क्या है खाटू श्याम बाबा की कहानी, कैसे मिला था श्री कृष्ण से वरदान

खाटू श्याम को भगवान श्री कृष्ण के कलयुगी अवतार के रूप में जाना जाता है। ऐसा कहे जाने के पीछे एक पौराणिक कथा का हाथ है। हम आपको खाटू श्याम जी से जुड़ी मान्यताओं के बारे बताएंगे।
खाटू श्याम जी को भगवान कृष्ण का ही एक अवतार कहा जाता है। खाटू श्याम बाबा का प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर राजस्थान के सीकर जिले के खाटू ग्राम में स्थित है। हर साल भारी संख्या में इस मंदिर में श्रद्धालु यहां दर्शन करते हैं।

खाटू श्याम का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा बताया जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी बताई गई है।

खाटू श्याम की कथा
-द्वापर युग के अंतिम चरण में हस्तिनापुर में कौरव एवम पांडव का राज्य था। पाण्डवों के वनवासकाल में भीम का विवाह हिडिम्बा के साथ हुआ था। दोनों को एक पुत्र हुआ, जिसका नाम घटोत्कच रखा गया।

-पाण्डवों का राज्याभिषेक होने पर घटोत्कच का कामकटंकटा के साथ विवाह हुआ। दोनों को एक पुत्र हुआ जिसका नाम बर्बरीक था। उसने भगवती जगदम्बा से अजेय होने का वरदान प्राप्त किया था।

-महाभारत के युद्ध के दौरान बर्बरीक युद्ध देखने के इरादे से कुरुक्षेत्र निकल गया। रास्ते में विप्र रूप धारी श्री कृष्ण से सामना हुआ। विप्र के पूछने पर उसने अपने आप को योद्धा व दानी बताया। श्री कृष्ण ने उसकी परीक्षी लेनी चाही तो उसने पेड़ के प्रत्येक पत्ते को एक ही बाण से भेंद दिया तथा श्री कृष्ण के पैर के नीचे वाले पत्ते को भी भेंदकर वह बाण वापस तरकश में चला गया।
-विप्र वेशधारी श्री कृष्ण के पूछने पर उसने कहा कि मैं कमजोर पक्ष की तरफ से युद्ध में लड़ूंगा। श्री कृष्ण ने उससे कहा कि अगर तुम महादानी हो तो अपना शीश (सिर) समर भूमि की बलि हेतु दान में दे दो। श्री कृष्ण के द्वारा अपना असली परिचय दिए जाने पर बर्बरीक ने महाभारत युद्ध देखने कि इच्छा प्रकट की।

-रात भर भजन-पूजन कर प्रातः फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को स्नान पूजा आदि करके, अपने हाथ से अपना शीश श्री कृष्ण को दान कर दिया। श्री कृष्ण ने बर्बरीक के कटे शीश को युद्ध अवलोकन के लिए, एक ऊंचे स्थान पर स्थापित कर दिया।
-युद्ध में विजय श्री प्राप्त होने पर पांडव विजय के श्रेय लेने हेतु वाद-विवाद कर रहे थे। तब श्रीकृष्ण ने कहा की इसका निर्णय बर्बरीक का शीश कर सकता है। बर्बरीक के शीश ने बताया कि युद्ध में श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र चल रहा था और द्रौपदी महाकाली के रूप में रक्त पान कर रही थीं।

-श्री कृष्ण ने प्रसन्न होकर बर्बरीक के उस कटे सिर को वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे श्याम नाम से पूजित होगे तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष कि प्राप्ति होगी।

स्वप्न दर्शनोंपरांत बाबा श्याम, खाटू धाम में स्थित श्याम कुण्ड से प्रकट हुए थे। श्री कृष्ण विराट शालिग्राम रूप में सम्वत 1777 में निर्मित खाटू श्याम जी के मंदिर में भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण कर कर रहे हैं।
हर साल होता है खाटूश्याम मेला
प्रत्येक वर्ष होली के दौरान खाटू श्याम जी का मेला लगता है। इस मेले में देश-विदेश से कई भक्तजन बाबा खाटू श्याम जी के दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर में भक्तों की गहरी आस्था है। बाबा श्याम, हारे का सहारा, लखदातार, खाटूश्याम जी, मोर्विनंदन, खाटू का नरेश और शीश का दानी इन सभी नामों से खाटू श्याम को उनके भक्त पुकारते हैं। खाटूश्याम जी मेले का आकर्षण यहां होने वाली मानव सेवा भी है। बड़े से बड़े घराने के लोग आम आदमी की तरह यहां आकर श्रद्धालुओं की सेवा करते हैं। कहा जाता है ऐसा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। लगभग एक महीने पहले से मेले की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। सरकार की तरफ से इस मेले के लिए खास इंतजाम किए जाते हैं। भक्तों के आने-जाने के लिए विशेष ट्रेन-बस भी चलाई जाती है।

खाटूश्याम जी के चमत्कार
भक्तों की इस मंदिर में इतनी आस्था है कि वह अपने सुखों का श्रेय उन्हीं को देते हैं। भक्त बताते हैं कि भगवान से जो भी मुराद मानी है वो पूरी हुई है। खाटूधाम में आस लगाने वालों की झोली बाबा खाली नहीं रखते हैं। बताते हैं कि धाम में दुकान लगाने वाले व्यापारी काफी बुरी स्थिति में थे, बाबा की ऐसी कृपा हुई कि कुछ साल में वह रंक से राजा बन गए। सबका व्यापार फल-फूल रहा है। सालों से बाबा श्याम यहां आने वाले श्रद्धालुओं पर अपना वात्सल्य बरसा रहे हैं।
 

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