डोकलाम विवाद के बीच चीनी कंपनियों के लिए रास्ता मुश्किल बनाने की तैयारी में भारत

नई दिल्ली . सिक्किम सेक्टर के डोकलाम में करीब दो महीने से भारत और चीन के सैनिक आमनेसामने डटे हुए हैं। चीन लगातार युद्ध की धमकी दे रहा है तो तनावग्रस्त सीमा से हजारों किलोमीटर दूर भारत सरकार एक खास प्लान तैयार कर रही है। सरकार चीन पर ऐसा 'चोट' करना चाहती है जो उसे सबसे अधिक दर्द देगा।

दरअसल, सरकार भारत में बड़े स्तर पर व्यापार कर रहे चीन को आर्थिक मोर्चे पर घेरने की तैयारी में है। इलेक्ट्रिसिटी, टेलिकॉम और इलेक्ट्रॉनिक्स इक्विपमेंट्स की आपूर्ति से जुड़े नियमों को सरकार कस रही है, जिससे चाइनीज फर्म्स के लिए कॉन्ट्रैक्ट्स पाना और दाखिल होना मुश्किल हो जाएगा।

बिजली का झटका

एक रिपोर्ट के मुताबिक, सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (CEA) देश के पावर स्टेशन्स और स्मार्ट ग्रिड सिस्टम्स को साइबर हमलों से बचाने के लिए जैसा रोडमैप तैयार कर रही है, उससे चीनी कंपनियों के लिए इसमें हिस्सा लेना मुश्किल हो जाएगा।

दिलचस्प यह है कि, ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने पिछले दिनों एक इंटरव्यू में कहा था कि यह सरकार भविष्य में कॉन्ट्रैक्ट्स देते समय 'परस्पर आदानप्रदान' के सिद्धांत पर काम करेगी। इंडस्ट्री के कुछ जानकार मानते हैं कि सरकार का यह कदम कुछ विदेशी कंपनियों विशेषकर चीन को रणनीतिक सेक्टर से बाहर रखने के लिए है।

CEA चेयरमैन आर.के. वर्मा ने बताया कि अथॉरिटी देश के पावर सिस्टम को सुरक्षित करने के लिए काम कर रही है। हालांकि उन्होंने जोर देकर कहा, 'यह किसी एक देश के खिलाफ नहीं, बल्कि उन सभी देशों के खिलाफ है जो हमारे सिस्टम को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं।'

वर्मा ने CEA के नए नियमों के बारे में बताने से इनकार किया, लेकिन सूत्रों के मुताबिक, कंपनियों के लिए भारत में 10 साल तक रहने, भारतीय नागरिक को सर्वोच्च पदों पर रखने, कर्मचारियों के लिए निश्चित समय सीमा का निवास, जैसी शर्तें रखी जा सकती हैं। इसके अलावा कंपनियों से ट्रांसमिशन सिस्टम के इनपुट स्रोत का खुलासा करने को कहा जा सकता है और मालवेयर टेस्ट को अनिवार्य किया जा सकता है।

चाइनीज बिजली कंपनियां अभी यहां अच्छा कारोबार कर रही हैं, क्योंकि भारत में घरेलू विनिर्माण की क्षमता कम थी और चीन को बड़े कॉन्ट्रैक्ट्स हासिल करने में आसानी हुई।

टेलिकॉम सेक्टर

इसी तरह केंद्र सरकार टेलिकॉम सेक्टर में भी सुरक्षा मानकों को ऊंचा कर रही है, जिसमें टेलिकॉम इक्विपमेंट और स्मार्टफोन्स बनाने वाली चाइनीज कंपनियों का दबदबा है। पिछले सप्ताह बिजली और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने स्मार्टफोन बनाने वाली 21 कंपनियों से सिक्यॉरिटी, आर्किटेक्चर फ्रेमवर्क, गाइडलाइन्स, स्टैंडर्ड आदि की जानकारी मांगी है। इन कंपनियों में अधिकतर चाइनीज हैं।

Xiaomi, Lenovo, Oppo, Vivo और Gionee जैसे चाइनीज वेंडर्स का भारत के 10 अरब डॉलर के स्मार्टफोन बाजार के आधे से अधिक हिस्से पर कब्जा है।

राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष सतीश कुमार कहते हैं, 'पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को समर्थन देकर हमारे अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप करने की वजह से चीन के खिलाफ काफी गुस्सा है। दूसरी तरफ वह हमारे व्यापार और उद्योगों को वह हर साल काफी नुकसान पहुंचा रहा है।' संगठन ने लोगों से चीनी सामानों के बहिष्कार की अपील की है।

मुश्किल हुआ रास्ता

भारत ने बिजली उत्पादन और वितरण के लिए चाइनीज सामानों का इस्तेमाल किया है। ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने इस महीने संसद को बताया कि ट्रांसमिशन लाइन बिछाने के लिए बोली लगाने वाले कंपनियों में CLP इंडिया प्राइवेट लि. के साथ चाइना सदर्न पावर ग्रिड भी शामिल है।

इंडियन इलेक्ट्रिकल ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरर्स असोसिएशन के डायरेक्टर जनरल सुनील मिश्रा ने कहा, 'पावर ट्रांसमिशन के नए नियमों से स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा। चीन भी अपने यहां विदेशी कंपनियों को सीमित पहुंच देता है।'

 

CEA ड्राफ्ट से जुड़े एक और व्यक्ति ने बताया कि सुरक्षा एजेंसियों ने पावर सेक्टर में रहे चाइनीज इक्विपमेंट्स के लिए कई प्रोटोकॉल्स और जांच को लागू किया है। उन्होंने कहा, 'यह ताजा घटनाक्रम है और सब शांति से हो रहा है।'

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