हनुमान जी की मदद करने की सजा आज तक भोग रही हैं इस गांव की महिलाएं!
हनुमान जी को संकटमोचन का नाम स्वयं श्रीराम ने दिया था। आज भी जो भक्त सच्चे ह्रदय से उनका पूजन करते हैं, वह उनके सभी संकटों का हरण कर लेते हैं। आपको जानकार हैरानी होगी लेकिन यह सच है कि सभी को संकटों से उबारने वाले हनुमान जी को जब मदद की अवश्यकता पड़ी तो उनकी मदद एक वृद्ध महिला ने करी। वह महिला जिस गांव से संबंध रखती थी, आज भी उस गांव की महिलाओं को सजा मिल रही है।चमोली जिले के द्रोणागिरी गांव में हनुमान जी की पूजा- अर्चना करना तो दूर की बात, वहां के लोग इनका नाम तक नहीं लेते। मान्यता है कि इस गांव का जनमानस हनुमान जी से खफा है क्योंकि राम-रावण युद्ध के समय जब लक्ष्मण जी मूर्छित थे तो हनुमान जी संजीवनी की तलाश में आए, तो संजीवनी बूटी की बजाए द्रोणागिरी पर्वत का एक भाग लेकर ही लंका की तरफ प्रस्थान कर गए।
स्थानीय लोग बताते हैं कि हनुमान जी को गांव की एक वृद्घ महिला ने द्रोणागिरी पर्वत के उस भाग से रूबरू करवाया जहां संजीवनी बूटी उगती थी। इस बूटी तक कैसे पहुंचा जाए, उसका मार्ग भी एक महिला ने ही बताया। हनुमान जी को संजीवनी की निशानी बताने के लिए आज भी महिलाओं को सजा दे रहे हैं। सजा के तौर पर प्रत्येक वर्ष द्रोणागिरि पर्वत का पूजन केवल पुरूष करते हैं। इसमें महिलाओं को शामिल नहीं किया जाता।
इस घटना को बीते दो युग व्यतीत हो गए हैं लेकिन गांववासी हनुमान जी के इस कर्म को भुला नहीं पाए हैं और उन्हें उनका नाम लेना भी गंवारा नहीं है। जल, जंगल और जमीन के अभाव में पहाड़ों का विचार करना भी असंभव है क्योंकि इन्हीं स्त्रोतों से पृथ्वी कि संरचना हो रही है। अत: वहां का आम जन मानस इनकी देवता रूप में पूजा करता है। उनकी इन प्राकृतिक देवताओं पर इतनी अटूट आस्था है की उन्हें लगता है कि यदि हनुमान जी का नाम भी लिया तो पर्वत देवता नाराज हो जाएंगे और वे उनके कोप का भाजन बन जाएंगे।
हनुमान जी के प्रति तो मन में कटुता पाले ही हुए हैं साथ ही प्रभु श्री राम के जीवन पर आधारित राम लीला का मंचन तक नहीं किया जाता क्योंकि मान्यता है कि अगर गांव में राम लीला का मंचन किया गया तो कुछ न कुछ अशुभ घटना के घटित होने की आशंका बनी रहती है।
गांव के कुछ स्थानीय लोगों ने बताया कि वर्ष 1980 में द्रोणागिरी में रामलीला का मंचन हुआ था मगर कुछ ऐसी विलक्षण घटनाएं घटने लगीं कि मंचन को रोकना पड़ा। इस घटना के पश्चात गांव वासी इतना डर गए कि दोबारा से किसी ने भी ऐसी गुस्ताखी करने का साहस नहीं किया।