अच्छे दिन का था वादा, फिर भी नहीं बदलीं देश की ये 10 तस्वीरें

मोदी सरकार इस वादे के साथ सत्ता में आई थी कि अच्छे दिन आएंगे. कई मायनों में यह नारा सच के करीब पहुंचा तो कई मायनों में यह केवल एक सपना ही रह गया. खास तौर से गरीबी और बेरोजगारी दूर करने की जो बातें की जा रही थीं वह हकीकत से काफी दूर हैं. हम आपके लिए ऐसी 10 तस्वीरें लेकर आए हैं जो खुद हालात को बयां करती हैं.
बेरोजगारी बड़ी समस्या
मोदी सरकार ने 2014 से पहले युवाओं से रोजगार का वादा किया था. इसके लिए सरकार स्किल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों को लेकर आई. लेकिन युवाओं को इस सरकार से जितनी उम्मीदें थीं, वो पूरी नहीं हो पाईं. विपक्ष का दावा है कि चुनाव से पहले बीजेपी ने सत्ता में आने के बाद हर साल 2 करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा किया था, जिसे पूरा नहीं करने पर युवाओं में रोष है. वैसे भी देश में आज बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है. आज जब पढ़-लिखे युवाओं को कहीं रोजगार नहीं मिलता है तो फिर वो सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर रहे हैं और वादे याद दिला रहे हैं. 
क्या आंकड़ों से दूर होगी गरीबी?
आंकड़ों से गरीबी नहीं पाटी जा सकती. गरीबी दूर करने के लिए समुचित विकास की जरूरत होती है. आज भी ऐसी तस्वीरें सामने आती हैं जिसे देखकर सोचने के लिए मजबूर होना पड़ता है. एक तरह से अमीर-गरीब की खाई बढ़ती जा रही है. ग्रामीण इलाकों में भूख से लोग दम तोड़ रहे हैं. क्या ऐसी तस्वीरों के बीच भारत विश्वशक्ति बन पाएगा? जहां के लोग भरपेट भोजन के लिए आज भी तरस रहे हैं. जब ऐसी तस्वीर आती है तो फिर डिजिटल इंडिया और तमाम हाईटेक की बातें झूठी लगती हैं. हालांकि सरकार गरीबी दूर करने की हमेशा से दंभ भरती रही है. मोदी सरकार की मानें तो हर मिनट में 44 लोग गरीबी रेखा से बाहर आ रहे हैं और अगर इसी रफ्तार से आंकड़े आगे बढ़ते रहे तो 2022 के बाद देश में केवल 3 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे बच जाएंगे.
आखिर क्यों प्रदर्शन करते हैं किसान  
देश का अन्नदाता आज भी प्रदर्शन के लिए क्यों मजबूर है. सबका पेट भरने वालों को आखिर क्यों सरकार को जगाने की जरूरत पड़ती है. सच यह भी है कि हमेशा से किसानों की मांग को गंभीरता से नहीं लिया. मोदी सरकार में भी किसानों मे अंसतोष है और वो लगातार जगह-जगह अपनी मांगों को लेकर संघर्षरत हैं. सरकार का दावा है कि किसानों की स्थिति पहले से बहुत बेहतर हुई है. लेकिन जब कहीं से किसान की खुदकुशी की खबर आती है तो फिर सरकार नीति और नीयत दोनों पर सवाल उठते हैं. 
कब तक लटक कर करेंगे यात्रा
भारतीय रेल दुनिया में सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है. सरकारें बदलती रहीं लेकिन रेलवे में बड़े बदलाव नहीं दिखे. हालांकि बदलाव के नाम पर बड़ी-बड़ी घोषणाएं की गईं. यात्रा को सुगम बनाने के लिए हर साल बजट में नये इरादे के साथ वादे किए जाते हैं. लेकिन हालात जस के तस हैं. खासकर आम आदमी जो स्लीपर क्लास या फिर सामान्य डिब्बे में सफर करते हैं, उनकी समस्याएं आज भी वैसी ही हैं जैसे 5 साल पहले थी. सरकार हर साल बजट में बेहतर सफर का वादा दोहराती है. लेकिन ये तस्वीर बताती है कि आज भी रेल यात्रा भगवान भरोसे है. 
ऐसे चलेगा स्वच्छ भारत अभियान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन का आगाज किया था, लेकिन अभी तक ये अंजाम तक नहीं पहुंच पाया है. अभी भी लोग खुले में शौच के लिए मजबूर हैं. वहीं शहरों में कूड़े का ढेर जैसे 5 साल पहले था, वैसा ही नजारा आज भी है. जबकि स्वच्छता के नाम पर सरकार ने करोड़ों का फंड निर्धारित कर दिया है. ऊपर की तस्वीर दिल्ली है. ये तस्वीर बताती है कि गांधी का सपना अभी पूरा नहीं हुआ है. हम केवल साफ-सफाई के नाम पर साल में एक दिन झाड़ू उठा लेते हैं लेकिन फिर खुद ही कूड़ा फैलाते हैं या फिर सालभर कूड़े के ढेर को नजरअंदाज करते हैं. 
