शास्त्रों से जानें, पीपल की पूजा का रहस्य

दधीचि पुत्र पिप्पलाद ने जब माता से अपने पिता की देवताओं द्वारा अस्थियां मांगे जाने और उनसे बने वज्र से अपने प्राण बचाने का पौराणिक विवरण सुना तो उनके मन में देवताओं के प्रति घृणा उपजी। ‘‘मैं इनसे पिता को ‘सताने’ का बदला लूंगा’’ 


ऐसा संकल्प करके पिप्पलाद तप करने लगे। कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और बोले, ‘‘वर मांगो।’’


पिप्पलाद ने नमन किया और बोले, ‘‘प्रभु! अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा करके अपना रौद्र रूप प्रकट कीजिए और इन देवताओं को जलाकर भस्म कर दीजिए।’’

 

शिव यह अनुरोध सुन कर स्तब्ध रह गए, परंतु वचन तो पूरा करना ही था। देवताओं को जलाने के लिए तीसरा नेत्र खोलने का उपक्रम करने लगे। 


इस आरंभ की प्रथम परिणति यह हुई कि पिप्पलाद का रोम-रोम जलने लगा। वह चिल्लाए और बोले, ‘‘प्रभु! यह क्या हो रहा है? देवता नहीं, उल्टा मैं ही जला जा रहा हूं।’’

 

शिव ने कहा, ‘‘देवता तुम्हारी देह में ही समाए हुए हैं। अवयवों की शक्ति उन्हीं की सामर्थ्य है। देव जलें और तुम अछूते बचे रहो यह तो संभव नहीं है।’’


पिप्पलाद ने अपनी याचना वापस ले ली तो शिव ने कहा, ‘‘देवताओं ने त्याग का अवसर देकर तुम्हारे पिता को कृत-कृत्य और तुम्हें गौरवान्वित किया है। मरण तो होता ही है, न तुम्हारे पिता बचते और न काल के ग्रास से वृत्रासुर बचा रहता। यश, गौरव प्राप्त करने का लाभ प्रदान करने के लिए देवताओं के प्रति कृतज्ञ होना ही उचित है।’’

 

पिप्पलाद का भ्रम दूर हो गया। उनकी तपस्या आत्म-कल्याण की दिशा में मुड़ गई।
पिप्पलाद को ही पीपल कहते हैं। उनके त्याग, साधना और परोपकार की भावना के कारण उन्हें पूजा जाने लगा।


पीपल समस्त वृक्षों में सबसे पवित्र इसलिए माना गया है क्योंकि स्वयं भगवान श्रीहरि विष्णु पीपल में निवास करते हैं। श्रीमद् भागवत गीता में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अपने श्रीमुख से उच्चारित किया है कि,‘‘वृक्षों में  मैं ‘पीपल’ हूं।’’ 


स्कंद पुराण के अनुसार पीपल के मूल (जड़) में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान हरि और फलों में समस्त देवताओं से युक्त भगवान सदैव निवास करते हैं। 


ऑक्सीजन ‘प्राण-वायु’ कही जाती है। प्रत्येक जीवधारी ऑक्सीजन लेता है व कार्बन डाईआक्साइड  छोड़ता है। ऑक्सीजन देने के अतिरिक्त पीपल में अनेक विशेषताएं हैं जैसे इसकी छाया सर्दी में गर्मी देती है और गर्मी में शीतलता देती है। इसके अतिरिक्त पीपल के पत्तों से स्पर्श करने से वायु में मिले संक्रामक वायरस नष्ट हो जाते हैं। इसकी छाल, पत्तों और फल आदि से अनेक प्रकार की रोगनाशक दवाएं बनती हैं। इस दृष्टि से भी पीपल पूजनीय है।

शास्त्रों से जानें, पीपल की पूजा का रहस्य

दधीचि पुत्र पिप्पलाद ने जब माता से अपने पिता की देवताओं द्वारा अस्थियां मांगे जाने और उनसे बने वज्र से अपने प्राण बचाने का पौराणिक विवरण सुना तो उनके मन में देवताओं के प्रति घृणा उपजी। ‘‘मैं इनसे पिता को ‘सताने’ का बदला लूंगा’’ 


ऐसा संकल्प करके पिप्पलाद तप करने लगे। कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और बोले, ‘‘वर मांगो।’’


पिप्पलाद ने नमन किया और बोले, ‘‘प्रभु! अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा करके अपना रौद्र रूप प्रकट कीजिए और इन देवताओं को जलाकर भस्म कर दीजिए।’’

 

शिव यह अनुरोध सुन कर स्तब्ध रह गए, परंतु वचन तो पूरा करना ही था। देवताओं को जलाने के लिए तीसरा नेत्र खोलने का उपक्रम करने लगे। 


इस आरंभ की प्रथम परिणति यह हुई कि पिप्पलाद का रोम-रोम जलने लगा। वह चिल्लाए और बोले, ‘‘प्रभु! यह क्या हो रहा है? देवता नहीं, उल्टा मैं ही जला जा रहा हूं।’’

 

शिव ने कहा, ‘‘देवता तुम्हारी देह में ही समाए हुए हैं। अवयवों की शक्ति उन्हीं की सामर्थ्य है। देव जलें और तुम अछूते बचे रहो यह तो संभव नहीं है।’’


पिप्पलाद ने अपनी याचना वापस ले ली तो शिव ने कहा, ‘‘देवताओं ने त्याग का अवसर देकर तुम्हारे पिता को कृत-कृत्य और तुम्हें गौरवान्वित किया है। मरण तो होता ही है, न तुम्हारे पिता बचते और न काल के ग्रास से वृत्रासुर बचा रहता। यश, गौरव प्राप्त करने का लाभ प्रदान करने के लिए देवताओं के प्रति कृतज्ञ होना ही उचित है।’’

