वीर सावरकर न होते तो 1857 की क्रांति भी इतिहास न बनती: अमित शाह
वाराणसी. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) की दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 'गुप्तवंशक-वीर: स्कंदगुप्त विक्रमादित्य' का शुभारंभ गुरुवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने जब काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की तब उनकी सोच जो भी रही हो, लेकिन स्थापना के इतने वर्षों बाद भी ये विश्वविद्यालय हिंदू संस्कृति को अक्षुण रखने के लिए अडिग खड़ा है और हिंदू संस्कृति को आगे बढ़ा रहा है. इस दौरान अमित शाह ने कहा कि वीर सावरकर न होते तो 1857 की क्रांति भी इतिहास न बनती, उसे भी हम अंग्रेजों की दृष्टि से देखते. वीर सावरकर ने ही 1857 की लड़ाई को पहला स्वतंत्रता संग्राम का नाम दिया.
'विद्यापीठ ही कर सकती है गुलामी के बाद किसी भी गौरव को पुनः प्रस्थापित'
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि सम्राट स्कन्दगुप्त ने भारतीय संस्कृति, भारतीय भाषा, भारतीय कला, भारतीय साहित्य, भारतीय शासन प्रणाली, नगर रचना प्रणाली को हमेशा से बचाने को प्रयास किया है. सैकड़ों साल की गुलामी के बाद किसी भी गौरव को पुनः प्रस्थापित करने के लिए कोई व्यक्ति विशेष कुछ नहीं कर सकता, एक विद्यापीठ ही ये कर सकती है. अमित शाह ने कहा कि भारत का अभी का स्वरूप और आने वाले स्वरूप के लिए हम सबके मन में जो शांति है, उसके पीछे का कारण ये विश्वविद्यालय ही है.
मौर्य और गुप्त वंश ने भारतीय संस्कृति को विश्व के अंदर सर्वोच्च स्थान पर दिलाया
उन्होंने कहा कि महाभारत काल के 2000 साल बाद 800 साल का कालखंड दो प्रमुख शासन व्यवस्थाओं के कारण जाना गया. मौर्य वंश और गुप्त वंश. दोनों वंशों ने भारतीय संस्कृति को तब के विश्व के अंदर सर्वोच्च स्थान पर प्रस्थापित किया. गुप्त साम्राज्य की सबसे बड़ी सफलता ये रही कि हमेशा के लिए वैशाली और मगध साम्राज्य के टकराव को समाप्त कर एक अखंड भारत के रचना की दिशा में गुप्त साम्राज्य आगे बढ़ा था.
चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के साथ इतिहास में बहुत अन्याय हुआ
उन्होंने कहा कि चंद्रगुप्त विक्रमादित्य को इतिहास में बहुत प्रसिद्धि मिली है लेकिन उनके साथ इतिहास में बहुत अन्याय भी हुआ है. उनके पराक्रम की जितनी प्रसंशा होनी थी, उतनी शायद नहीं हुई. जिस तक्षशिला विश्वविद्यालय ने कई विद्वान, वैद्य, खगोलशात्र और अन्य विद्वान दिए, उस विश्वविद्यालय को तहस-नहस कर दिया गया था.
तब सम्राट स्कंदगुप्त ने अपने पिता से कहा कि मैं इसका सामना करूंगा और उसके बाद 10 साल तक जो अभियान चला, उसमें समग्र देश के अंदर हूणों का विनाश करने का पराक्रम स्कन्दगुप्त ने ही किया. उन्होंने कहा कि अपने इतिहास को संजोने, संवारने, अपने इतिहास को फिर से री-राइट करने की जिम्मेदारी, देश की होती है, जनता की होती है, देश के इतिहासकारों की होती है. हम कब तक अंग्रेजों को कोसते रहेंगे.