जन्मोत्सव10 फरवरी: शोषितों और वंचितों के तारणहार गुरु रविदास जी महाराज

मध्य युग जिसे हम भक्ति काल भी कहते हैं, में सन् 1376 में रविवार पूर्णिमा के दिन सीर गोवर्धन पुर बनारस में पिता संतोख दास जी और माता कलसां जी के घर गुरु रविदास जी का जन्म हुआ। आप ने मान-सम्मान की लड़ाई में प्रेम भरी और मधुर वाणी द्वारा ऊंच-नीच, छुआछूत और जात-पात के बंधनों को कम करने का भरसक प्रयास किया। गुरु जी ने शोषितों और पीड़ितों में मान सम्मान और स्वाभिमान की भावना जागृत की। अपनी वाणी से सिद्ध कर दिया कि इस संसार में कोई भी ऊंचा और नीचा नहीं है बल्कि उसके कर्म और स्वभाव ही उसे छोटा या बड़ा बनाते हैं। गुरु जी ने इस संसार में आंखें खोलते ही अपने आपको असहज पाया। सामाजिक असंतुलन, चारों ओर अशांति और निराशा का वातावरण, अंधविश्वास और भय का साम्राज्य, धार्मिक और सामाजिक अत्याचार, ऊंच-नीच की दीवारें तथा अछूत उत्पीडऩ जैसी बुराइयों से वह विचलित हो गए। उन्होंने विदेशियों द्वारा देश को गुलाम बनाए जाने के लिए सामाजिक असंतुलन को जिम्मेदार ठहराया। 


अपनी दिव्य दृष्टि से उन्होंंने देखा कि समाज के बनाए हुए काले कानून मानव से घृणा करना सिखाते हैं। जाति भेद और ऊंच-नीच के कारण सभी दुखी हैं कोई अपने अहंकार के कारण गर्त की ओर अग्रसर है तो दूसरा समाज में घृणा को बढ़ावा दे रहा है। कोई दूसरों का नैतिक हक खाकर ही समाज में अनैतिकता को बढ़ावा दे रहा है तो कोई अपने हक की लूट के कारण दुखी है। इससे मुक्ति के लिए उन्होंने ऐसे समाज की कल्पना की जहां सभी सुखी हों, एक समान हों, स्वतंत्र हों, प्रसन्न हों। जहां सामाजिक न्याय का सम्मान हो, जहां कोई किसी का हक न खाए और सबको अपना नैतिक हक मिले। गुरु रविदास जी ने ऐसे वतन को बेगमपुरा (बे-गम-पुरा) अर्थात आधुनिक शैली में रामराज्य का नाम दिया। उन्होंने ऐसे राम राज्य की अवधारणा करते हुए 600 वर्ष पूर्व ही विशुद्ध समाजवाद की कल्पना कर संसार को संबोधित करते हुए अपनी अमरवाणी में कहा था कि 

ऐसा चाहुं राज मैं जहां मिले सबन को अन्न।
छोट बड़ों सभी सम वसैं, रविदास रहे प्रसन्न॥


गुरु रविदास जी ने कहा था कि उनके बेगमपुरा में सभी बुद्धिमान होंगे। किसी को कोई चिंता और घबराहट नहीं होगी। किसी को कोई हानि नहीं होगी। कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं होगा। चारों ओर आनंदमय वातावरण होगा। जातीय अहंकार और घृणा के बादल हट जाएंगे। एक सुदृढ़ और आदर्श राजनीतिक शासन व्यवस्था होगी। लोगों में विशुद्ध सामाजिक और धार्मिक सोच पैदा होगी।
तत्कालीन सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था के कारण गुरु जी का घोर विरोध हुआ परंतु महान सिख गुरुओं ने गुरु जी का आदर-सत्कार कर उनकी 40 वाणियों के पदों को सिखों के महान ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में संकलन किया है।


गुरु रवि दास जी का सामाजिक चिंतन उच्च कोटि का था। वह मानवता के स्तम्भ, सामाजिक क्रांति के अग्रदूत, समता वादी समाज के पक्षधर, जात-पात, उन्मूलन के संघर्ष के जनक तथा दलितों तथा पिछड़ों में आत्मज्ञान एवं  भक्ति की नई चेतना जगाने वाले थे। उन्होंने लोगों में पाखंड, अंधविश्वास, वर्णव्यवस्था तथा जात-पात और ऊंच-नीच के भेदभाव की संकीर्णता की गंदगी को साफ करने में सफलता पाई। उन्होंने अंधविश्वास और पाखंड के विरुद्ध जन चेतना का संचार किया। तत्कालीन समाज में व्याप्त सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई। प्रत्येक व्यक्ति श्रम से जीविकोपार्जन करे तथा सब मनुष्य बराबर हों। इस नियम के प्रतीक बनकर उन्होंने कहा था कि : 

रविदास श्रम कर खाइये जब लौ पार बसाये।
नेक कमाई जऊ करई कभी न निष्फल जाये॥


उन्हें किसी भी प्रकार की गुलामी पसंद नहीं थी। उन्होंने कहा था कि गुलामी करना पाप है। चाहे गुलामी विदेशी हो या देसी। उन्होंने कहा कि जुल्म के सामने झुकना कायरता है। गुरु जी ने उस समय के राजाओं को तलवार से नहीं बल्कि अपनी शीतल वाणी द्वारा उनका दिल जीता। सामाजिक विषमताओं के कारण उपजी विदेशी गुलामी जिसने हिन्दू समाज को संसार के सामने शर्मसार किया हुआ था के विरुद्ध आवाज उठाते हुए उन्होंने कहा था कि : 

पराधीनता पाप है, जान लेहु रे मीत।
रविदास दास पराधीन से कौन करे है प्रीत॥
पराधीन का दीन क्या पराधीन वे दीन। 
रविदास पराधीन को सवै ही समझे हीन॥


गुरु रविदास जी ने कहा था कि मनुष्य के खरे-खोटे कर्मों से ही उसकी पहचान होती है। गुरु जी ने हमेशा समता और समानता की बात की। उन्होंने स्त्री और पुरुष में कोई भेद नहीं माना। अपनी वाणियों द्वारा नारी वर्ग के लिए स्वतंत्रता और समानता के द्वार खोले। स्त्रियों के लिए ज्ञान का मार्ग प्रशस्त किया। सत्गुरु रविदास जी महाराज ने छुआछूत, ऊंच-नीच के गढ़ सिर्फ बनारस में ही नहीं बल्कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, जम्मू-कश्मीर, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और पंजाब के कई इलाकों की लगभग पांच उदासियां करके सफलतापूर्वक अपनी इस नई विचारधारा का प्रचार किया। इन उदासियों के दौरान उनकी विचारधारा का करिश्मा ही था कि राणा सांगा, राजा भोजराज, राजा पीपा, महारानी मीरां बाई तथा झाला बाई इत्यादि 52 राजा-रानियों तथा अन्य लाखों प्राणियों ने उन्हें गुरु धारण किया।

Leave a Reply