कब तक भूख से मरते रहेंगे लोग 
मोदी सरकार के गरीबी को दूर करने के तमाम प्रयासों के बावजूद भूखमरी भारत के लिए आज भी बड़ी समस्‍या बनी हुई है. साल 2018 में ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की रैंकिंग और गिरी है. भारत को 119 देशों की सूची में 103वां स्थान मिला है. अहम बात ये है कि गिरावट का यह सिलसिला 2014 में केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई वाली सरकार बनने के बाद से ही जारी है. साल 2014 में भारत इस रैंकिंग में 55वें पायदान पर था तो वहीं 2015 में 80वें और 2016 में 97वें पर आ गया. वहीं 2017 में भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 100वें स्थान पर था. मोदी सरकार में कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने बीते दिनों बताया था कि सरकार साल 2030 तक भुखमरी को पूरी तरह समाप्त करना एक बड़ा लक्ष्य है. भुखमरी को दूर करने की दिशा में दीनदयाल अंत्योदय योजना भी है. लेकिन जब ऐसी तस्वीर सामने आती है तो सारे वादे धरे के धरे रह जाते हैं. 
बदहाल अस्‍पताल, दम तोड़ते मरीज 
वैसे तो मोदी सरकार ने आयुष्‍मान भारत के जरिए गरीबी से जूझ रहे एक बहुत बड़े तबके को फ्री इलाज की सुविधा दी है. लेकिन देश के अलग-अलग राज्‍यों में सरकारी अस्‍पतालों की बदहाली जानलेवा साबित हुई है. डॉक्‍टरों की लापरवाही और अस्‍पतालों की बदहाली का ही नतीजा है कि अगस्‍त 2017 में ऑक्‍सीजन की कमी की वजह से गोरखपुर में 60 से ज्‍यादा मासूमों ने दम तोड़ दिया तो वहीं बीते साल बारिश की वजह से बिहार के सरकारी अस्‍पतालों के आईसीयू में मछलियां तैरने लगीं. साफ शब्दों में कहें तो आज भी आम आदमी को समुचित इलाज के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.
कब आएगा कालाधन?
2014 के बीजेपी ने कालेधन के खिलाफ बड़ी मुहिम छेड़ दी थी और कटघरे में यूपीए सरकार थी. लेकिन NDA सरकार में कालेधन के खिलाफ कोई बड़ी कामयाबी हाथ नहीं लगी है. विपक्ष का सीधा कहना है कि कालेधन के खिलाफ सरकार का वादा एक जुमला था. वहीं आम आदमी को भी मोदी सरकार से कालेधन के खिलाफ कार्रवाई की उम्मीद थी. जो वक्त से साथ-साथ कम होती गई और आज फिर देश चुनाव के मुहाने पर खड़ा है और कालेधन का मुद्दा केवल मुद्दा बनकर रह गया है. लोगों को भी लगने लगा है कि विदेशों में जमा कालाधन अब कभी वापस नहीं आएगा.
कब हकीकत में बदलेगा घर का सपना
हर इंसान का एक सपना होता है कि उसका अपना घर हो. लेकिन कुछ लोग सपने को साकार कर पाते हैं और कुछ सरकारी मदद की आस में वर्षों गुजार देते हैं. बिल्डरों की मनमानी आज भी आम बात है. चाहे सरकार किसी की हो, कानून कुछ भी कहता है, बिल्डर जो चाहता है, वही होता है और आज भी हो रहा है. तमाम मेट्रो सिटी में लाखों लोग को अपनी गाढ़ी कमाई एक आशियाने के लिए लगा चुके हैं, और बिल्डर से उन्हें केवल तारीख मिल रही है. मोदी सरकार ने भी सबको घर का वादा किया था लेकिन कुछ लोग आज भी अपने घर की तलाश में बड़ी निर्माणाधीन इमारतों के पास खड़े होकर सोचने को मजबूर हैं कि कब एक छत नसीब होगी. 
शिक्षा का बंटाधार 
पिछले पांच साल में हर बजट में शिक्षा पर अतिरिक्त रकम का प्रावधान किया गया, लेकिन जमीनी स्तर पर बड़े बदलाव नहीं दिख रहा है. ये वही देश है जहां शून्य का अविष्कार हुआ था. लेकिन आज के दौर में शिक्षा के स्तर पर तमाम कोशिशों के बावजूद हालात ज्यों के त्यों हैं. 'सबको मिले शिक्षा का अधिकार' जैसे नारे बैनर-पोस्टर में तो दिखते हैं, लेकिन गांव की गलियों तक इनकी आवाज नहीं पहुंच पा रही है. जब बारिश के दिनों में स्कूल की छत से पानी टपकता है और बच्चों की छुट्टी कर दी जाती है तो विकास के सारे वादे खोखले साबित होते हैं. जब छात्र को पास कराने के लिए परिजन स्कूल की दीवारों पर लटक जाते हैं तो सारा सच सामने आ जाता है. 
 

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