बर्ताव की वजह से मुकदमे के नतीजे के लिए उनके वकील को नहीं ठहराया जा सकता।' 

Leave a Reply