नरक चतुर्दशी, मुख्य द्वार पर जलाएं एक दीप मिलेगा ये लाभ

मुंबई

बुधवार को कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी है। इसे नरक चौदस, नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली कहा जाता है। इस दिन भी दिवाली की तरह पूजा-पाठ कर, दीप जलाए जाते हैं लेकिन पूजा कृष्ण भगवान, यमराज और हनुमान जी की होती है। यह पूजा करने से मनुष्य नर्क में मिलने वाली यातनाओं से बच जाता है। नरक का अर्थ है गंदगी, जिसे साफ करना बहुत जरूरी होता है। शास्त्रों के अनुसार जहां स्वच्छता और पवित्रता होती है, वहीं माता लक्ष्मी वास करती हैं। इसलिए इस दिन माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए लोग घरों की सफाई करते हैं। नरक चौदस के दिन तिल के तेल के 14 दीपक जलाने की परंपरा है।

 

ऐसे नाम पड़ा नरक चतुर्दशी

पंडित कमल श्रीमाली के मुताबिक नरक चतुर्दशी को मुक्ति पाने वाला पर्व कहा जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। इसलिए इस चतुर्दशी का नाम नरक चतुर्दशी पड़ा। इस दिन सूर्योदय से पहले उठने और स्थान करने का महत्त्व है। इससे मनुष्य को यम लोक का दर्शन नहीं करना पड़ता है। कार्तिक मास में तेल नहीं लगाना चाहिए, फिर भी इस तिथि विशेष को शरीर में तेल लगाकर स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद शुद्ध वस्त्र पहनकर, तिलक लगाकर दक्षिणाभिमुख होकर दिए गए मंत्रों से प्रत्येक नाम से तिलयुक्त तीन-तीन तिलांजलि देनी चाहिए। यह यम-तर्पण कहलाता है। इससे वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते हैं।

ॐ यमाय नमः, ॐ धर्मराजाय नमः, ॐ मृत्यवे नमः, ॐ अन्तकाय नमः, ॐ वैवस्वताय नमः, ॐ कालाय नमः, ॐ सर्वभूतक्षयाय नमः, ॐ औदुम्बराय नमः, ॐ दध्नाय नमः, ॐ नीलाय नमः, ॐ परमेष्ठिने नमः, ॐ वृकोदराय नमः, ॐ चित्राय नमः, ॐ चित्रगुप्ताय नमः

 

शाम को ऐसे जलाएं दीप

संध्या के समय देवताओं का पूजन कर दीपदान करना चाहिए। नरक निवृत्ति के लिए चार बत्तियों वाला दीपक पूर्व दिशा में मुख कर के घर के मुख्य द्वार पर रखना चाहिए। मंदिरों, रसोईघर, स्नानघर, देववृक्षों के नीचे, नदियों के किनारे, चहारदीवारी, बगीचे, गोशाला आदि स्थान पर दीपक जलाना चाहिए। विधि-विधान से पूजा करने वाले सभी पापों से मुक्त हो स्वर्ग को प्राप्त करते हैं।

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