‘मरते-मरते’ शनि के ये 7 राज़ खोल गया कसिनी

साल 1997 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने शनि ग्रह के अध्ययन के लिए कसिनी नाम का अंतरिक्षयान भेजा था। यह यान 2004 में सौर मंडल के सबसे सुंदर ग्रह माने जाने वाले शनि की कक्षा में पहुंचा और 20 साल के सफर के बाद 15 सितंबर 2017 को नष्ट हो गया। आगे की स्लाइड्स में जानिए कि कैसे कसिनी कैसे सौर मंडल के दूसरे सबसे बड़े ग्रह के बारे में पृथ्वी तक जानकारी पहुंचाने में मदद की…
 
एनसैलेडल पर ढूंढा महासागर
कसिनी ने अपने अध्ययन के जरिए बताया कि शनि के छठे सबसे बड़े चंद्रमा 'एनसैलेडस' की बर्फीली सतह के नीचे नमकीन तरल पानी का महासागर है। ब्रह्मांड में जीवन की खोज के क्षेत्र में यह बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ था।
 
शनि के 6 नए चंद्रमा ढूंढे
शनि के 60 से ज्यादा चंद्रमा हैं। इनमें से 6 का पता कसिनी ने लगाया है। इनमें से कुछ दिखने में आलू की तरह हैं। कुछ रंग-बिरंगे। सभी चंद्रमाओं का आकार भी अलग-अलग है।
 
एक मौसम 7 साल तक रहता है
शनि ग्रह पर हर मौसम पृथ्वी के 7 सालों के बराबर रहता है। कसिनी शनि ग्रह की कक्षा में सर्दी के मौसम में घुसा था और उसने यह जानकारी दी कि शनि ग्रह पर कैसे बसंत और गर्मी का मौसम आता है।
 
टाइटन की सतह से जुड़े बड़े खुलासे
कसिनी ने बताया कि शनि के सबसे बड़े चंद्रमा टाइटन पर बड़े-बड़े बर्फ के चट्टान और तरल मीथेन की नदियां हैं। यह सौर मंडल का सिर्फ अकेला ऐसा चंद्रमा है जिसकी सतह के नीचे तरल जलाशय हैं।
 
धरती के चक्रवात से 50 गुना ज्यादा बड़ा तूफान
शनि ग्रह के अशांत वातावरण में अक्सर तूफान आते हैं। कसिनी ने नॉर्थ-पोलर तूफान के पास जाकर अध्ययन किया। इसके चक्रवात का केंद्र धरती के चक्रवात के केंद्र से 50 गुना व्यापक था।
 
खोला शनि ग्रह के छल्लों का राज
दूसरे ग्रहों से अलग शनि ग्रह के छल्ले सौर मंडल के बनने के 5 अरब सालों से वैसे के वैसे ही हैं। कसिनी की तस्वीरों में दिखता है कि कैसे बर्फ और धूल के बने इन छल्लों में चंद्रमा घूम रहे हैं। इन चंद्रमाओं के टकराने और पास से गुजरने के दौरान जो पदार्थ निकलते हैं, उन्हीं से ये छल्ले जिन्दा रहते हैं।
 
5000 वैज्ञानिक मिशन से जुड़े थे
कसिनी ने 20 साल में 7.9 अरब किलोमीटर का सफर किया है। इसने अब तक कुल 4 लाख 53 हजार 48 तस्वीरें भेजी और 635 जीबी डेटा इकट्ठा हुआ। नष्ट होते समय कसिनी 1 लाख 20 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रा था। इस मिशन पर 27 देशों के 5 हजार वैज्ञानिक लगे हुए थे। इस मिशन पर कुल 3.9 अरब डॉलर खर्च हुआ।

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