 

पिप्पलाद का भ्रम दूर हो गया। उनकी तपस्या आत्म-कल्याण की दिशा में मुड़ गई।
पिप्पलाद को ही पीपल कहते हैं। उनके त्याग, साधना और परोपकार की भावना के कारण उन्हें पूजा जाने लगा।


पीपल समस्त वृक्षों में सबसे पवित्र इसलिए माना गया है क्योंकि स्वयं भगवान श्रीहरि विष्णु पीपल में निवास करते हैं। श्रीमद् भागवत गीता में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अपने श्रीमुख से उच्चारित किया है कि,‘‘वृक्षों में  मैं ‘पीपल’ हूं।’’ 


स्कंद पुराण के अनुसार पीपल के मूल (जड़) में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान हरि और फलों में समस्त देवताओं से युक्त भगवान सदैव निवास करते हैं। 


ऑक्सीजन ‘प्राण-वायु’ कही जाती है। प्रत्येक जीवधारी ऑक्सीजन लेता है व कार्बन डाईआक्साइड  छोड़ता है। ऑक्सीजन देने के अतिरिक्त पीपल में अनेक विशेषताएं हैं जैसे इसकी छाया सर्दी में गर्मी देती है और गर्मी में शीतलता देती है। इसके अतिरिक्त पीपल के पत्तों से स्पर्श करने से वायु में मिले संक्रामक वायरस नष्ट हो जाते हैं। इसकी छाल, पत्तों और फल आदि से अनेक प्रकार की रोगनाशक दवाएं बनती हैं। इस दृष्टि से भी पीपल पूजनीय है।

शास्त्रों से जानें, पीपल की पूजा का रहस्य

दधीचि पुत्र पिप्पलाद ने जब माता से अपने पिता की देवताओं द्वारा अस्थियां मांगे जाने और उनसे बने वज्र से अपने प्राण बचाने का पौराणिक विवरण सुना तो उनके मन में देवताओं के प्रति घृणा उपजी। ‘‘मैं इनसे पिता को ‘सताने’ का बदला लूंगा’’ 


ऐसा संकल्प करके पिप्पलाद तप करने लगे। कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और बोले, ‘‘वर मांगो।’’


पिप्पलाद ने नमन किया और बोले, ‘‘प्रभु! अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा करके अपना रौद्र रूप प्रकट कीजिए और इन देवताओं को जलाकर भस्म कर दीजिए।’’

 

शिव यह अनुरोध सुन कर स्तब्ध रह गए, परंतु वचन तो पूरा करना ही था। देवताओं को जलाने के लिए तीसरा नेत्र खोलने का उपक्रम करने लगे। 


इस आरंभ की प्रथम परिणति यह हुई कि पिप्पलाद का रोम-रोम जलने लगा। वह चिल्लाए और बोले, ‘‘प्रभु! यह क्या हो रहा है? देवता नहीं, उल्टा मैं ही जला जा रहा हूं।’’

 

शिव ने कहा, ‘‘देवता तुम्हारी देह में ही समाए हुए हैं। अवयवों की शक्ति उन्हीं की सामर्थ्य है। देव जलें और तुम अछूते बचे रहो यह तो संभव नहीं है।’’


पिप्पलाद ने अपनी याचना वापस ले ली तो शिव ने कहा, ‘‘देवताओं ने त्याग का अवसर देकर तुम्हारे पिता को कृत-कृत्य और तुम्हें गौरवान्वित किया है। मरण तो होता ही है, न तुम्हारे पिता बचते और न काल के ग्रास से वृत्रासुर बचा रहता। यश, गौरव प्राप्त करने का लाभ प्रदान करने के लिए देवताओं के प्रति कृतज्ञ होना ही उचित है।’’

 

पिप्पलाद का भ्रम दूर हो गया। उनकी तपस्या आत्म-कल्याण की दिशा में मुड़ गई।
पिप्पलाद को ही पीपल कहते हैं। उनके त्याग, साधना और परोपकार की भावना के कारण उन्हें पूजा जाने लगा।


पीपल समस्त वृक्षों में सबसे पवित्र इसलिए माना गया है क्योंकि स्वयं भगवान श्रीहरि विष्णु पीपल में निवास करते हैं। श्रीमद् भागवत गीता में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अपने श्रीमुख से उच्चारित किया है कि,‘‘वृक्षों में  मैं ‘पीपल’ हूं।’’ 


स्कंद पुराण के अनुसार पीपल के मूल (जड़) में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान हरि और फलों में समस्त देवताओं से युक्त भगवान सदैव निवास करते हैं। 


ऑक्सीजन ‘प्राण-वायु’ कही जाती है। प्रत्येक जीवधारी ऑक्सीजन लेता है व कार्बन डाईआक्साइड  छोड़ता है। ऑक्सीजन देने के अतिरिक्त पीपल में अनेक विशेषताएं हैं जैसे इसकी छाया सर्दी में गर्मी देती है और गर्मी में शीतलता देती है। इसके अतिरिक्त पीपल के पत्तों से स्पर्श करने से वायु में मिले संक्रामक वायरस नष्ट हो जाते हैं। इसकी छाल, पत्तों और फल आदि से अनेक प्रकार की रोगनाशक दवाएं बनती हैं। इस दृष्टि से भी पीपल पूजनीय है।

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